मालिक पर दृढ़ यकीन रखो : पूज्य गुरु जी

Sirsa: सच्चे दाता रहबर शाह सतनाम, शाह मस्ताना जी का रहमोकर्म ज्यों-ज्यों कलयुग बढ़ता है, त्यों-त्यों दिन दोगुनी रात चौगुनी नहीं सैकड़ों गुना बढ़ता जा रहा है। भाग्यशाली अतिभाग्यशाली बनेंगे और अभाग्यशाली जरूर भाग्यशाली बनेंगे जो दृढ़ यकीन रखेंगे। बात यकीन की है। अपने सतगुरु मौला पर जो भी दृढ़ यकीन रखता है, मालिक उसकी जायज मांग जरूर पूरी करता है। उक्त वचन शाह सतनाम सिंह जी धाम सरसा में वीरवार की शाम को आयोजित रूहानी मजलिस में पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने फरमाए।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि इंसान गलती कर बैठता है, पर भक्त वो बन जाता है जो गलती का पछतावा कर के जिंदगी में फिर कोई गलती नहीं करता। सो सच्चे मुर्शिदे कामिल का ये दर जिसने भी यहां सर झुकाया सच्ची भावना, सच्ची श्रद्धा से वो राम वो ईश्वर ऐसा फल देता है जो इंसान कभी कल्पना में भी नहीं सोचता। उसके भण्डारे ज्यों के त्यों भरे हैं न खाली हुए हैं, न खाली होंगे। क्योंकि वो राम है सतगुरु मौला है। श्रद्धा चाहिए आपकी भावना चाहिए। ऐसे भण्डारे है जो वो दोनों हाथों से लुटाते हैं। ऐसे गैबी नजारे हैं जो वो हर किसी को दिखाते हैं पर जिसकी आंखे उसके काबिल होती हैं, वो देख पाते हैं कई आंखों के बिना खाली ही रह जाते हैं। इन आंखों को उस मालिक के नजारे के काबिल बनाने के लिए सेवा करो, सुमिरन करो। दृृढ़ यकीन रखो।  तीनों को कम्बीनेशन हो जाए फिर तो कहना ही क्या है? फिर तो वारे-न्यारे हैं। अंदर-बाहर कभी किसी चीज की कमी आपको तो क्या? आपके कुलों को आने वाली नहीं है।
पूज्य गुरु जी आगे फरमाते हैं कि, अगर दृढ़ यकीन भी है तो भी मालिक बाकि की दो चीजें कुछ न कुछ पूरी कर देता है और फिर भी वो रहमोकर्म का हकदार जरूर बन जाता है। तो सेवा सुमिरन दृढ़ यकीन उस परम पिता परमात्मा पर जो भी रख के चलते हैं, भयानक से भयानक बीमारियां पल में खत्म हो जाती हैं। असफलता से सफलता की सीढ़िया कब चढ़ गया पता ही नहीं चलता। दिन रात कैसे गुजर गए पता ही नहीं चलता। कहने का मतलब हर दिन खुशी दुगुनी चौगुनी बढ़ती जाती है। पर मसला दृढ़ विश्वास का है। और वो आता है जब इंसान का दिली प्यार हो, दिली सत्कार हो उस राम से भय हो। क्योंकि भय बिना भाव कभी नहीं आता। अगर डर नहीं है तो आप उस परम पिता परमात्मा पर कभी भी दृढ़ यकीन नहीं कर पाते। अगर डर है आप गलतियां नहीं करते। आप गलत रास्ते नहीं चलते और यकीनन उस मालिक की दया मेहर की रहमत के लायक जरूर बन जाते हैं। डर का मतलब ये नहीं कि हर पल डरते रहो। डर का मतलब होता है जब भी आप गलत काम करो तो आपको सतगुरु का, अल्लाह राम का डर रहे कि अगर मैं गलत करुंगा तो वो देख रहा है। गलत करुंगा तो भरना पड़ेगा। बस इतना ही डर रहेगा तो मालिक के प्यार के नजारे आप जरूर लूट पाएंगे, तरक्की करेंगे। लोग हैरान होंगे और आप खुशियों से लबरेज रहा करोगे। जितना हो सके सेवा और सिमरन जरूर किया करो।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया हैकि कलयुग का समय है यहां दोगले लोगों की कोई कमी नहीं। इतना दोगलापन है कि इंसान दंग रह जाता है कि ऐसा भी हो सकता है। कुछ नहंी कहा जा सकता किसी के बारे में बस एक के बारे में सौ प्रसेंट कहा जा सकता है वो है राम के बारे में। और वो सच था और सच है और सच ही रहेगा। दुनिया सौ बदले, हजार बदले, करोड़ बदले लेकिन राम न कभी बदला, और न कभी बदला था न कभी बदलेगा। ये दृढ़ यकीन जरूर रखो। बाकि कौन कब बदल जाए कुछ मालूम नहीं पड़ता। हमने ऐसे-ऐसे लोगों को देखा है जिसका ये यकीन ही नहीं होता कि वो बदल सकता है या उसके विचार बदल सकते हैं कि वो तो दृढ़ विश्वासी होगा वो तो मालिक से प्यार करने वाला होगा। पर काम, वासना, क्रोध, लोभ, मोह अहंकार मन और माया जब ये सातों इकट्ठे होकर चलते हैं। तो इसांन का होशों हवाश गुम हो जाते हैं। और इनके पीछे लग के इंसान अपनी बर्बादी का कारण खुद बन जाता है। इसलिए सेवा सिमरन करते रहो। पीर-फकीर किसी को कुछ कहता है अगर सत्य कह के मान लिया हम आपको सौ प्रसेंट गारण्टी देकर कहते हैं आपका पहाड़ जैसा कर्म उसी पल खत्म हो गया। और अगर मन मरोड़ा खा गया तो कर्मों का बोझ आप पर जरूर आ गया। संतो का क्रोध भी दाती होता है, और दुनियादारी का प्यार भी घाती होता है। संत गुस्सा क्यों करते हैं? जब इंसान के कर्म भारी होते हैँ। जब इसांन गलती पर गलती करता चला जाता है या जब इंसान का कोई भयानक करम आने वाला होता है। तो ऐसी कोई बात कहते हैं जो चुभती है। ऐसी कोई बात कहते हैं तो लगता है उसे क्यों कहा गया? गुस्सा उसपर क्यों किया गया। उसको अगर ये मान लें नहीं मेरा 200 प्रसेंट कर्म कटा। और ये मान लिया कि गुस्सा क्यों किया, ये तो बिल्कुल गलत है। तो समझ लो वो कर्माें की मार सहने को तैयार बैठा है। वो दाती होता है वो दात देते हैं। कभी किसी का नुकसान नहीं करते। गरम पानी को नीम डालकर धो लो, कहते हैं कड़वा होता है लेकिन जख्म के लिए एंटीबायोटिक होता है। और दुनिया दारी का प्यार घाती होता है जैस आग कहीं भी फेंक दो वो जलाएगी ही जलाएगी। चाहे हाथों में, चाहे कपड़ों में। तो आज की दुनिया में ऐसा प्यार है। आपके पास पैसा होगा ,आपके पास कोई हुनर होगा, आपका कोई रुतबा होगा, आप कोई बड़े आफीसर होंगे, आपकी कोई राज-पहुंंच होगी या फिर घर में बेटी-बहन बहु कोई सुंदर होगी तो लोग ज्यादा हाथ मिलाते हैं। ऐसा कलयुग है ये, भयानक दौर है। सभी एक जैसे नहीं होते। कई होते हैं जो बेगर्ज प्यार करते हैं लेकिन कितने, ऊंगलियों पर गिने जा सकते हैं, बहुत ही कम। और दूसरे वाले बहुत ही ज्यादा । इसलिए परम पिता जी ने एक बात कही, रहना मस्त ते होना होशियार चाहीदा। हमेशा मस्ती में रहो, खुश रहो। किसी की परवाह करो ही ना। लेकिन होना होशियार चाहिदा। कोई आपको बुद्धू बना के चुना लगा के न चला जाए। इसलिए मस्त ते होना होशियार चाहीदा। पर ऐसी होशियारी भी न दिखाओ कि राम को ही झुठला दो। उसकी बेआवाज लाठी बड़ी ही दर्दनाक होती है। इसलिए अच्छा है कि वो लाठी पड़े उससे पहले सुधर जाओ। क्योंकि वो पल-पल की खबर रखता है जो कण-कण में रहता है उससे पर्दा कोई कैसे कर लेगा? बाहरी दिखावे से उसे भरमाया नहीं जा सकता। दुनिया के लोग आपको पूज सकते हैं। लेकिन राम तभी खुश होता है जब अंदर बाहर एक हो। अंदर भी सफाई है, बाहर भी सफाई है। और दृढ़ यकीन है। तो यकीनन उस इंसान की हर जायज इच्छा मालिक जरूर-जरूर पूरी करता है। अंदर बाहर खुशियों से मालामाल कर देता है।
सो प्यारी साध-संगत जी! अमल करने से ही नजारे मिलते हैं, अमल करने से ही खुशियां आती है।