अंतत: मेधा जीती, कोविड हारा

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अंतत: देश की बड़ी अदालत ने यूजी और पीजी के अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को लेकर अपना ‘सुप्रीमो’ फैसला सुना दिया है। फाइनल ईयर के हर स्टुडेंट्स को एग्जाम में बैठना होगा। हालांकि देश की करीब 800 यूनिवर्सिटीज में से 290 में फाइनल ईयर की परीक्षाएं कराई जा चुकी हैं। एग्जाम न कराने के लिए आधा दर्जन गैर भाजपा सरकारों- दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु आदि ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी। करीब डेढ़ माह की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला यूजीसी के पक्ष में दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी के 06 जुलाई की गाइडलाइन्स को वाजिब ठहराया है। इसमें कोई आतिश्योक्ति नहीं है, यह काबिलियत की डिग्री की जीत कही जाएगी। आखिरकार कोरोना की डिग्री हार गई। सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी की पवित्र भावनाओं को समझते हुए यह ऐतिहासिक फैसला दिया है। इस जीत का सेहरा केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक और यूजीसी के चेयरमैन डॉ. डीपी सिंह के सिर पर बंधेगा। कोरोना को ढाल बनाकर परीक्षाओं को निरस्त कराने के पैरोकार- सियासीदां परास्त हो गए। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर महाराष्ट्र के पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे, दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल, पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिन्दर सिंह, ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक , पश्चिम बंगाल की सीएम सुश्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु के सीएम के पलानीस्वामी की ओर से केंद्र को लिखी चिट्ठी भी काम न आई।

देशभर की यूनिवर्सिटी और कॉलेजों की अंतिम वर्ष की परीक्षाएं कराई जाएंगी या नहीं? इस सवाल का जवाब लाखों स्टुडेंट्स और उनके अभिभावक महीनों से जानना चाहते थे। हर किसी को परीक्षाओं पर सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले का इंतजार था, लेकिन अब छात्रों और अभिभावकों का इंतजार खत्म हो गया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम ईयर की परीक्षाओं को लेकर अपना अंतिम फैसला 28 अगस्त को सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के फाइनल ईयर के एग्जाम आयोजित कराए जाएंगे। कोई भी यूनिवर्सिटी कोविड के बहाने अंतिम वर्ष की परीक्षा टाल तो सकती है, लेकिन निरस्त नहीं कर सकती है। यूजीसी की यदि कोई यूनिवर्सिटी यूजी-पीजी की अंतिम वर्ष या अंतिम सेमेस्टर की परीक्षांए सितम्बर के बाद कराना चाहती हैं तो इसके लिए भी उन्हें यूजीसी की मंजूरी लेनी होगी। यह ऐतिहासिक फैसला जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता में जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की तीन सदस्यीय बेंच ने सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है, अगर किसी राज्य को लगता है कि उनके लिए परीक्षा आयोजित कराना मुमकिन नहीं है तो वह यूजीसी के पास जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, राज्य अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के बिना किसी भी छात्र को प्रमोट नहीं कर सकते हैं। अंतिम ईयर के छात्रों की परीक्षाएं 30 सितंबर को कराने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है, यानी अब अंतिम ईयर की परीक्षाएं 30 सितंबर तक पूरी की जाएंगी। सुप्रीम कोर्ट में अंतिम वर्ष की परीक्षा टालने वाली याचिका पर पिछली सुनवाई 18 अगस्त को हुई थी। इस दौरान यूनिवर्सिटी और कॉलेजों की अंतिम वर्ष की परीक्षा पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इसी के साथ अदालत ने सभी पक्षों से तीन दिन के भीतर लिखित जवाब दाखिल करने को कहा था। अदालत ने यह भी कहा था कि अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि डिग्री कोर्स के अंतिम वर्ष की परीक्षा रद्द होंगी या नहीं। इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अंतत: परीक्षा को लेकर अंतिम फैसला सुनाया है ।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान यूजीसी ने कहा था, बिना परीक्षा के मिली डिग्री को मान्यता नहीं दी जा सकती है। यूजीसी ने 06 जुलाई को संशोधित दिशा निर्देश जारी किए थे। गाइडलाइन्स में सभी यूनिवर्सिटी और कॉलेजों को अंतिम वर्ष के स्टुडेंट्स के लिए सितंबर तक परीक्षाएं आयोजित कराने के बारे में कहा गया। यूजीसी गाइडलाइन्स के अनुसार, फाइनल ईयर के स्टुडेंट्स के एग्जाम आॅनलाइन, आॅफलाइन या दोनों तरीकों से आयोजित किए जा सकते हैं। यूजीसी की संशोधित गाइडलाइन्स में यह भी बताया गया है कि बैक-लॉग वाले छात्रों को परीक्षाएं अनिवार्य रूप से देनी होंगी। यूजीसी के मुताबिक, अन्य जो स्टुडेंट्स सितंबर की परीक्षाओं में शामिल नहीं हो पाएंगे तो यूनिवर्सिटी उन स्टुडेंट्स के लिए बाद में स्पेशल परीक्षाएं आयोजित करेगी। जब भी संभव हो, विश्वविद्यालय इन विशेष परीक्षाओं को करा सकते हैं, ताकि विद्यार्थी को किसी भी असुविधा/नुकसान का सामना न करना पड़े। बड़ी अदालत ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया है, ये प्रावधान केवल वर्तमान शैक्षणिक सत्र 2019-20 के लिए सिर्फ एक बार के उपाय के रुप में लागू होगा।

यूजीसी ने दिल्ली और महाराष्ट्र सरकार ने अपने-अपने राज्य की यूनिवर्सिटी में अंतिम वर्ष की परीक्षाएं रद्द करने के फैसले पर विरोध जताया था। सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग याचिकाओं के जरिए राज्य सरकारों और चुनिंदा छात्रों ने इंसाफ के लिए दस्तक दी थी। प्रस्तावित एग्जाम की मुखालफत में नामचीन अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी और सीनियर वकील श्याम दीवान ने सुप्रीम कोर्ट में जमकर दलीलें पेश की थीं। डॉ. सिंघवी ने कहा था, यूजीसी का यह दिशा निर्देश संघवाद पर हमला है। राज्यों को स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर फैसला लेने की स्वायत्तता होनी चाहिए। कोई भी सामान्य समय में परीक्षा के खिलाफ नहीं है। हम महामारी के दौरान परीक्षा के खिलाफ हैं। यूजीसी के पूर्व चेयरमैन प्रो.सुखदेव थोराट 27 और शिक्षाविदों के साथ यूजीसी को पत्र लिखकर यह परीक्षाएं रद्द कराने की मांग कर चुके थे । इन शिक्षाविदों ने पत्र में पूछा है, जो लोग यह तर्क दे रहे हैं कि परीक्षा रद्द होने से डिग्रियों का मूल्य कम हो जाएगा, उन्हें यह भी बताना चाहिए कैसे एक वर्चुअल एग्जाम से डिग्री की वैल्यू बढ़ जाएगी।

यूजीसी ने कहा था कि वे एक स्वतंत्र संस्था है, विश्वविद्यालयों में परीक्षाओं के आयोजन की जिम्मेदारी यूजीसी की है, किसी राज्य सरकार की नहीं है। यूजीसी ने दिल्ली और महाराष्ट्र में राज्य के विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर की परीक्षाएं रद्द करने के निर्णय पर सवाल उठाते हुए कहा था, ये नियमों के खिलाफ है। राज्यों को परीक्षाएं रद्द करने का कोई अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से पूछा था कि क्या राज्य आपदा प्रबंधन कानून के तहत यूजीसी की अधिसूचना और दिशानिर्देश रद्द किये जा सकते हैं? सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत से कहा कि राज्य सरकारें आयोग के नियमों को नहीं बदल सकती हैं, क्योंकि यूजीसी ही डिग्री देने के नियम तय करने के लिए अधिकृत है।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह छात्रों के हित में नहीं है कि वे परीक्षा आयोजित न करें। उन्होंने तर्क दिया कि यूजीसी एकमात्र निकाय है जो एक डिग्री प्रदान करने के लिए नियमों को बना सकता है और राज्य सरकारें नियमों को बदल नहीं सकती हैं। मेहता ने न्यायालय को बताया कि करीब 800 विश्वविद्यालयों में से 290 विवि में परीक्षाएं हो चुकी हैं। इनमें तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी यूपी की दूसरी प्राइवेट विवि में अव्वल रही है। मेडिकल और डेंटल कॉलेजों को छोड़कर न केवल तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी फाइनल ईयर के एग्जाम करा चुकी है बल्कि 31 जुलाई तक सभी रिजल्ट भी घोषित किए जा चुके हैं।

श्री मेहता ने कहा था, 390 विवि परीक्षा कराने की प्रक्रिया में हैं। यूजीसी के अनुसार, स्टुडेंट्स के एकेडमिक सत्र को बचाने के लिए फाइनल ईयर एग्जाम कराए जाने जरुरी हैं और चूंकि डिग्री यूजीसी की ओर से दी जाएगी, ऐसे में परीक्षाएं कराने या न कराने का अधिकार भी उसी का होना चाहिए। बड़ी अदालत के इस ऐतिहासिक फैसले के सकारात्मक नतीजे सामने आने लगे हैंं। फाइनल ईयर के एग्जाम का विरोध करने वाले राज्य या कॉलेज अंतत: परीक्षा की तैयारी में जुट गए हैं।

                                                                                                           -श्याम सुंदर भाटिया

 

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