शिक्षा का लक्ष्य

Education goal
महान गणितज्ञ यूक्लिड में जरा भी अहंकार नहीं था। वह बेहद सरल स्वभाव के थे। उनका मानना था कि अपना ज्ञान दूसरों में हर दम बांटते रहना चाहिए। इस लिए जब भी कोई उनके पास किसी तरह की जानकारी लेने आता तो वे उत्साहपूर्वक उसे सब कुछ बताते थे। इससे उन्हें संतोष मिलता था। इसलिए उनसे गणित सीखने वालों की संख्या अच्छी-खासी हो गई थी। कई बार तो वह अपना निजी काम छोड़ कर भी दूसरों की जिज्ञासा शांत करते रहते थे।
एक दिन यूक्लिड के पास एक लड़का आया और उसने उनसे ज्यामिति पढ़ाने का आग्रह किया। यूक्लिड ने अपनी आदत के मुताबिक यह प्रस्ताव सहज रूप से स्वीकार कर लिया। वह उसे उसी क्षण से ज्यामिति पढ़ाने लगे। लड़का काफी प्रतिभाशाली था। उसने बड़ी तेजी से सीखना आरंभ कर दिया। इससे यूक्लिड काफी प्रसन्न थे। एक बार यूक्लिड उसे एक प्रमेय पढ़ा रहे थे। अचानक लड़के ने सवाल कर दिया- इस प्रमेय को पढ़ने से मुझे क्या लाभ होगा? यह सुनते ही यूक्लिड नाराज हो गए और अपने नौकर से बोले- इसे एक ओबेल (यूनानी सिक्का) दे दो, क्योंकि यह विद्या हासिल करने में कम, धन कमाने में अधिक रुचि रखता है और जो धन कमाने में रुचि रखता है उसके लिए किसी भी तरह की शिक्षा बेकार है। उनके मुंह से यह सुनकर न सिर्फ वह लड़का बल्कि दूसरे छात्र भी दंग रह गए। उस लड़के ने अपनी भूल स्वीकार कर यूक्लिड से क्षमा मांगी। यूक्लिड ने कहा- शिक्षा आत्मसमृद्धि का मार्ग है। उसे कभी भौतिक लाभ के तराजू में नहीं तौलना चाहिए और वह जहां से जिस मात्रा में मिले, उसे आत्मीयता से ग्रहण करना चाहिए।
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