खुरा महंगाई दर नवंबर में 5.9 फीसदी रही। इस साल जनवरी के बाद पहली बार यह 6 फीसदी से नीचे आई है, जो भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से इसका अधिकतम लक्ष्य है। यदि यह 4 फीसदी तक आ जाए तो रिजर्व बैंक और सरकार के लिए राहत की बात होगी। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कह दिया है कि महंगाई का सबसे बुरा दौर अब पीछे छूट चुका है। मौद्रिक नीति के एलान के बाद उन्होंने स्पष्ट किया कि क्यों रिजर्व बैंक को अब महंगाई के मोर्चे पर कुछ राहत दिखती है। उन्होंने कहा कि कच्चे तेल से लेकर दूसरी तमाम कॉमोडिटी या जरूरी वस्तुओं के दामों में लगातार गिरावट आ रही है, जिसकी वजह से विश्व भर में महंगाई बढ़ने की रफ्तार काफी कम होती दिख रही है। हालांकि, उन्होंने यह भी चेताया कि हथियार रखकर चैन से बैठने का वक्त फिलहाल नहीं आया है।
रिजर्व बैंक के अनुसार, खुदरा महंगाई का आंकड़ा इस तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर) में 6.6 प्रतिशत और अगली तिमाही, यानी जनवरी से मार्च तक 5.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है। सितंबर में मौद्रिक नीति के समय बैंक ने इन दोनों तिमाहियों के लिए महंगाई 6.4 प्रतिशत व 5.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था। इसी के साथ बैंक का यह भी कहना है कि चालू वित्त वर्ष में महंगाई का औसत 6.7 प्रतिशत रहेगा। अगर यह अनुमान सही निकला, तो इसका मतलब यह हुआ कि महंगाई ठीक वहीं पहुंच जाएगी, जहां वह यूक्रेन पर रूस के हमले के ठीक पहले थी, यानी फरवरी में। यहां यह याद रखना चाहिए कि यूके्रन पर रूस के इस हमले के साथ ही, दुनिया भर के बाजारों में खाने-पीने की सामग्री के भावों में अचानक आग-सी लग गई थी।
भारत के लिए यह खासकर चिंताजनक स्थिति रही है, क्योंकि यहां महंगाई के आंकड़े में 40 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी सिर्फ खाने-पीने की चीजों की ही होती है। नवंबर में खुदरा महंगाई दर में कमी आने का मतलब यह नहीं है कि आने वाले महीनों में भी यह सिलसिला जारी रह सकता है। दरअसल, महंगाई दर में कमी सब्जियों के दाम घटने की वजह से आई है, जबकि कोर इन्फ्लेशन (इसमें खाद्य और ईंधन को शामिल नहीं किया जाता) में सालाना आधार पर 6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जब तक इसमें कमी का ट्रेंड क्लीयर ना हो जाए, तब तक रिजर्व बैंक को सावधान रहना होगा। ऐसे में, भारत के लिए यह शुभ संकेत है कि महंगाई की रफ्तार कम पड़ रही है या आगे और नहीं बढ़ रही है।
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