मरीजों के लिए संसाधन जुटाने में तेजी लाई जाए

Accelerate resource mobilization for patients

कोविड-19 की दूसरी लहर के संघातिक होने के पूवार्नुमान पहले से ही चिकित्सक और वैज्ञानिकों ने लगाए थे। उन्होंने दुनिया को और दुनिया की सरकारों को उन्होंने चेताया भी था किंतु जिन्होंने पहले से तैयारी की वह इसके असर से खुद को बचा सके। जिन्होंने तैयारी नहीं की वे बुरी तरह चपेट में आ गये।

दुनिया के महत्वपूर्ण चिंतकों की राय है कि भारत में प्रति दस हजार की आबादी पर केवल 8.5 बिस्तर ही अस्पतालों में उपलब्ध हैं और इसी तरह प्रति दस हजार की आबादी पर मात्र आठ चिकित्सक। इसके बावजूद बेजान हेल्थ केयर डिलीवरी सिस्टम करेला और नीम चढ़ा की तरह हमें नाक चिढ़ाता है। फिच की एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत में स्वास्थ्य बीमा 80 प्रतिशत आबादी की पहुंच में नहीं है 68 प्रतिशत आबादी आवश्यक दवाओं की पहुंच से दूर है।

आज भी स्थिति यह है कि प्रत्येक 25 व्यक्तियों में से केवल एक व्यक्ति को ही हम वैक्सीन लगा सके हैं जबकि ब्रिटेन में हर दो व्यक्ति में से एक और अमेरिका में हर तीन व्यक्ति में से एक वैक्सीनेट हो चुका है। मरीजों की बेतहाशा बढ़ती संख्या के बीच अस्पतालों में आईसीयू बेड, ऑक्सीजन सिलिंडर और रेमडेसिविर दवा की भारी कमी की खबरें कई राज्यों से आ रही हैं।

दिल्ली सरकार ने तो आधिकारिक तौर पर इन सबकी कमी की बात मानी है। कई राज्यों से ऐसी अपुष्ट रिपोर्टें आ रही हैं। इस ढांचागत कमी के बावजूद भी स्वास्थ्य सेवाओं के संबंध में फैसला लेने वाले हमारे जनप्रतिनिधि और सरकारें इसे राजनीतिक और कानून व्यवस्था की समस्या की तरह प्रबंधित कर रहीं हैं जिसका शिकार आम जनता हो रही है जिसे संविधान ने जीवन रक्षा करने का मौलिक अधिकार दिया है।

असफल राजनैतिक प्रशासनिक सिस्टम के साथ साथ हमें हमारे सामाजिक ढांचे की असफलता पर भी विचार करना होगा। कई जगहों से रेमडेसिविर ब्लैक में कई गुना ज्यादा कीमत पर बेचे जाने की खबरें मिल रही हैं। इन पर रोक लगाने की कोशिशें फलित नहीं हुई हैं। आईसीयू बेड की कमी से निपटने के भी प्रयास हुए हैं, लेकिन वे काफी नहीं। ऐसे संकटपूर्ण हालात में जहां आवश्यक कदमों में असामान्य तेजी लाने की जरूरत होती है, वहीं शांति, समझदारी और संयम बरतने की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। सरकार उस मोर्चे पर पूरी कड़ाई बरते।

लॉकडाउन जैसे कदमों से त्रस्त लोगों की तकलीफ समझी जाए, जहां तक हो सके उनकी मदद करने की कोशिश हो। लेकिन सरकार के लिए सबसे बड़ा और कठिन मोर्चा है मरीजों के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने का। जिस तरह से वायरस अपना पैटर्न बदल रहा है उसी रफ्तार से हमें रणनीति बदलनी होगी, तब हम सब मिल-जुलकर इस कठिन चुनौती से भी पार पा लेंगे।

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