राम का नया स्कूल

Children Story
राम एक 9वीं कक्षा का विद्यार्थी है और हमेशा से पढ़ने लिखने में बहुत ही अच्छे दिमाग का रहा है। आठवी कक्षा तक उसकी अटेंडेंस हमेशा पूरी रहती थी और उसकी पिछली कक्षा आठवीं में तो उसकी अटेंडेंस लगभग 97 प्रतिशत थी। इससे उसकी टीचर भी उससे बहुत खुश रहते थे। हमेशा पढ़ाई में अव्वल रहने वाला राम हमेशा बहुत अच्छे नंबरों से पास होता था। इस साल नौवीं कक्षा में उसके माता-पिता ने उसका एडमिशन दूसरे स्कूल में करवा दिया। क्योंकि उसका पिछला स्कूल आठवीं कक्षा तक ही था।
नवी कक्षा में एक नया स्कूल, एक नया माहौल सब कुछ बदल गया था। राम को भी अपनी नई किताबों के साथ नए स्कूल में जाना बहुत ही उत्साहवर्धक लग रहा था। राम के मां बाप भी बहुत खुश थे। राम ने एक बार फिर अपनी पढ़ाई पूरे ध्यान से करनी शुरू कर दी। नये स्कूल में राम नए-नए मित्र बने। टीचर भी सारे नए थे लगभग 2 महीने की कक्षा के बाद राम का स्कूल जाना कुछ कम सा हो गया और 90% से ऊपर हाजिरी रखने वाला राम धीरे-धीरे स्कूल बहुत ही कम जाने लगा। राम के माता पिता ने शुरू-शुरू में यह बात ध्यान नहीं दी लेकिन धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि पता नहीं क्यों राम स्कूल जाने से बचने लगा है।
राम पढ़ने लिखने में तो बहुत ही उत्तम बच्चा था। किंतु अपने मन की बातों को अपने मां-बाप के साथ शेयर नहीं कर पाता था।ना जाने राम के दिमाग में क्या चल रहा था लेकिन उसने स्कूल आना-जाना बहुत कम कर दिया था। आखिर एक महीने बाद राम के पीटीएम का समय आ गया। राम के पिता राम की क्लास टीचर से मिलने पहुंचे। तब क्लास टीचर ने राम के पिता को बताया। कि राम कक्षा से बहुत ज्यादा गायब रहने लगा है। स्कूल में आता है तो खोया-खोया सा रहता है। आप उससे जानने की कोशिश करें कि वह पढ़ाई में इतना क्यों पिछड़ता जा रहा है।
राम के पिता भारी मन के साथ क्लास टीचर के पास से उठे और धीरे-धीरे अपने घर की तरफ जाने लगे।घर जाकर बडी ही समझदारी से राम के पिता ने राम से पूछा बेटा क्या हुआ, क्या तुम्हारा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है। राम कुछ देर तो चुप रहा लेकिन कुछ देर बाद राम की आंखों में आंसू आने लगे। अचानक राम को रोता देखकर राम के पिता का मन दुखी हो गया। उन्होंने पूछा बेटा बताओ मुझे क्या बात है। क्या किसी ने कुछ कहा है।
तब राम ने अपने पिता को बहुत डरते हुए बताया पापा इस स्कूल में सब बड़े-बड़े घरों के बच्चे आते हैं जो बहुत अच्छे पैसे वाले हैं। कुछ अपनी गाड़ियों से आते हैं और कुछ अपनी अपनी बाइक से आते हैं। लेकिन मैं अक्सर या तो पैदल जाता हूँ या आप मुझे छोड़ देते हो। यह सब देख कर मुझे कक्षा के सभी विद्यार्थी गरीब-गरीब कहकर चिढ़ाते हैं। राम के पिता को समझते कुछ भी देर न लगी कि राम अपनी गरीबी को लेकर परेशान है। तब राम के पिता ने उसे समझाया बेटा आगे बढ़ने के लिए हर व्यक्ति को कहीं ना कहीं से शुरूआत करनी पड़ती है।
तुम अपने आपको इस तरीके से तैयार करो। इन छोटी-छोटी बातों से तुम्हें कभी परेशान ना होना पड़े और एक दिन ऐसा आए तुम इन सब बच्चों से आगे निकलो और अपनी कक्षा में नंबर एक पर रहकर सबसे ऊपर खड़े दिखाई दो। राम के मन की परेशानी काफी हद तक दूर हो गई और उसने पूरी लग्न से अपनी पढ़ाई शुरू कर दी। अपनी नौंवी और दसवीं कक्षा में अपनी मेहनत के साथ राम ने पूरे स्कूल को टॉप किया और बड़ी-बड़ी गाड़ियों में आने वाले बच्चों के सामने खड़े होकर टॉपर की ट्रॉफी लेते हुए अपने लिए सभी बच्चों को अपने लिए ताली बजाने के लिए मजबूर कर दिया।
राम के पिता की छाती गर्व से चौड़ी हो गई और उन्होंने राम को खुशी से गले लगा लिया। राम अपने पिता के सही मार्गदर्शन से एक बार फिर कक्षा में सबसे आगे बढ़ गया। पहले की तरह उसकी कक्षा के सारे साथी उसके पास आकर बाते करते थे। लेकिन अब उससे पढ़ाई अच्छी करने के लिए पूछा करते थे। अपनी पढ़ाई की बदौलत अब राम दूसरे बच्चों के मां-बाप के लिए एक उदाहरण बन चुका था। अब सभी बच्चो के माता पिता अपने बच्चों को राम जैसा बनने के लिए कहते है।
-नीरज त्यागी

 

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