Chanda aur Suraj : चंदा और सूरज

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सू रज बहुत सुन्दर लड़का था और चंदा एक सुन्दर लड़की। दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो गया सो उन्होंने विवाह कर लिया। उनके एक लड़की हुई जो मां की तरह सुन्दर पिताजी की तरह हंसमुख थी। दोनों उसे अत्यधिक प्यार करते। उन्होंने उसका नाम पृथ्वी रखा। सारे तारे पृथ्वी को पाकर बहुत खुश हुए। वे उसके स्वागत के लिये और झिलमिलाते हुए चमकने लगे। चंदा और सूरज को अपनी बेटी पृथ्वी पर बहुत गर्व था। वे अपनी नन्हीं बेटी को तनिक भी आंखों से ओझल नहीं होने देते। दिन और रात सावधानी से उनकी देखभाल करते। वे पृथ्वी से इतना प्यार करने लगे कि वे यह भी भूल गए कि वे एक दूसरे से कितना प्यार करते थे। वे एक दूसरे से दूर छिटकते गए। उनमें झगड़े होने लगे। इससे पहले कि वे एक-दूसरे की सूरत भी न देखना चाहने की स्थिति में आएं, उन्होंने अलग हो जाना तय किया।
अलग होने की व्यवस्था आसानी से हो गई पर पृथ्वी का क्या हो? दोनों में से एक भी अपनी प्यारी बेटी एक दूसरे को देने को राजी नहीं था। उन्होंने तारों से निवेदन किया कि वे निर्णय करें कि उन दोनों में से कौन पृथ्वी की देखभाल के लिये श्रेष्ठ रहेगा पर ऐसा निर्णय बहुत मुश्किल था। तारे यह तय न कर सके। अन्त में उन्होंने कहा कि सूरज और चंदा एक दूसरे के विरूद्ध दौड़ें। दौड़ में जीतने वाले के पास पृथ्वी रहेगी। दौड़ का दिन आया। चंदा की हवाओं से हमेशा दोस्ती रही थी। उसने हवाओं से पूछा कि क्या वे उसकी दौड़ जीतने में मदद करेंगी? क्योंकि उसने पृथ्वी को न छोड़ने का निश्चय किया था, हवाओं ने मदद की हामी भरी। बादल यह बात सुन रहे थे। उन्हें यह उचित नहीं लगा कि सूरज को लड़ने के लिये अकेला छोड़ दिया जाए और चंदा की मदद की जाए। सो बादलों ने पूरी दौड़ को सावधानी से देखकर कोई ऐसा रास्ता निकालना तय किया जिसे सूरज की मदद हो सके।
तारों ने दौड़ का चक्र तय किया। सूरज और चंदा ने एक साथ दौड़ना शुरू किया पर हवाएं चांद से पीछे बहुत तेजी से चली इसलिए चंदा सूरज से तेजी से दौड़ने लगी और उससे आगे निकल गई। उसने जीतने के लिए अपनी गति और तेज कर दी। पर बादल यह देख रहे थे। उन्होंने तारों को ढक लिया ताकि चंदा यह न देख सके कि कहां से मुड़ना है और वह तेज गति से दौड़ता हुआ चक्र से बाहर चला गया किन्तु जब सूरज मोड़ पर आया तो बादल तितर-बितर होकर हट गये। तब चंदा यह देख सकी कि वह रास्ते से कहां हट गई है पर तब तक तो सूरज काफी आगे निकल गया था।
बहरहाल हवाओं ने चंदा की फिर मदद की और वह फिर से रास्ता पकड़ने में सफल रही और दौड़ का अन्त फिर यह हुआ कि चंदा और सूरज दोनों अंतिम रेखा पर बिलकुल एक साथ पहुंचे और बराबर रहे और इस तरह यद्यपि तारों ने दोनों के बीच का मामला सुलझाने की कोशिश की थी पर वे असफल रहे क्योंकि दोनों दौड़ में बराबर रहे। तो यही न्यायोचित होगा कि ये पृथ्वी को आपस में बांट लें और उन्होंने समय का विभाजन कर कहा कि सूरज दिन के समय पृथ्वी की देखभाल करेगा, साथ रहेगा जबकि चंदा रात के समय पृथ्वी को देखेगा, साथ रहेगा। या तो वे दोनों यह निर्णय मानें या पृथ्वी को छोड़ दें और भूल जायें। सूरज चांद दोनों इस पर सहमत हो गये। दोनों के बीच हुआ वह करार आज तक चला आ रहा है। सूरज दिन में पृथ्वी को देखता है, चांद रात में देखभाल करता है।

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