जनतंत्र का उत्सव

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पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार 8.43 करोड़ मतदाता बढ़े हैं। इस बार कुल 90 करोड़ मतदाता वोट डालेंगे, जिनमें 18-19 साल के डेढ़ करोड़ युवा पहली बार मतदान करेंगे। बहरहाल, चुनाव की तारीखें आते ही इनको लेकर एक विवाद भी शुरू हो गया है। आम चुनाव-2019 के लिए तारीखों का ऐलान हो गया है। देश में 11 अप्रैल से शुरू होने वाला चुनावी दंगल 7 चरणों में 19 मई तक चलेगा। मतगणना 23 मई को होगी। चुनाव आयोग ने अपनी जिन तैयारियों की चर्चा है, उससे साफ है कि इस चुनाव में तकनीक की और बड़ी भूमिका दिखने वाली है। चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए आयोग काफी सतर्क है।

उसने तमाम संभावित चुनौतियों से निपटने के लिए मुकम्मल व्यवस्था की है, खासकर सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने के लिए। फेक न्यूज पर नजर रखने और अभद्र भाषा के इस्तेमाल पर लगाम लगाने के लिए उसने कुछ खास लोगों को तैनात करने का निर्णय किया है। सभी उम्मीदवारों को अपने सोशल मीडिया अकाउंट की जानकारी आयोग को देनी होगी और सभी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर चुनाव प्रक्रिया के दौरान सिर्फ उन्हीं राजनीतिक विज्ञापनों को स्वीकार किया जाएगा, जो पहले से प्रमाणित होंगे। पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर मोबाइल ऐप ‘सी-विजिल’ का इस्तेमाल किया जाएगा, जिसके जरिए कोई भी नागरिक किसी भी तरह की गड़बड़ी की शिकायत कर सकेगा, जिस पर सौ मिनट के भीतर कार्रवाई होगी। ईवीएम की सुरक्षा के लिए इन्हें ले जाने वाली सभी पोलिंग पार्टियों की गाड़ियों में जीपीएस लगाया जाएगा।

ईवीएम पर उम्मीदवारों के चुनाव चिह्न के अलावा उनके चेहरे भी छपे होंगे। वीवीपैट का इस्तेमाल सभी मतदान केंद्रों पर होगा। इससे पहले प्रत्येक सीट के किसी एक मतदान केंद्र पर ईवीएम के साथ वीवीपैट का इस्तेमाल किया जा रहा था। उम्मीदवारों को तीन अलग-अलग तारीखों पर अपने आपराधिक रिकॉर्ड का विज्ञापन देना होगा। पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार 8.43 करोड़ मतदाता बढ़े हैं। इस बार कुल 90 करोड़ मतदाता वोट डालेंगे, जिनमें 18-19 साल के डेढ़ करोड़ युवा पहली बार मतदान करेंगे। बहरहाल, चुनाव की तारीखें आते ही इनको लेकर एक विवाद भी शुरू हो गया है। कुछ मुस्लिम नेताओं और धर्मगुरुओं ने कहा है कि पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में मतदान की तारीखें रमजान के महीने में पड़ रही हैं, जिससे मुस्लिम वोटर्स को दिक्कत होगी।

लिहाजा ये तारीखें बदली जाएं। इसी तरह जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव न कराए जाने को लेकर कश्मीरी नेताओं ने नाराजगी जताई है, जिस पर चुनाव आयोग ने कहा है कि उसके विवेक का सम्मान किया जाना चाहिए, राज्य की मौजूदा स्थिति के चलते यहां आम चुनाव के साथ में विधानसभा चुनाव कराना संभव नहीं था। भारत जैसे विशाल देश में हर क्षेत्र और समुदाय की अपेक्षाएं अलग-अलग हैं। इसलिए चुनाव कार्यक्रम पर हर किसी का खुशी-खुशी राजी होना आसान नहीं है। चुनाव आयोग ने हर संभव पहलू पर विचार करके ही कार्यक्रम तय किया है। बेहतर होगा कि छोटी-मोटी परेशानियों को दरकिनार कर जनतंत्र के इस उत्सव में शामिल हुआ जाए।

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