…वो अलकनंदा सी बही और बनाया अलग मुकाम

Alaknanda

कामयाबी की दास्तां पति से 40 हजार रुपये लेकर पकड़ी थी स्वरोजगार की राह (Struggle of Alaknanda)

  • बिहार की बेटी ने हरियाणा में आकर किया खुद को स्थापित

संजय मेहरा / सच कहूँ गुरुग्राम। मंजिल मिल ही जाएगी एक दिन-भटकते हुए ही सही, गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं। पूरे होंगे हर वो ख्वाब जो देखते हैं अंधेरी रातों में, ना सम­ा हैं वो, जो डर से रात भर सोते ही नहीं।।’’ ऐसा ही संदेश दे रहा है श्रीमती अलकनंदा कुमार का जीवन। ( Struggle of Alaknanda ) अलकनंदा वह नाम है, जो अलकनंदा नदी सी बहकर आगे बढ़ी और हासिल कर लिया एक अलग मुकाम। जीरो से शुरू होकर हीरो बनी अलकनंदा समाज में सफलता का बड़ा उदाहरण है। बिहार की राजधानी पटना से शादी करके पति कमलेश कुमार के साथ श्रीमती अलकनंदा कुमार गुरुग्राम पहुंची। पति कमलेश कुमार दिल्ली स्थित साउथ अमेरिकन एम्बेसी में नौकरी करते थे।

  • घर में रहते हुए एमकॉम तक पढ़ी अलकनंदा हमेशा यही सोचती रहती थी।
  • घर में बैठकर खाली समय बिताने से अच्छा है क्यों न कुछ काम शुरू किया जाए।
  • यह उनकी मजबूरी नहीं थी, बल्कि शौक था।
  • आर्थिक दृष्टि से उनका परिवार काफी संपन्न था।
  • फिर भी उनको खुद कुछ काम करने का जुनून था।
  • बात वर्ष 1997 की है। बिहार से उनके पिता रवि निवास एवं माँ मीना सिंह ने करीब पांच क्विंटल आम भेजे थे।
  • आम कच्चे थे तो उनकी सास ने अचार बनाने का सुझाव दिया।
  • अलकनंदा को अपने ससुर अरूनी कुमार और सास सुभद्रा कुमार का भरपूर सहयोग मिला।

प्रति महीना 25 हजार किलो से भी अधिक अचार आज उनकी फैक्ट्री में तैयार होता है।

सास के साथ मिलकर अलकनंदा ने उन आमों का अचार तैयार किया। काफी सारा अचार तैयार हुआ तो उन्होंने आस-पड़ोस में भी बांट दिया। फिर भी काफी बच गया। बचे हुए आचार को उन्होंने गुरुग्राम के सेक्टर-4 में बेचने को एक स्टॉल लगाया। इस दौरान उन्हें गजब का रिस्पॉन्स मिला और हाथों-हाथ अचार बिकना शुरू हो गया। यहीं से अलकनंदा के जीवन में बड़ा बदलाव आया। उन्होंने अचार के काम के माध्यम से जीवन में स्वरोजगार को अपनाकर उद्योगपति बनने की राह पर निकल पड़ी। इसके बाद उन्होंने अचार बनाने की एक छोटी फैक्ट्री लगाई, जिसमें पांच-छह महिलाओं को काम दिया। वे महिलाओं को काम में प्राथमिकता देती हैं।

  • अपने पति से उन्होंने 40 हजार रुपए लेकर इस काम को शुरू किया।
  • अलकनंदा कहती हैं कि उनका अचार स्वास्थ्य के हिसाब से भी लाभदायक है।
  • काफी सारी आॅर्गेनिक चीजें मिश्रित की जाती हैं।
  • अब राजस्थान के भिवाड़ी में उनकी बड़ी फैक्ट्री है।
  • प्रति महीना 25 हजार किलो से भी अधिक अचार आज उनकी फैक्ट्री में तैयार होता है।

इंटरनेशनल लेवल पर प्रोडक्ट भेजने की तैयारी

अलकनंदा के मुताबिक पहले उन्होंने दूसरी कंपनियों के लिए अचार समेत कई प्रोडक्ट तैयार किए, जो कि विदेशों तक जाते थे। उसके बाद खुद का ब्रांड बनाया। अभी तक इंगलैंड, कनाडा, दोहा, दुबई, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंंड, मस्कट आदि देशों में उनके यहां बना अचार दूसरे ब्रांड के माध्यम से जाता था। अब वे इंटरनेशनल मार्केट में अलकनंदा अपने प्रोडक्ट को भेजकर खुद के पर फैलाने की तैयारी में है।

काम को लेकर कभी नहीं झिझकी

खास बात यह है कि अलकनंदा ने अपने इस काम को स्थापित करने के लिए खुद मेहनत की है और आज भी कर रही हैं। अब किसी को भी उत्पाद की जानकारी देना होती है तो अलकनंदा खुद चली जाती हैं। वह कहती हैं कि जिस बिजनेस को उन्होंने जीरो से शुरू किया और आज सबके सहयोग, आशीर्वाद से मुकाम पर पहुंचाया है तो वह उसको बढ़ाने के लिए कहीं पर भी जाने में कोई झिझक नहीं मानती। अलकनंदा ने अपने अचार उत्पाद को रॉयल च्वॉयस नाम दिया है। यही नाम उनका ट्रेड मार्क बन चुका है। आल आवर इंडिया उनकी फैक्ट्री में बने उत्पादों की बिक्री हो रही है। अलकनंदा के मुताबिक अचार, मसाले और स्क्वैश उनकी फैक्ट्री में बनाए जाते हैं। इसमें 15 प्रकार का अचार, आठ प्रकार के मसाले और चार प्रकार का स्क्वैश है। इन सभी की 50 से अधिक छोटी-बड़ी पैकिंग हैं।

पति ने एम्बेसी की नौकरी छोड़ अपनाया बिजनेस

अलकनंदा बताती हैं कि जब उनके अचार का बिजनेस चल गया तो पति कमलेश कुमार भी एम्बेसी से नौकरी छोड़कर उनके साथ आ गए। अब पूरा परिवार मिलकर अचार के बिजनेस को चला रहा है। अलकनंदा महिलाओं से कहती हैं कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। हम शुरूआत छोटे से करके उसे बड़ा बना सकती हैं।

  • 40 हजार रुपए अपने पति से उन्होंने लेकर इस काम को शुरू किया।
  • अलकनंदा कहती हैं कि उनका अचार स्वास्थ्य के हिसाब से भी लाभदायक है।
  • काफी सारी आर्गेनिक चीजें मिश्रित की जाती हैं।
  • अब राजस्थान के भिवाड़ी में उनकी बड़ी फैक्ट्री है।
  • प्रति महीना 25 हजार किलो से भी अधिक अचार आज उनकी फैक्ट्री में तैयार होता है।

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