बच्चों पर हद से ज्यादा दबाव न डालें बल्कि मोटिवेट करें : पूज्य गुरु जी

सरसा। रविवार को शाह सतनाम जी धाम में साप्ताहिक नामचर्चा में साध-संगत ने सतगुरु की महिमा का गुणगान किया। इस अवसर पर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रिकॉर्डिड पावन वचन चलाए गए। रिकॉर्डिड वचनों में पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि ये घोर कलियुग का समय है। इस समय में मन-इन्द्रियां बड़े फैलाव पर हैं। मौसम बदलता है और लोग कहते हैं कि गर्मी का मौसम है, शायद इसलिए ज्यादा क्रोध आता है। इसलिए इन्सान गलत कर्म करता है। लेकिन ये सोच गलत है। असल में जब खान-पान, सोच, देखने, सुनने में जहर होगा तो नेचुरली कहर बरसता है। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आज इन्सान मतलब परस्त, स्वार्थी हो गया है। अपना उल्लू सीधा करने के लिए वो किसी भी हद तक गिर सकता है और कुछ भी कर सकता है। इसलिए आज के दौर में जो समय की चाल का पहचान लेते हैं, वही ज़िन्दगी में सुखी रहते हैं और उन्हीं को परमानंद मिलता है।

आपजी ने फरमाया कि पहले बच्चा होता था तो लोगों की सोच होती थी कि मेरा बच्चा आगे चलकर इन्सानियत के झंडे बुलंद करेगा। सतयुग के समय में भक्ति इबादत किया करेगा। सबसे ज्यादा भक्ति मेरा बेटा ही करेगा। मेरा बेटा सबसे अच्छा इन्सान बनेगा। मालिक के दर्शन मेरा बेटा ही करेगा। लेकिन आज के दौर में बच्चा गर्भ में होता है तब ही सोचने लग जाते हैं कि मेरा बेटा नोटों की मशीन बनेगा। ये भी लोगों को कहते सुना गया कि ये वो आफिसर बनेगा, ये बिजनेसमैन बनेगा। पहले से ही शुरूआत हो जाती, जबकि बच्चा अभी गर्भ में ही है। इतनी इच्छाएं उसके साथ मढ दी जाती हैं कि कई बच्चे तो इसी वजह से डिप्रेशन में आ जाते हैं, दुखी हो जाते हैं। क्योंकि पैदा होने के बाद माँ-बाप के अनुसार ही सारा कुछ करना है।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि माँ-बाप को ये सोचना चाहिए कि बच्चे की भी तो कुछ इच्छाएं होती हैं। माँ-बाप का एक पैमाना सा बन गया, एक होड़ सी लगी हुई है कि बच्चों की मैरिट आनी चाहिए। ख़ुद बेशक स्कूल के पीछे से निकल गया हो। ख़ुद की थर्ड डिविजन रही हो। ख़ुद चनों की बोरी दे-देकर पास हुआ हो, लेकिन कहता है कि मेरे बच्चे की मैरिट ही होनी चाहिए। इच्छा रखना गलत नहीं है, लेकिन इतनी इच्छा भी मत रखो कि बच्चे पर प्रेशर पड़ जाए और उसको लगे कि मेरा पेपर सही नहीं हुआ और वो ख़ुदकुशी कर ले। ये बिल्कुल गलत है।

आपजी जी ने फरमाया कि बच्चे को गाइड करो कि बेटा! पूरे दिलो दिमाग से पेपर देना। मैं चाहता हूँ कि तू बहुत अच्छे नंबर ले। मैं चाहता हूँ कि कंपीटिशन में तू नंबर वन पर आए। पर बेटा, अगर नंबर कम भी आते हैं तो इसका मतलब ये नहीं कि तूं कोई कमजोर है। अनपढ़ होकर अकबर ने पूरे देश पर राज कर लिया था। लेकिन अक्सर देखने में आता है कि माँ-बाप बच्चे को कहते हैं कि अगर नंबर कम आए तो देख लेना। वो एक चुटकुला भी, जिसमें एक बाप अपने बेटे को कहता है कि देख लेना अगर तेरे नंबर कम आए तो मुझे बाप मत कहना। रिजल्ट आया। बच्चा घर में आया और अपने बाप के कहने लगा रामदास। पिता बोला कि क्या हुआ? बेटा कहता, ‘यार! मैं फेल हो गया।’ क्योंकि बाप तो कहना नहीं, क्योंकि पिता ने पहले ही कहा था। तो ऐसे रामदास मत बनो, जो ये कहना पड़े बच्चे को। बेहद ज्यादा प्रेशर अपने बच्चों पर मत डालो।

आपजी ने फरमाया कि बच्चों को मोटिवेट (प्रोत्साहित) करो। बच्चों पर प्रेशर डालने का भी एक लेवल होता है। ऐसा भी मत करो कि सारी अपेक्षाएं, इच्छाएं उसी के ऊपर मढ दो। तू फर्स्ट आएगा तो ठीक वरना हमारी तो नाक कट जाएगी। हम तो मर जाएंगे बेटा। हम तो बर्बाद हो जाएंगे। ऐसी बात अपने बच्चों को कभी नहीं कहनी चाहिए। बल्कि बच्चे से ये कहें कि बेटा तू पेपर दे, हम तेरे साथ हैं। फर्स्ट डिवीजन आएगी तो तुझे ये दिलाएंगे। मेरिट आएगी तो तेरे लिए इतना कुछ करेंगे। अगर पास भी हो गया तो तुझे ये दिलाएंगे और यदि बाइचांस तू फेल हो जाता है तो बेटा हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हिम्मत जिनके पास होती है, वो एक बार में नहीं तो दूसरी बार में तरक्की जरूर कर जाया करते हैं। ऐसा करने से बच्चे को हौंसला रहता है कि अगर थोड़ा कम नंबर भी आ जाएंगे तो माँ-बाप कुछ नहीं कहेंगे।

कई घरों में जो पढ़ाकु कीड़े माँ-बाप होते हैं, वो बच्चों को इस तरह से प्रेशर में ला देते हैं कि बाद में पश्चाताप में अलावा कुछ भी हाथ में नहीं रहता। बच्चे ख़ुदकुशी कर लेते हैं या वो डिप्रेशन में चले जाते हैं, दिमाग हिल जाता है। कई डॉक्टर डॉक्टर साहिबानों ने बताया कि जब वो पढ़ा करते थे तो कई माँ-बाप अपने बच्चों को कहते थे कि तूने फर्स्ट डिविजन से ही डॉक्टरी पास करनी है। ऐसे बच्चे को हमने रात को परेशानी में कुत्तों के पीछे दौड़ते देखा। वो कुत्तों को आवाज लगाते हुए कह रहा था कि अरे! रूक-रूक यार बातें करते हैं। क्योंकि वो इतना डिप्रेशन में चला गया। उसे लगने लगा कि अगर उसके अच्छे नंबर नहीं आए तो उसका परिवार और वो खुद बर्बाद हो जाएगा।

पूज्य गुरु गुरु जी ने फरमाया कि अपने बच्चे को सही ढंग से मोटिवेट करो। उससे कहिए कि बेटा तू सुबह उठकर और शाम को दो-दो घंटे पढ़ाई किया कर। कोई इंजीनियरिंग या डॉक्टरेट कर रहा है तो उसे कहिए कि ये साइड (स्ट्रीम) तभी ले जब तू 8 से 10 घंटे रोजाना पढ़ाई कर सके। तीन-तीन घंटे करके पढ़ ले, दो-दो घंटे करके पढ़ ले। ये नहीं कि 10 घंटे इकट्ठा ही पढ़ ले। कई बार ऐसा होता है कि माइंड (दिमाग) पर प्रेशर पड़ता है और इन्सान, इन्सान नहीं रहता वो रोबोट बन जाता है।

आपजी ने फरमाया कि किसकी इच्छा नहीं होती कि उसका बेटा तरक्की करे। किसकी इच्छा नहीं होती कि उसका बेटा-बेटी बुलंदियों पर जाए। सबकी इच्छा होती है। लेकिन इच्छा पूरी करने के तरीके होते हैं। बच्चे से कहिए कि बेटा या बेटी अगर सुमिरन करोगे तो मैं तुझे 10 मिनट के 10, 50 या 100 रुपये दूंगा। जितने भी पैसे आप अपनी कमाई के हिसाब से उसे दे सकते हो, वो बांध दो। ऐसे करने से एक तो बच्चा सुमिरन करेगा, उसका दिमाग और शार्प होगा। तो इस प्रकार बच्चे को पढ़ाई करने के लिए कहना नहीं पड़ेगा, बल्कि ख़ुद पढ़ने लगेगा और टॉप की तरफ जाएगा। घर में शांति रहेगी। बच्चा करेक्टर फुल (चरित्रवान) बनेगा। इसी तरह आप रख सकते हैं कि बेटा अगर मैरिट आएगी तो मैं तुझे ये दिलाऊंगा। फर्स्ट डिवीजन आई तो ये दिलाऊंगा। सैकिंड आई तो ये, थर्ड आई ये और पास हो गया तो भी कुछ दिलाऊंगा, फेल हो गया तो भी दिलाऊंगा। लेकिन उसकी कुछ डिग्री यानि मात्रा कम करते जाइए।

लेकिन उसे ये न लगे कि फेल हो गया तो तुझे घर में नहीं घुसने देंगे। बल्कि बच्चे के रोजाना के क्रियाकलापों पर निगरानी रखें और देखें कि क्या वो रोजाना दो-दो घंटे सुबह-शाम पढ़ता है। उसके पास बैठिए। उससे प्यार भरी बातें कीजिए। तो माँ-बाप का फ़र्ज है कि वो अपने बच्चों पर 100 पर्सेंट ध्यान दें। उनको बताएं कि आपको कैसा बनना है? आपने क्या करना है? अगर इस तरह से ध्यान रखोगे तो बच्चे पर प्रेशर नहीं पड़ेगा। वो यकीनन अच्छे नंबरों से पास होगा और कामयाबी की राह पर आगे बढ़ेगा। नामचर्चा के दौरान पूज्य गुरु जी द्वारा चलाए जा रहे मानवता भलाई कार्यों से जुड़ी एक डॉक्यूमेंट्री भी चलाई गई। इसके पश्चात साध-संगत ने सुमिरन किया।

 

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