नक्सल समस्या पर केन्द्र के साथ राज्यों को भी काम करना होगा

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कश्मीर में धारा-370 व 35-ए हटा देने के बाद देश भर में यह अनुमान था कि कश्मीर में हालात बिगड़ेंगे लेकिन भारतीय सुरक्षा बलों ने माहौल को बहुत ही संजीदगी से संभाला, फिर भी रह-रहकर यह बात सुनाई जा रही है कि कश्मीर में अंदर ही अंदर आग सुलग रही है, यह तूफान से पहले की शांति है वगैरह-वगैरह इसे संभालना अब राजनेताओं, सरकार व प्रशासन की जिम्मेवारी है कि वह सुरक्षा बलों के बिना कश्मीरियों को खुलकर जिंदगी बसर करने का माहौल दें। परन्तु आंतक व हिंसा का दौर देश के मध्य से लेकर पूर्वी हिस्सों तक भी फैला हुआ है जिसे नक्सल समस्या के तौर पर पूरा देश जानता है।

नक्सल समस्या ने पिछले पांच वर्ष में कश्मीर के आतंक से भी ज्यादा जानें ली हैं और उसके द्वारा आम नागरिकों, अधिकारियों, नेताओं व सुरक्षा बलों को मारना निरंतर जारी है। नक्सल समस्या ने देश में आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा का मुखौटा ओढ़ रखा है जिस कारण ग्रामीण व जंगल क्षेत्रों के लोग उनके लिए सहज ही काम कर रहे हैं जबकि ये नक्सलवादी जिन लोगों के हितों की बात करते हैं उन्हीं के लिए मिलने वाले विकास अवसरों, कार्यों को वह रोक भी रहे हैं।

आज महाराष्टÑ, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक जैसे राज्यों के सुदूर क्षेत्रों में अगर सड़क, शिक्षा, चिकित्सा, औद्योगिक विस्तार नहीं हो पाया है तो उसके लिए यह नक्सली ही जिम्मेवार हैं। हालांकि आजादी के वक्त से केन्द्र व राज्य सरकारें इस समस्या को मिटाने में लगी हुई हैं परन्तु अभी तक पूरी सफलता नहीं मिली है। इसमें सरकारी कार्यशैली, राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं होना ही दो ऐसे मुख्य कारण हैं जो नक्सलवाद को जीवित रखे हुए हैं।

अभी दो रोज पूर्व एक बार फिर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में नक्सल प्रभावित दस राज्यों एवं उनके पुलिस प्रमुखों की बैठक भी हुई कि नक्सल समस्या का पूर्ण अंत किए जाने पर कोई रणनीति बने। अफसोस इस बार भी तीन राज्यों जिनमें महाराष्टÑ, तेलंगाना व पश्चिम बंगाल हैं के मुख्यमंत्रियों ने अपने अधिकारियों को भेजा जबकि यहां राजनीतिक नेतृत्व भी इस बैठक में पहुंचता तब समस्या से लड़ने की दृढ़ता सामने आती।

सुरक्षा बल किसी आतंकी गिरोह को गिरफ्तार कर सकते हैं, उनका एनकाउंटर कर सकते हैं, उनके प्रशिक्षण कैंपों को हटा सकते हैं, उनके नेटवर्क को तोड़ने के लिए जमीनी अभियानों को मूर्त रूप दे सकते हैं लेकिन समस्या का पूरा हल जिसमें अपराधियों या उनका साथ छोड़ चुके लोगों का पुर्नवास, नक्सली विचारधारा से ग्रामीणों व आदिवासियों को मुक्त करने का काम, रोजगार देने का काम, क्षेत्र में विकास कार्यों को गति देने का काम मुख्यमंत्रियों व केन्द्रीय मंत्रियों का है, जोकि वह अपनी नीतियों, निर्णयों व कार्यकमों से पूरा करते हैं। अत: नक्सल समस्या से निपटने के लिए सबको वक्त निकालना चाहिए।

अच्छा है यदि केन्द्र दृढ़ता से सुरक्षा बलों एवं प्रशासनिक सेवाओं की पूर्ण रणनीति के साथ नक्सलवादियों की हिंसा मिटाने का कार्य अब शुरू करता है, चूंकि लोकतंत्र में हिंसा का कोई काम नहीं। बेहतर होगा यदि नक्सली चुनाव लड़े अन्यथा देर से ही सही वह देश के गुस्से एवं इससे उपजी कार्यवाही से अब बच नहीं सकेंगे।

 

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