आक्रोश शांत कर लंका वासी देश को पटरी पर लाएं

Sri Lanka Economic Crisis

पिछले कुछ दिनों में श्रीलंका में घटनाक्रम तेजी से बदला है, पर इसे अप्रत्याशित नहीं कहा जा सकता है। बेहद गंभीर आर्थिक संकट के कारण वहां समाज और राजनीति में कई महीने से अस्थिरता व्याप्त है और लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि यह अनिश्चिता का माहौल अभी बना रहेगा। मई में प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा था और रानिल विक्रमसिंघे के नेतृत्व में नयी सरकार गठित हुई थी। इस बदलाव के बावजूद हालात बद से बदतर होते गये। महिंदा राजपक्षे के प्रधानमंत्री रहते ही श्रीलंका एक प्रकार से दिवालिया हो गया था और उसके पास विदेशी कर्ज चुकाने या बाहर से चीजें आयात करने के लिए विदेशी मुद्रा नहीं बची थी।

उनके पद से हटने के बाद ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि उनके भाई गोटाबया राजपक्षे भी जल्दी ही राष्ट्रपति पद छोड़ देंगे और नये सिरे से नये कार्यक्रम के तहत सरकार संकट से निकलने का प्रयास करेगी, पर ऐसा नहीं हुआ और गोटाबया राजपक्षे राष्ट्रपति बने रहे। चूंकि जनता की परेशानियां बढ़ती जा रही थीं, तो आक्रोश भी गहन होता जा रहा था। खबरों में हम पेट्रोल पंपों में लंबी कतारें देख रहे हैं, वह समस्या तो है ही, पर उसके साथ-साथ जीवनरक्षक दवाओं की भी बड़ी कमी हो गयी है, क्योंकि विदेशी मुद्रा नहीं होने के कारण उनका आयात करना संभव नहीं हो रहा है। मुद्रास्फीति इतनी अधिक है कि आर्थिक रूप से बहुत अधिक संपन्न लोग ही खाने-पीने की चीजों और अन्य जरूरी वस्तुओं की खरीद कर पा रहे हैं। इन चीजों की उपलब्धता भी बहुत घट चुकी है।

यह स्पष्ट रूप से समझना जरूरी है कि श्रीलंका की स्थिति ठीक होने में लंबा समय लगेगा। आर्थिक स्थिति इतनी चौपट हो चुकी है कि किसी चमत्कार से ही उसका कोई तुरंत समाधान हो सकता है। अभी कुछ समय के लिए यही हो सकता है कि श्रीलंका के पड़ोसी देश और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं तात्कालिक तौर पर मदद मुहैया कराएं, ताकि लोगों को राहत मिले तथा देश को आगे का रास्ता बनाने का वक्त मिले। महिंदा राजपक्षे भी सभी पार्टियों को लेकर सरकार बनाना चाहते थे, पर सहमति नहीं बन सकी। ऐसा विक्रमसिंघे के साथ भी हुआ। एक पहलू यह भी है कि क्या ऐसे समय में आम चुनाव पर खर्च करना समझदारी की बात होगी? और अगर आम चुनाव होता है, तब उसका खर्च कहां से आयेगा? बेहतर हो कि श्रीलंका के लोग अपनी संसद के इसी कार्यकाल में देश को पटरी पर लाने के प्रयास जारी रखें सरकार भले बदल लें।

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