अपने कर्तव्यों को सही निर्वाह करो

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सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने साध- संगत को रूहानी वचनों से निहाल करते हुए फरमाया कि इसांन इस दुनिया में मालिक का नाम लेने के लिए आया। इसका मतलब ये नहीं कि उसका कोई कर्तव्य नहीं। इस संसार में आकर इन्सान को अलग-अलग रिश्तों में अपना फर्ज निभाना है। घर गृहस्थ में उसके लिए परिवार, सगे-संम्बंधी, यार-दोस्त के लिए समय होना चाहिए। और अगर कोई त्यागी तपस्वी है तो उसका समाज ही उसका परिवार है। कहने का मतलब दीन दुखी, परेशान, बीमार, लाचार, पीर-फकीर जो बताए उसी अनुसार सेवा में जीवन गुजारना। ये कोई छोटा-मोटा काम नहीं होता कि आदमी घर-गृहस्थ में रहे और राम का नाम जपे। और ये भी कोई घर-परिवार त्याग दे तपस्वी हो जाए। तो दोनों बातें अपनी जगह मुश्किल हैं। लेकिन जो भी इनका पार पा जाता है वही मालिक का प्यारा हो जाता है, वही मालिक की खुशियां हासिल कर लेता है।

हर इंसान अपनी मर्जी का मालिक होता है कौन होता है उसे रोकने वाला-टोकने वाला। संत पीर फकीर जो शिक्षा देते हैं, रास्ता दिखाते हैं। बहुत लोग होते हैं जो सत्य वचन मानकर मान लेते हैं और बहुत ज्यादा लोग होते हैं जो उनकी परवाह नहीं करते। वचन इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि संत अपनी बात नहीं ओम, हरि, अल्लाह राम की बात सुनाते हैं। राम की बात नहीं होती उनके वचन होेते हैं तो इसलिए संतो के भी वचन बन जाते हैं क्योंकि वो अपनी नहीं भगवान की बात सुनाते हैं। संत ये नहीं कहते हैं कि मेरी सेवा कर संत कहते हैं मन पर लगाम डाल, सुमिरन कर-सेवाकर सबका भलाकर, निंदा चुगली बुराई करने वालों का संग न कर क्योंकि उनका संग उनकी सोहबत आपको भगवान से दूर कर देगी। इंसान कितना भी दृढ़ यकीन वाला क्यों न हो अगर वो निंदा चुगली करने वालों के पास बैठता हो पहले धीरे-धीरे उसके पास टाईम बढ़ता चला जाता है और उसे पता ही नहीं चलता कि वो खुद कब निंदा-चुगली करने लगा।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया, आश्रम में कई बार ऐसा होता है कि सेवादार सही सेवा नहीं कर पाते। कोई गंदगी फैला रहा है तो आप ये मत कहिए कि आश्रम में ऐसा ही होता है डेरे में। इस तरह आप सांई मस्ताना जी, शाह सतनाम जी दाता की निंदा कर रहे हैं। हम भी आते थे तो कहीं भी अगर देखा कि सामान बिखरा हुआ है तो उठाने लगते थे तो इतने में सेवादार आ जाते थे और कहते, कि हम उठा लेंगे। लंगर अगर पड़ा होता तो हम उसको उठाकर जेब में डाल लेते। लंगर से बेशकीमती तो हीरा भी नहीं हो सकता सांई जी के वचन हैं। घर में बिना किसी को बताए चुपके से गऊओं को दे देते। तो माता जी कहती कि आज मक्खन ज्यादा आया है पशु ने ऐसा क्या खाया है? ये तो फिर शाह सतनाम जी जानते थे या फिर हम जो डाला था कि लंगर खाया है इन्होंने। तो मतलब श्रद्धा! अगर आप कहते रहो कि यार डेरे वाले तो ऐसे ही हैं तो आप कौन हो? आप डेरे वाले नहीं हो? डेरा किसका है? सांई मस्ताना जी का, शाह सतनाम जी का। आप तो इनडाईरेक्टली निंदा करते हो और कहते हो नहीं नहीं हम तो सेवादारों को कह रहे हैं। तो आप जरा बताईए सेवादार किसके हैं? आप किसके हो? डेरा किसका है? ये चीजे करने के बजाए उन चीजों को सुधारा जाए। पर आप निंदा करते रहते हो फिर ऐसी मार पड़ती है कि सिवाए पश्चाताप के कुछ हाथ में नहीं रहता। इसलिए अच्छा है। आप खुद वो काम करें। तो ये ध्यान रखा करो हमारा तो बताना फर्ज है, कोई सुन ले तो भला पर न सुने तो हम भला ही मांगते हैं पर होता नहीं। क्योंकि जैसे कर्म करोेगे वैसे ही फल मिलेगा न। तो आप किसी को गलत न कहिए क्या पता कब कर्माें की मार पड़ जाए?

पूज्य गुरु जी ने फरमाया, हमने बहुत देखा है लड़के-लड़कियों को जिद करते कि मैं तो आगे ही बैठना है जबकि सेवादार मना करते रहते। हम ऐसा करते थे सतगुरु हमें न देखे तो कोई बात नहीं मैं सतगुुरु को सीधा देखूं बीच में कोई न आए चाहे सबसे पीछे क्यों न बैठना पड़े। एक कोना देखते कि यहां से फोकस होगा तो बिल्कुल वहीं जच के बैठ जाते। एक पल भी गंवारा नहीं होता। सूत का धागा बांध दें तो उसकोे भी टच न करें ये है सत्ंसगी और मालिक का प्यारा। उसको दबा लिया नीचे से देखा ऊपर से देखा तो ये क्या भक्ति बड़ी हो जाएगी इससे दर्शन करके कुछ ज्यादा लूट लोगे। तो रूहानियत में एक चीज की भक्ति है दृढ़ यकीन और वचन को मानना। गुरु को मानते हैं पर गुरु की नहीं मानते तो खुशियां कैसे मिलेंगी। दृढ़ यकीन रखो अगर आप फकीर पर दृढ़ यकीन रखते हो तो अल्लाह राम पर यकीन रखते हो क्योंकि फकीर बात ही राम की सुनाता है।

फकीर किसी को बुरा नहंी कहता लेकिन जो चीजें गलत हैं जिनकी वजह से आप कर्मों की मार सहते रहते हो। आप कहते हो कि ऐसा तो कुछ मैंने किया ही नहीं। ऐसी चीजें आप अंजाने में पता नहीं कितना कुछ कर जाते हो। आप सोचना कि आपने कितना कुछ किया है तो अपने आप ही पता चल जाएगा। तो फकीर बताएगा तब ही पता चलेगा न। शीशा देखोगे तो ही मुंह का पता चलता है न कि क्या है? तो फकीर शीशे की तरह होता है और दिखा देता है कि गलती क्या होती है? और सच क्या होता है? सच यही है कि नेकी करो भला करो सबके लिए भला सोचो कभी किसी का बुरा न करो। हमेशा सतगुरु मौला से उसकी कृपा मांगो। अहंकार न करो, दीनता नम्रता रखो तो वो झोलियां अंदर बाहर से मालामाल कर देता है, कोई कमी आने नहीं देता राम।

ये भी याद रखो कि वो हर किसी को हर समय देख रहा है। आप क्या करते रहते हो? आप क्या करना चाहते हो? ये सब जानता है पर रोकता इसलिए नहीं कि वो वचनों में बंधा है। आप गर सुमिरन करते हो भक्ति करते हो तो अंदर से भी रोकेगा और बाहर से भी फकीर आपको दुबारा जरूर रोकेगा। और आपको समझ आ जाएगी कि हां मुझे रोका जा रहा है मुझे ये काम नहीं करना। और आप छौड़ दोगे। जिन लोगों की आंख नहीं बनी वो अकड़े हुए हैं और अकड़ जाते हैं कि अच्छा मुझे कहा है। ये नहीं पता कि अगर आप मान जाओ तो परिवारों का भी भला हो जाए। न मानो तो आप अपने कर्माें का बोझ उठाते रहते हो वो नहीं कटता।

वचन मानो पहाड़ से कंकड बने और न मानो तो पहाड़ के पहाड़ उठाते रहो। तो वो दुख को खत्म करता है बढ़ाता नहीं है बिल्कुल खत्म कर सकता है अगर सौ प्रसेंट वचन मान लो। आप तो मर्जी के मालिक हैं आप कोई पशु तो हो नहीं कि सांकल बांध दो। आपका जो दिल करे करो। लेकिन फकीर जो कहता है अगर उसे सुन के अमल कर लो तो जिंदगी में बहारें आ जाती हैं, खुशियों से मालामाल जरूर होंगे आज नहीं तो कल अवश्य होंगे। समय लग जाता है कई बार समझने में फर्क होता है। सो हमारा फर्ज आपको रास्ता दिखाना है। आप मान लो तो फायदा न मानो भगवान से प्रार्थना है कि तो भी फायदा हो वो आपके कर्माें के बोझ हैं।

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