पंजाब पुलिस के इनपुट पर गुजरात पुलिस ने हेरोइन की 75 किलोग्राम की खेप बरामद की, जिससे स्पष्ट है कि नशा तस्करों की जड़ें बहुत गहरी हैं व इस पर नकेल कसने के प्रयासों की समीक्षा करने की आवश्यकता है। प्रैस वार्ता के दौरान आम तौर पर पुलिस के उच्च अधिकारी यही कहते हैं कि पुलिस को बहुत बड़ी सफलता प्राप्त हुई लेकिन इस बात पर मंथन करना होगा कि आखिर किस तरह से नशा तस्कर विदेशों से इतनी बड़ी खेप मंगवाते हैं? क्या कारण है कि आखिर कुछ दिनों के बाद ही एक बड़ी खेप क्यों पहुंचती है। पहले पंजाब की पाकिस्तान से सटी सीमा ही नशा तस्करी का बड़ा रास्ता थी लेकिन अब समुन्द्री रास्तों व हवाई रास्तों का इस्तेमाल किया जाने लगा है।
गुजरात के कांडला व मुंद्रा बंदरगाह नशा तस्करी के लिए चर्चा में हैं। दो माह पूर्व भी कांडला से 260 किलोग्राम व मुंद्रा बंदरगाह से पिछले साल तीन हजार किलो हेरोइन बरामद हुई थी। इसी तरह दो माह पूर्व इंदिरा गांधी अंतर्राष्टÑीय हवाई अड्डा दिल्ली से 62 किलो हेरोइन बरामद हुई। यह बात भी समझनी होगी कि नशा तस्करी को रोकना किसी एक देश का काम नहीं बल्कि इस संबंधी अंतर्राष्टÑीय स्तर पर कई देशों को एकजुट होकर रणनीति बनानी होगी। अफगानिस्तान से तैयार हुई हेरोइन पाकिस्तान से होकर भारत पहुंचती है। सीमाओं पर दोनों देशों के सुरक्षा कर्मी तालमेल बनाकर काम करें तो हेरोइन तस्करी को रोका जा सकता है। नशा तस्करी को रोकने के लिए खूफिया एजेंसियों को सिस्टम को भी नई तकनीकों से लैस करना होगा।
नशा तस्कर कोई ना कोई नया तरीका ढूंढकर दूसरी जगहों पर नशा पहुंचाने में सफल हो जाते हैं। पहले कंटीली तारों से ‘डिस्कस थ्रो’ की तरह हेरोइन फेंकी जाती थी, फिर ड्रोन का इस्तेमाल किया जाने लगा। यदि पुलिस ड्रोन तस्करी पर कार्रवाई करने लगी तो अब बंदरगाहों से हेरोइन भेजी जा रही है। नि:संदेह विभिन्न राज्यों ने नशा तस्करी रोकने के लिए अपने पुलिस के स्पैशल विंग बनाए हैं, फिर भी इस मामले में राज्य के साथ-साथ देश व पड़ोसी देशों के सहयोग के बिना समाधान संभव नहीं। पंजाब बुरी तरह से नशे के दलदल में फंसा हुआ है। हरियाणा व राजस्थान जैसे राज्य भी नशे की चपेट से नहीं बच सके। भविष्य में यदि इतनी बड़ी मात्रा में इस तरह ही तस्करों तक खेप पहुुंच जाती है, तब हालातों की भयावह तस्वीर का अंदाजा लगाना कठिन है। सरकारों के साथ-साथ विपक्षी पार्टियां भी नशा तस्करी के मुद्दे पर एकजुट हों।
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