गजल : कोई आँसू बहाता है…

Ghazal
कोई आँसू बहाता है, कोई खुशियाँ मनाता है,
ये सारा खेल उसका है, वही सब को नचाता है।
बहुत से जवाब लेकर गांव से वो शहर आया था,
मगर दो जून की रोटी, बमुश्किल ही जुटाता है।
मेरी दुनिया में है कुछ इस तरह से उसका आना भी,
घटा सावन की या खुशबू का झोंका जैसे आता है।
बहे कोई हवा पर उसने जो सीखा बुजुर्गों से,
उन्हीं रस्मों-रिवाजों, को अभी तक वो निभाता है।
किसी को ताज मिलता है, किसी को मौत मिलती है
हमें अब प्यार में देखें मुकद्दर क्या दिलाता है।
-ममता किरण

 

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