मित्रता को न त्यागे

Children Story
एक बाघ और एक वन में मित्रता हो गई। दोनों ने भविष्य की चिंताओं को ध्यान में रखकर प्रतिज्ञा की कि मित्र के नाते वे एक-दूसरे की रक्षा करेंगे। यदि दोनों में से किसी एक पर भी विपत्ति आएगी तो वे उस विपत्ति के समय एक-दूसरे का सहयोग करने से नहीं हिचकिचाएँगे। इस मित्रता और प्रतिज्ञा के कारण जब आदमी जंगल में लकड़ी या फल-फूल लेने आता तो बाघ उसे डराकर भगा देता और जब वह बाघ को मारने के इरादे से आता, तो जंगल उसे छिपा लेता। यह मैत्री दोनों में लंबी चली और दोनों के लिए लाभदायक भी सिद्ध हुई।
एक दिन न जाने क्या हुआ कि बाघ की किसी गलती को लेकर जंगल उससे नराज हो गया। बाघ ने भी अपने घमंड के नशे में चूर होकर कि उसके बराबर इस जंगल में शक्तिमान कोई नहीं, इस बात पर अमल करते हुए मनमुटाव को दूर करने का प्रयास नहीं किया और जंगल छोड़ कर चला गया। दोनों की मैत्री में आई दरार से तो अब आदमी की बात बन गई। वन को असुरक्षित पाकर उसने उसे काटना प्रारंभ कर दिया। शीघ्र ही घना वन देखते-ही-देखते खाली हो गया। बाघ भी जंगल के बिना अकेला पड़ गया था। आदमी ने उसका पीछा किया तो उसने घाटियों और पहाड़ों की दरारोें मेें शरण ली। मगर, वहाँ वन के अभाव में उसे छिपने के लिए सुरक्षित स्थान नहीं मिला, जिससे व असुरक्षित हो गया और वह मारा गया। वन और बाघ की मैत्री रक्षा न होने के कारण यह हुआ कि न वन रहा, और न बाघ।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।