छात्राओं के कंधे पर सियासी बंदूक न रखें

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आनि:संदेह दुनिया भर में प्रतिष्ठित काशी हिंदू विश्वविद्यालय में छात्राओं के साथ बदसलूकी और उसके बाद उन पर पुलिसिया प्रहार से विश्वविद्यालय की गरिमा और साख को गहरा आघात लगा है। विश्वविद्यालय की गरिमा गिरी है और छात्राएं असुरक्षित महसूस कर रही है।

बिल्कुल ही बर्दाश्त योग्य नहीं है कि कुछ अराजक व शरारती तत्व छात्राओं के साथ छेड़खानी और लज्जाजनक शब्दों का इस्तेमाल कर देश दुनिया में विश्वविद्यालय और भारत की छवि खराब करें।  बिल्कुल ही ऐसी घटनाओं की निंदा होनी चाहिए।

इसके अलावा विश्वविद्यालय और स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह छेड़खानी करने वाले मनचलों के विरुद्घ सख्ती से पेश आए। अगर विश्वविद्यालय प्रशासन प्रारंभ में ही सख्ती दिखाई होती तो आज विश्वविद्यालय का माहौल अराजकतापूर्ण नहीं होता।

ध्यान देना होगा कि जहां विश्वविद्यालय की सुरक्षा के लिए नियुक्त कर्मियों ने छात्राओं की सुरक्षा का ख्याल नहीं रखा वहीं विश्वविद्यालय के कुलपति ने भी मामले को गंभीरता से नहीं लिया नतीजतन छात्राओं को धरना-प्रदर्शन के लिए सड़क पर उतरना पड़ा।

अगर समय रहते विश्वविद्यालय के जिम्मेदार पदों पर आसीन लोग अपने कर्तव्यों का समुचित निर्वहन किए होते तो विश्वविद्यालय में अराजकता का माहौल निर्मित नहीं होता और न ही अराजक किस्म के लोगों को प्रदर्शन की आग में सियासी घी डालकर अपना उल्लू सीधा करने का मौका हाथ लगता।

जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी पहुंचने से पहले शांति से धरना-प्रदर्शन कर रही छात्राओं को उग्र किया गया उससे ऐसा प्रतीत होता है कि दाल में काला है। कहीं ऐसा तो नहीं कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत इस मामले को तूल दिया गया? इससे इंकार नहीं किया जा सकता। चूंकि बनारस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है और यह संभव है कि उनकी छवि खराब करने के लिए इस तरह का कुचक्र रचा गया हो।

अब जिस तरह सियासी दलों के नुमाइंदे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं’ का नारा उछालकर उन पर फब्तियां कस रहे हैं और अनर्गल सवालों से उनकी घेरा बंदी कर रहे हैं उससे तो यहीं प्रतीत होता है कि यह सब कुछ सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है। देश जानना चाहता है कि विश्वविद्यालय की इस घटना की आड़ में राज्य व केंद्र सरकार को घसीटने और लांक्षित करने का क्या मतलब है?

ध्यान रखना होगा कि देश के कई विश्वविद्यालयों में पहले भी इस तरह की अप्रिय घटनाएं हो चुकी हैं। लेकिन क्या इसके लिए कभी किसी प्रधानमंत्री पर इस तरह का अशोभनीय और ओछा वार हुआ है? कभी नहीं।

तो फिर मौजुदा प्रधानमंत्री के साथ ऐसा क्यों किया जा रहा है? इस आचरण से क्यों न माना जाए कि सियासी दल छात्राओं के कंधे पर सियासी बंदूक रखकर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश कर रहे हैं।

देश जानना चाहता है कि उनकी इस घातक सियासत से भला विश्वविद्यालयों और शिक्षा का भला कैसे होगा? सियासी दलों की कुत्सित सियासत का नतीजा है कि आज विश्वविद्यालयों और कालेजों में पढ़ रहे छात्र-छात्राएं सियासी दलों का मोहरा बन राजनीतिक कार्यकर्ता की भूमिका में उतर रहे हैं जिससे शिक्षा परिसरों का माहौल बिगड़ रहा है।

एक वक्त था जब विश्वविद्यालयों में राष्ट्र के ज्वलंत और गंभीर मसलों पर चिंतन-विमर्श होता था। चिंतन व विमर्श से जो संदेश निकलते थे उससे राष्ट्र को नई उर्जा व सार्थक दिशा मिलती थी। लेकिन विगत दशकों में सियासी दलों ने विश्वविद्यालयों को सियासत का अड्डा बना दिया है। शिक्षण संस्थानों में ऐसे छात्रों की सक्रियता बढ़ी है,

जो छात्र कम और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता ज्यादा हैं। उनकी भूमिका एक छात्र के बजाए सियासी दलों के सैनिकों जैसी हो गयी है और वे राजनीतिक दलों के इशारे पर विश्वविद्यालयों का माहौल अराजक बनाने पर आमादा हैं। कहना गलत नहीं होगा कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय भी इसी तरह की घातक सियासत का भेंट चढ़ा है।

सियासी दलों को समझना होगा कि छात्र शिक्षण संस्थानों में ज्ञानार्जन के लिए आते हैं, न कि राजनीति के लिए। अगर उन्हें राजनीति का पाठ पढ़ाया जाएगा तो नि:संदेह शिक्षण संस्थानों का अनुशासन भंग होगा और प्रतिभाएं कुंठित होंगी।

और फिर जिन उद्देश्यों के लिए विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई है, वह मकसद कभी भी पूरा नहीं होगा। सवाल लाजिमी है कि ऐसी सियासत का क्या मतलब जिससे शिक्षा का वातावरण दुषित हो और छात्र सियासी दलों के बाहुबलियों की तरह अपने आचरण का प्रदर्शन करें। समझना होगा कि स्वतंत्रता आंदोलन और उसके बाद समाज व सत्ता की संरचना निर्माण में छात्रों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और अपनी रचनात्मक भूमिका से भारतीय राजनीति को नयी दिशा दी।

आजादी के बाद भी छात्रों ने अपनी प्रासंगिकता को कमजोर नहीं होने दिया। देश में जब भी बदलाव की बयार बही छात्रों ने अहम भूमिका निभायी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय ने विश्वविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए एक दीक्षांत भाषण में कहा भी था कि ‘इस विश्वविद्यालय की स्थापना इसलिए की गयी कि यहां के छात्र विद्या अर्जित करें, देश व धर्म के सच्चे सेवक बनें, वीरता के साथ अन्याय का प्रतिकार करें।’ उचित होगा कि विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं मालवीय जी के कथन पर अमल करें।

-अरविंद जयतिलक

 

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