चेहरे बदलने से अच्छा जनसमस्याएं हों हल

Regionalism, Nationalism

भारत की दोनों प्रमुख भारतीय पार्टियों- भाजपा और कांग्रेस में आजकल जोर की उठापटक चल रही है। कांग्रेस में यदि पंजाब और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों को बदले जाने की अफवाहें जोर पकड़ रही हैं, तो पिछले छह महीने में भाजपा ने अपने पांच मुख्यमंत्री बदल दिये है। राजनीति में ताजा प्रकरण गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का है। इससे पहले असम में सवार्नंद सोनोवाल, कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा और उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री के पद से हटाया गया है। असम के अलावा इन सभी राज्यों में जल्दी ही चुनाव होने वाले हैं। चुनावों की तैयारी साल-डेढ़ साल पहले से होने लगती है। यहां असली सवाल है कि पुराने मुख्यमंत्री को चलता कर देने और नए मुख्यमंत्री को कुर्सी दिलवाने का प्रयोजन क्या है?

यह प्राय: तभी होता है, जब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को ऐसा लगने लगता है कि जनता उन्हें पसंद नहीं कर रही, जनता में उनका वर्चस्व खत्म हो रहा है। अब जैन रूपाणी की जगह पर भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमंत्री इसीलिए बनाया गया है, क्योंकि गुजरात में पटेलों के 13 प्रतिशत वोट को भाजपा खोना नहीं चाहती। राष्ट्रवादी भाजपा पार्टी की चिंताएं भी वही हैं, जो देश की अन्य जातिवादी और सांप्रदायिक पार्टियों की हैं। उसे भी जातियों के वोट बैंक चाहिए। नए मुख्यमंत्री के लिए इतने कम समय में सब कुछ अपने अनुकूल कर पाना आसान नहीं होगा। यूं भी जब चुनाव से कुछ समय पहले किसी राज्य में मुख्यमंत्री को बदला जाता है तब विपक्ष को यही संदेश जाता है कि मौजूदा मुख्यमंत्री के नेतृत्व में चुनावी जीत हासिल करना कठिन था। क्या गुजरात में भी कुछ ऐसा था?

पता नहीं विजय रूपाणी की विदाई किन कारणों से हुई, लेकिन माना यही जाएगा कि भाजपा उनके मुख्यमंत्री रहते फिर से सत्ता में लौटने की संभावनाएं नहीं देख पा रही थी। अच्छा होता कि भाजपा नेतृत्व गुजरात के बारे में समय रहते आकलन करता। 2017 के चुनाव में गुजरात में मिली कम सीटों ने भाजपा को सतर्क कर दिया था। यदि अगले चुनाव में भाजपा के हाथ से गुजरात खिसक गया तब दिल्ली को बचाना और भी मुश्किल हो सकता है। ताबड़तोड़ मुख्यमंत्रियों को बदल देने का एक अर्थ यह भी है कि अखिल भारतीय पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व का विश्वास खुद पर से डोल रहा है। कोरोना की महामारी, लंगड़ाती अर्थ-व्यवस्था, अफगानिस्तान पर हमारी अकर्मण्यता और विदेश नीति के मामले में अमेरिका का अंधानुकरण यह बताता है कि भाजपा सरकार से राष्ट्र को जो अपेक्षाएं थीं वे अभी भी पूरी होना बाकी हैं।

 

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