कांग्रेस का प्रधान और राजनीतिक परंपरा

Congress

लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी में अध्यक्षता का मामला लंबित पड़ा है पार्टी के 23 बड़े नेताओं ने पार्टी को नई रूपरेखा से संगठित करने के लिए कहा है, विशेष रूप से प्रधान चुने जाने की मांग की है। यह दौर कांग्रेस पार्टी ही नहीं बल्कि लोकतंत्र में विपक्ष की महत्वता के साथ जुड़ा हुआ है। दरअसल प्रधान बदलने के लिए कांग्रेस में अलग-अलग ब्यान आने शुरू हो गए हैं। एक पक्ष गांधी परिवार से प्रधान बदलने की मांग कर रहा है और दूसरा पक्ष गांधी परिवार की तारीफें कर अध्यक्षता गांधी परिवार के पास रखने का समर्थन करने के साथ-साथ नई मांग करने वालों को कोस भी रहा है। यह परंपरा भी पार्टी के लिए अच्छी नहीं जो केवल प्रशंसा करने की बयानबाजी कर रहे हैं।

कांग्रेस ने 60 वर्ष देश में सरकार चलाई है और उसके पास राजनीति के सिद्धांत और पार्टी चलाने की परंपरा भी रही है जहां तक गांधी परिवार का संबंध है, 2019 के बाद इस परिवार ने पार्टी में पद के लिए कोई लालच नहीं दिखाया। राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद पार्टी नेताओं को नए प्रधान का चयन करने के लिए कहा था। सोनिया गांधी ने भी कार्यकारी प्रधान इस शर्त पर बनना स्वीकार किया कि पार्टी के नेता नया प्रधान चुनेंगे। इसी कारण उन्होंने लंबे समय अध्यक्षता पद संभालने की पेशकश को भी नकारा है। जनरल सचिव प्रियंका गांधी ने भी किसी गैर-गांधी व्यक्ति प्रधान चुनने की बात कही है। इस मामले में पार्टी नेताओं को नए प्रधान की मांग करने वालों का विरोध करने या फटकार लगाने की परंपरा को छोड़कर पार्टी को पूरी तरह लोकतंत्रीय रास्ते पर बरकरार रखने की आवश्यकता को समझना होगा। खुद गांधी परिवार पार्टी में लोकतंत्र की बात करता रहा है लेकिन कुछ नेता इस मामले में सुर्खियां बटोरने की कोशिश कर रहे हैं जो अपने आप में सतही राजनीति का प्रमाण है।

पार्टी का चुनावों में प्रदर्शन सुधारने के लिए पार्टी संगठन की प्रक्रिया और कार्य में सुधार की आवश्यकता होती है। इस कार्य के लिए चिंतन और विचार आदान-प्रदान करना जरूरी है। खुद को राहुल गांधी या सोनिया गांधी के शुभचिंतक साबित करने का खेल खेलने की बजाए पार्टी को उभारने के लिए सिद्धांतों और परंपराओं को संभालने की आवश्यकता है। राहुल गांधी और सोनिया गांधी जैसे राष्ट्रीय नेता किसी नेता की प्रशंसा के जाल में फंसने की स्थिति में नहीं हैं। गांधी परिवार विरोधियों द्वारा कांग्रेस पर लगाए जा रहे वंशवाद के आरोपों के मामले में सामना करने के लिए भी यह कदम उठाने के लिए प्रयत्नशील नजर आ रहा है। दो लोकसभा चुनावों में हार के बाद वे पार्टी के लिए हर वह कदम उठाना चाहते हैं जो पार्टी को एकजुट बनाकर एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाए।

 

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