चीन को क्यों खटकती है भारत-भूटान की दोस्ती?

Why India-Bhutan friendship beats China?

भारत और भूटान के बीच बढ़ती दोस्ती पर दो महत्वपूर्ण प्रश्न खडे होते हैं। पहला प्रश्न यह कि भारत के लिए भूटान इतना महत्वपूर्ण क्यों है? कह सकते हैं कि भूटान तो एक छोटा-सा देश है, जिनकी जनसंख्या बहुत ही सीमित है, जिसकी अर्थव्यवस्था भी कोई ध्यान खींचने वाली नहीं है, जिसकी सामरिक शक्ति भी सीमित है, छोटे देश होने और सामरिक शक्ति सीमित होने के कारण उसकी कूटनीतिक शक्ति भी उल्लेखनीय नहीं है

फिर भी भारत हमेशा भूटान के साथ दोस्ती के लिए तत्पर क्यों रहता है? भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भूटान जाने और भूटान निवासियों के साथ वार्ता करने में गर्व महसूस क्यों करते हैं, भूटान नरेश को गणतंत्र दिवस पर अतिथि बना भारत अपने आप गर्व क्यों महसूस करता है? दूसरा प्रश्न यह है कि चीन को भारत-भूटान की दोस्ती क्यों खटकती है, भारत और भूटान की दोस्ती से चीन के शासक वर्ग क्यों खफा होते हैं, भूटान को नजदीक लाने और भूटान को भारत से दूर करने की चीनी कोशिशें क्यों नहीं सफल होती हैं, चीनी मीडिया भी भारत और भूटान की दोस्ती को लेकर अतिरंजित अफवाहें क्यों फैलाता रहता है?

अभी-अभी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दो दिवसीय भूटान की यात्रा पूरी हुई है, जहां पर नरेन्द्र मोदी ने न केवल भूटान की राजसत्ता से वार्ता की है बल्कि भूटान की नयी पीढ़ी को भी संबोधित किया है। भूटान की नयी पीढ़ी को नरेन्द्र मोदी ने संबोधित करते हुए कहा कि भारत की सूचना प्रौधिगिकी का लाभ भूटान के मेधावी छात्र उठा सकते हैं, भारत भूटान के मेधावी छात्रों को हर सुविधा देने के लिए तैयार है। नरेन्द्र मोदी के इस यात्रा पर चीन का मीडिया नाराज है और चीन का मीडिया कहता है कि भारत चीन का घेराबंदी कर रहा है, भारत पड़ोसियों को चीन के खिलाफ भडका रहा है।

चीन की गिद्ध दृष्टि पडोसियों की संप्रभुत्ता का हनन करती रही है। पडोसियों के प्रति चीन का व्यवहार उपनिवेशिक है। चीन अपनी सामरिक शक्ति के सामने अपने पडोसियों को न सिर्फ लहूलुहान करता रहा है बल्कि अपने पडोसी देशों की संप्रभुत्ता को रौंदता भी रहा है? इसके पीछे चीन की उपनिवेशिक धारणा ही काम करती रहती है। चीन कभी भारत की संप्रभुत्ता को रौंदा था, भारत पर हमला कर भारत के पांच हजार से अधिक सैनिकों का कत्लेआम किया था, भारत की 90 हजार वर्ग मिल भूमि कब्जाई थी जो अभी भी चीन अपने कब्जे में रखी है।

चीन कहने के लिए एक कम्युनिस्ट देश है पर चीन कम्युनिस्ट देशों की संप्रभुत्ता को रौंदने में पीछे नहीं रहता है। उदाहरण के लिए वियतनाम है। वियतनाम भी एक कम्युनिस्ट देश है और भारत की तरह वियतनाम भी चीन का पड़ोसी देश है। चीन ने कभी वियतनाम पर हमला कर नरसंहार किया था। आज भी वियतनाम के समुद्री अधिकार पर चीन कब्जा करने के फिराक में रहता है, समुद्री क्षेत्र में वियतनाम के तेल और गैस के भड़ार पर उसकी गिद्ध दृष्टि हटती नहीं है। भूटान एक छोटा-सा देश है पर प्राकृतिक रूप से भूटान एक महत्वपूर्ण देश है, चीन के सामरिक दृष्टिकोण से भी भूटान एक अति महत्वपूर्ण देश है।

जिस तरह चीन पाकिस्तान और नेपाल में अपनी धाक कायम कर रखा है और भारत के हितों को बलि चढा रखा है उसी तरह चीन भूटान में अपनी धाक कायम करना चाहता है, भूटान में चीन भारत के हितों को बलि चढ़ाना चाहता है, भूटान के सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण स्थानों पर अपने सामरिक ठिकाने बनाने की इच्छा रखता है, चीन के जलक्षेत्रों का दोहन कर बिजली उत्पादन करना चाहता है। उल्लेखनीय है कि पठारी क्षेत्र होने के कारण भूटान के पास अपार जल क्षेत्र है जहां पर बिजली के अपार संभावनाएं हैं। उल्लेखनीय यह भी है कि भारत और भूटान के बीच जल-बिजली समझौते के अनुसार कई जल परियोजनाएं जारी हैं। जल-बिजली परियोजनाओं के कारण भूटान की अर्थव्यवस्था भी स्थिर और प्रगतिशील है। भूटान और भारत की सांस्कृति संबंध सदियों से महत्वपूर्ण रहे हैं। दोनों देशों की संस्कृति एक है, विरासत भी एक है। बौद्ध संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाला भूटान भारत के साथ संबंध को हमेशा से प्राथमिकता देता रहा है। आज का कूटनीतिक संबंध लोभ-लालच पर टिका हुआ है, समय के अनुसार देश पाला बदलते रहे हैं। पर भूटान ऐसे देशों में नहीं है। भूटान की दोस्ती में ईमानदारी भी है और नैतिकता भी है।

नैतिकता इस दृष्टि से है कि भूटान हमेशा भारत के प्रति ईमानदारी दिखाता रहा है। चीन के लालच और धमकियों के बाद भी उसने भारत के साथ दोस्ती नहीं तोड़ी, बल्कि भारत के साथ चट्टान की तरह खड़ा रहा है। दोस्ती से न केवल भारत को लाभ है बल्कि भूटान भी खुद अपने नागरिकों के जीवन को सुखमय बनाने के राह पर अग्रसर है। भूटान हाइड्रों पावर उत्पादन 2000 मेगावाट की सीमा को पार कर गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे के समय भूटान और भारत के बीच मांगदेक्षु हाइड्रोंं पावर परियोजना की शुरूआत पर समझौते हुए हैं। इस समझौते से बिजली उत्पादन के क्षेत्र में बडी कामयाबी देखी जा रही है। भूटान को यह अहसास है कि भारत की दोस्ती ही उसके अस्तित्व को बचा सकती है। भूटान में अराजकता फैलाने और भूटान की संप्रभुत्ता को रौंदने की कितनी कोशिशें हुई हैं, यह भी जगजाहिर है। अराजकता फैलाने और भूटान की संप्रभुत्ता को रौंदने की सभी कोशिशें इस लिए विफल साबित हुई कि भारत हमेशा भूटान के साथ खडा रहा है।

भारत ने चीन को आईना दिखाया। डोकलाम में चीन को आगे बढने से रोक दिया। भारतीय सैनिक कई दिनों तक चीन की शक्तिशाली सेना को आगे बढ़ने से रोके रखे। चीन को भी भारत की शक्ति का अहसास हुआ। भारत की सैनिक और कूटनीतिक वीरता के सामने चीन को अपनी मंशा त्यागनी पड़ी। डोकलाम से चीन सैनिक हट गये। इस प्रकार भारत की वीरता ने भूटान की संप्रभुत्ता की रक्षा की थी। भूटान भी भारत की संप्रभुत्ता के प्रति हमेशा सकरात्मक दृष्टिकोण से समर्पित रहता है। भारत विरोधी आतंकवादियों और उग्रवादियों को हमेशा जमींदोज करने का काम किया है। देश के पूर्वोत्तर राज्यों के कई उग्रवादी संगठन भूटान के जंगलों में छिप कर भारत के प्रति साजिश करते हैं, भारत के खिलाफ हिंसक गतिविधियों को अंजाम देते हैं।

इस प्रकार के आतंकवादी और उग्रवादी समूहों को भूटान की सरकार हमेशा जमींदोज करती रही है। भारत की सेना और भूटान की सेना मिल कर ऐसे समूहों के प्रति जरूरत पड़ने पर अभियान चलाती है। वर्तमान भारतीय सरकार के एजेडे में भूटान की जगह नंबर एक की है। नरेन्द्र मोदी अपने पहले कार्यकाल में और फिर अपने दूसरे कार्यकाल में भूटान की यात्रा की है। चीनी कुदृष्टि से भूटान को बचाना भी भारत का कर्तव्य ही नहीं बल्कि भविष्य की जरूरत भी है। भूटान में राजशाही को समाप्त करने और माओवाद लाने की चीनी कुदृष्टि जारी है। नेपाल की तरफ भूटान में भी माओवादियों को चीन स्थापित करना चाहता है। अभी तक माओवाद लाने की कोशिश इसलिए विफल हुई है कि भूटान का नरेश जनपक्षीय रहा है। राजसत्ता जनविरोधी नहीं बल्कि जनपक्षीय रहा है। नरेन्द्र मोदी के शासन में पडोसी देशों के साथ संबंध मजबूत हुए हैं, हमारे पडोसी देशों पर चीन की कुदृष्टि नियंत्रित रही है, यह अच्छी बात है। भारत का दृष्टिकोण हमेशा पडोसी हित को लुटने का नहीं बल्कि पडोसी हित की रक्षा करने का है। इसी कारण आज बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और मालदीव हमारे अच्छे पडोसी और अच्छे मित्र हैं।

याद कीजिये डोकलाम विवाद को और चीनी धूतार्ता को। चीन एकाएक डोकलाम में निर्माण कार्य शुरू कर दिया था। डोकलाम प्रकरण से भूटान की संप्रभुत्ता खतरे में थी। डोकलाम में चीनी गतिविधियां सामरिक चुनौतियों को बढा दी थी, भारत की संप्रभुत्ता भी खतरे में पडने वाली थी। भूटान के पास इतनी सामरिक शक्ति नहीं थी कि वह चीन के साथ मुकाबला कर सके। चीन की सेना जहां दुनिया की सबसे शक्तिशाली है वहीं भूटान की सैनिक क्षमता न केवल सीमित है बल्कि प्रतिकात्मक भी है। भूटान को भारत की ओर देखने की भी जरूरत नहीं थी। भारत ने अपना कर्तव्य देखा, छोटे भाई भूटान के अस्तित्व और संप्रभुता पर आयी आंच को महसूस किया। ‘
विष्णुगुप्त

 

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