जिंदगी बचाने की कशमकश

Article, Life Saving, Ambulance, Hospital, Problem

अत्याधिक भीड़-भाड़ वाले बाजार, पग-पग गड्डों वाली सड़कें, बेतरतीब ढंग से जगह-जगह खडे वाहन और उन सबके बीच आड़ी-तिरछी होकर, हुटर बजाते हुए दौड़ती एंबुलैंस हम सबने देखी है गांवों में, शहरों में और महानगरों में। दिन में भी और रात में भी। क्या कभी किसी ने सोचा है कि एंबुलैंस चलाने वाले को एक मरीज की जान बचाने के लिए कितना कुछ करना पड़ता है?

क्या-क्या परेशानियां झेलनी पड़ती हैं? कहीं आगे मस्ती से चल रहे वाहन चालक से बचते हुए निकलना तो कहीं जगह जगह हूटर का प्रयोग कर अपने लिए रास्ता बनाना। एक तरफ हम डिजीटल इंडिया बनाने की ओर बढ़ रहे हैं, महंगी से महंगी लग्जरी गाड़ियां हमारी सड़कों पर भी दौड़ने लगी है पर क्या हम सिर ऊंचा कर यह कह सकते हैं कि हम ट्रेफिक नियमों की ईमानदारी से पालना करते हैं।

शायद नहीं, क्योंकि हम में से शायद ही कोई करता हो। हां, जहां कहीं भी चौक-चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस खड़ा दिखाई दे, तो हमारा हाथ सीट बैल्ट की ओर मिनट में चला जाता है और जहां देखा कोई नहीं बेफिक्री से वाहन चलाने लगते हैं।

बात फिर से वहीं लाते हैं, हमारे देश में एक मरीज को सही समय पर अस्पताल पहुंचाने की, ताकि उसकी जान बच जाए। बेशक एंबुलैंस चालक अपनी जान जोखिम में डाल कर कभी आड़ी-तिरछी गाड़ी चलाकर तो कभी राँग साईड से निकालकर अपना फर्ज निभाता है। परंतु कुछ फर्ज हमारे भी बनते हैं और वो हैं सड़क पर चलते हुए यातायात नियमों की पालना करने के।

अगर हम सड़क पर वाहनों को बेलगाम भगाने और एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में जहां भी जगह मिले, वहीं गाड़ी फंसा देते हैं। जब कभी खुद को एंबुलैंस में अपनों के साथ जाने का मौका मिले, तो मन ही मन हर किसी को कोसते हैं लेकिन जब बात खुद पर आती है, तो नियमों की धज्जियां उड़ा देते हैं।

चलती गाड़ी में मोबाईल पर बातें करना, ऊंची आवाज में म्यूजिक सुनना, जहां जगह मिले वहीं गाड़ी खड़ी कर देना… ये कुछ विशेषताएं हैं हमारी। हम अपनी सुविधा के बारे में सोचने तक ही सीमित रहते हैं दूसरों की परवाह बिल्कुल नहीं करते।

आज कल ग्रीन जोन बनाने का चलन शुरू हुआ है। हम अक्सर पढ़ते हैं कि फलां महानगर में इतने मिनटों में हार्ट या किडनी को दूसरे महानगर में पहुंचा दिया। ग्रीन जोन में एंबुलैंस को रास्ता एकदम क्लीयर मिलता है।

उसके रास्ते में कोई वाहन नहीं आते और वो पूरी स्पीड से अपने गंतव्य से चलकर अस्पताल या ट्रामा सैंटर तक पहुंच जाती है। लेकिन अगर हम भारतीय थोड़ी जागरूकता का परिचय दें और सड़क से गुजरने वाली हर एंबुलैंस को रास्ता मिलता रहे, तो शायद अस्पताल पहुंचने से पहले दम तोड़ने वाली मरीजों की संख्या में तो गिरावट आ ही सकती है साथ ही कई अनमोल जिदंगियां और परिवार उजड़ने से बच सकते हैं।

यह हम सबका फर्ज ही नहीं बल्कि नैतिक जिम्मेवारी भी हो कि सड़क से गुजरने वाली एंबुलैंस को तो रास्ता मिलेगा ही मिलेगा। सरकार को भी इस दिशा में सकारात्मक प्रयास करने चाहिए और ऐसा न करने वालों के लिए दंड का प्रावधान भी होना चाहिए।

-लेखक आनन्द

 

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।