नक्सलवाद: लाल रंग में हरा मिलाने का प्रयास

#Naxalism, #West Bengal

नक्सलवाद की समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की एक बैठक गृहमंत्री की अध्यक्षता में संपन्न हुई। इस बैठक से पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने आप को अलग रखा। नक्सलवाद की समस्या आज हमारे देश में आंतरिक सुरक्षा की एक बड़ी चुनौती है। इसकी शुरूआत पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी नामक गांव से हुई थी। जिसके कारणों में भूमि सुधार कानूनों का उचित रूप में क्रियान्वयन ना होना माना जाता था। लेकिन वर्तमान समय में नक्सलवाद का स्वरूप बदल गया है और ज्यादातर गुट अब नक्सलवाद के नाम पर लूटपाट, फिरौती की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। जबकि संगठित विचारधारा वाले गुट अब सीमित क्षेत्रों में रह गए हैं। जिनमें महाराष्ट्र, पश्चिमी छत्तीसगढ़ और तेलंगाना शामिल है। इसलिए अब हमें नए तरीके से इनसे निपटने की आवश्यकता है।

गृहमंत्री का ध्यान कश्मीर, उत्तर-पूर्व भारत के बाद अब नक्सलवाद की रीढ़ तोड़ने पर है। यह सही समय भी है, क्योंकि पिछले 10 वर्षों में नक्सलवाद से निपटने के उपायों के सही क्रियान्वयन के कारण इनका दायरा अब सीमित हो गया है। एक सही रणनीति के माध्यम से हम अंतिम चोट कर भारत से नक्सलवाद को समाप्त कर सकते हैं। भारत में जब राज्य और केंद्र में समान पार्टियों की सरकारें होती हैं। तो केंद्र की योजनाओं को क्रियान्वयन संबंधित राज्य में सुचारू रूप से हो पाता है। अन्यथा राज्य सरकारें पार्टी विचारधारा की मजबूरी में केंद्र की योजनाओं को सही ढंग से क्रियान्वित नहीं कराती हैं। फलस्वरूप हमें अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाता है। मौजूदा परिदृश्य में भारत में केंद्र सरकार को नक्सल प्रभावित सभी राज्यों से भरपूर सहयोग मिलने की उम्मीद है। लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार का इस बैठक में भाग ना लेना और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री द्वारा पूर्व के कार्यकाल में नक्सल गतिविधियों में दर्ज हुए मुकदमे की समीक्षा करने का वक्तव्य देना गृहमंत्री के नक्सलियों से निपटने की नई मुहिम को कमजोर करता है।

नक्सलवाद पर लगाम लगाने के लिए अब हमें स्थानीय पुलिस को आगे करना होगा। स्थानीय पुलिस प्रशासन का अर्धसैनिक बलों के पीछे चलने का समय समाप्त हो गया है। स्थानीय पुलिस उस क्षेत्र विशेष के भौगोलिक स्थितियों से भली-भांति परिचित होती है। इसके साथ-साथ उनके अपने मुखबिर होते हैं। जिनको सक्रिय करने की आवश्यकता है, जिससे सही सूचनाएं सही समय पर सुरक्षाबलों को उपलब्ध हो सकें। यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि कानून व्यवस्था राज्य का विषय है, और राज्य को अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन अवश्य करना चाहिए। वर्तमान समय में राज्यों में पुलिस बल पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं। पिछले कुछ वर्षों की नक्सल गतिविधियों को देखने से स्पष्ट होता है कि अब नक्सल गतिविधियों में विस्फोटकों का प्रयोग हो रहा है, और बंदूकों का प्रयोग दिन प्रतिदिन घट रहा है।

नक्सलवाद का उद्देश्य भी अब बदल गया है। वर्तमान परिवेश में लाल रंग को हरे रंग से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। जिसकी पुष्टि हाल ही के दिनों में नक्सलियों के पास से बरामद पाकिस्तानी हथियारों से हो चुकी है। इसके साथ धारा 370 के हटाने पर बस्तर में नक्सलियों द्वारा अलगाववादियों के समर्थन में रैली निकालना भी उनके जुड़ाव को दिखाता है। इसलिए हमें इनकी विस्फोटको तक पहुंच और इनकी फंडिंग रोकने के लिए बंदूकधारी नक्सलियों से लेकर दिल्ली में बैठे सफेदपोश नक्सलियों तक चोट करने की आवश्यकता है।

नक्सलवाद अब सामाजिक आर्थिक समस्या नहीं रही है लेकिन इसको रोकने सामाजिक आर्थिक क्रियाओं का उपयोग किया जा सकता है। अब आवश्यकता है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नियमित समय अंतराल पर प्रमुख मंत्रियों के साथ-साथ उच्च प्रशासनिक अधिकारियों के दौरे लगातार होने चाहिए। जिस प्रकार की शुरूआत राजनाथ सिंह ने अपने कार्यकाल में की थी। इससे उस क्षेत्र विशेष में प्रशासन सक्रिय रहता है और वहां की स्थानीय समस्याओं को त्वरित दूर भी किया जाता है। जिससे क्षेत्र के लोगों में सरकार के प्रति विश्वास बढ़ता है। नक्सल क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं को ले जाने की आवश्यकता है। लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि विकास परियोजनाओं के कारण वहां जल, जंगल, जमीन प्रभावित ना हो, नहीं तो यह अंतिम समय के नजदीक पहुंचे नक्सलवाद को नया कारण दे सकती है।
-कुलिन्दर यादव

 

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