10 तरह के शहद से 50 लाख रुपए कमा रहा फोगाट परिवार

झज्जर (सच कहूँ न्यूज)। लोगों को आज सामान्य खेती में कोई खास भविष्य नजर नहीं आ रहा है। इसलिए, बहुत से किसान परिवार खेती छोड़कर दूसरे रोजगार तलाश रहे हैं। लेकिन वहीं कुछ ऐसे किसान भी हैं, जिन्होंने खेती से जुड़े दूसरे विकल्पों में सफलता तलाशी है। इनका मानना है कि जब देश के बाकी क्षेत्रों में लगातार बदलाव हो रहे हैं तो कृषि क्षेत्र क्यों पीछे रहे? कृषि को भी आधुनिक समय के हिसाब से विकसित करना होगा, तभी किसानों को इसमें सफलता मिलेगी। इसलिए, प्रगतिशील किसान अब सिर्फ सामान्य खेती न करके, अन्य विकल्प जैसे मधुमक्खी पालन आदि काम भी कर रहे हैं।

इससे उन्हें न सिर्फ अच्छी कमाई हो रही है बल्कि वे आत्मनिर्भर भी बन रहे हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक आत्मनिर्भर किसान से मिलवा रहे हैं, जो मधुमक्खी पालन करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं और दूसरे किसानों को भी इससे जोड़ रहे हैं। हम बात कर रहे हैं हरियाणा में झज्जर के रहने वाले जगपाल सिंह फोगाट और उनकी पत्नी मुकेश देवी की। राज्य के सर्वश्रेष्ठ मधुमक्खी पालक के तौर पर सम्मानित हो चुके जगपाल सिंह फोगाट ने साल 2001 में मधुमक्खी पालन शुरू किया था। आज देशभर से लोग उनके बनाए शहद खा रहे हैं और वह किसानों, युवाओं और महिलाओं को मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं।

फोगाट ने बताया कि वह किसान परिवार से ही आते हैं। लेकिन पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर गाँव में एक स्कूल खोला। उनका स्कूल का काम अच्छा चल रहा था। पर कुछ सालों बाद, फोगाट को लगा कि उन्हें कुछ और भी करना चाहिए। कुछ ऐसा जिससे कि वह लोगों को आगे बढ़ने का जरिया दे पाएं। वह बताते हैं कि 1997-98 में एक रिश्तेदार के जरिए मुझे मधुमक्खी पालन के बारे में पता चला। इस विषय में मुझे रूचि होने लगी, तो मैंने इसके बारे में पढ़ना भी शुरू किया। जितना इसके बारे में जाना, उतना ही इसे करने की मेरी इच्छा मजबूत होने लगी। इस तरह 2001 में मैंने मधुमक्खी पालन शुरू कर दिया।

30 बक्सों से शुरू किया काम

फोगाट कहते हैं कि शुरू में उन्होंने सिर्फ 30 बक्से खरीदे और इसके लिए उन्होंने 60 हजार रुपये का निवेश किया। उन्होंने अपने गाँव के पास ही एक बागान में इन बक्सों को रखा। शुरुआत में, उन्हें काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ा। क्योंकि, उन्होंने कहीं से कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था। तब तक उन्होंने जो कुछ भी सीखा था, वह किताबों या फिर मधुमक्खी पालकों के यहाँ जाकर ही सीखा था। जब उन्होंने खुद यह काम करना शुरू किया तो कई बार उन्हें मधुमक्खियों ने भी काटा। लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी कोशिश जारी रखी।

वह कहते हैं, ‘ऐसा नहीं था कि हमें शहद नहीं मिल रहा था। हर सप्ताह हम इन 30 बक्सों से सात से आठ डिब्बे शहद ले लेते थे और इसे बाजार में बेचते थे। इस काम में मुनाफा शुरू से ही दिख गया था। पर साथ ही, यह भी समझ आया कि अगर इसमें बड़े स्तर पर जाना है, तो सही जानकारी और हुनर होना आवश्यक है। इसलिए 2004 में मैंने मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लिया। इस दौरान मैंने अलग-अलग प्रजातियों की मधुमक्खियों के बारे में, उन्हें पालने के बारे में, मौसम बदलने पर मधुमक्खियों के पलायन के बारे में और शहद बनाने की तकनीकों के बारे में सीखा।’

मौसम के हिसाब से बदलते हैं मधुमक्खियों का स्थान

जैसे-जैसे उनकी जानकारी बढ़ी, उन्होंने अपनी मधुमक्खियों को बक्सों में भरकर, मौसम के हिसाब से घूमना शुरू कर दिया। वह बताते हैं कि मधुमक्खियां शहद तभी बनाएंगी, जब उन्हें फूलों का रसपान करने का मौका मिलेगा। उत्तर-भारत में जनवरी से लेकर अप्रैल तक खूब सरसों होती है और इस मौसम में मधुमक्खियां सरसों के खेत में रसपान करती हैं। लेकिन जैसे-जैसे गर्मियां शुरू होती हैं, खेतों में कटाई भी पूरी हो जाती है। इसलिए, इस समय मधुमक्खियों को ऐसी जगह ले जाना चाहिए, जहाँ फूल हों। क्योंकि, अगर मधुमक्खियों को रस नहीं मिलेगा तो वे मर जाएंगी। अप्रैल के अंत में, जगपाल और मुकेश अपनी मधुमक्खियों को जम्मू लेकर जाते हैं। यहाँ की पहाड़ियों में कुछ जंगली फूल खिलते हैं। यहाँ जुलाई तक मधुमक्खियों को रखा जाता है। इसके बाद, मधुमक्खियों को वापस हरियाणा तथा पंजाब लाया जाता है। क्योंकि, यहाँ उस समय तिल और बाजरा भरपूर मात्रा में होते हैं। अक्टूबर-नवंबर में वह मध्य-प्रदेश तो दिसंबर-जनवरी में राजस्थान जाते हैं।

दूसरी फसलों का उत्पादन बढ़ाने में सहायक

वह कहते हैं, ‘फिलहाल हमारे पास 500 बक्से हैं। हालांकि, एक वक्त पर हमारे पास 2000 बक्से भी थे। यह क्रम घटता-बढ़ता रहता है। मधुमक्खियों के जीवन के लिए जितना रसपान जरूरी है, फसलों के लिए मधुमक्खियां भी उतनी ही जरूरी हैं। अगर खेतों में, बागानों में मधुमक्खियां न हों तो वहां पोलीनेशन नहीं होगा और पोलीनेशन नहीं होगा तो उत्पादन कैसे मिलेगा? इसलिए बहुत से बागान वाले, मधुमक्खी पालकों को अपने यहाँ बुलाते हैं, क्योंकि इसमें उनका भी फायदा है।’

खुद की प्रोसेसिंग यूनिट की शुरू

जगपाल बताते हैं कि पहले वह जो भी शहद निकालते थे, उसे किसी और ब्रांड या कंपनी को बेचते थे। लेकिन फिर, जैसे-जैसे आमदनी बढ़ी तो उनकी पत्नी मुकेश देवी भी उनके साथ जुड़ गर्इं। मुकेश देवी ने झज्जर के कृषि विज्ञान केंद्र से मधुमक्खी पालन में प्रशिक्षण किया। साल 2016 में इस दंपत्ति ने साथ मिलकर, अपनी खुद की शहद प्रोसेसिंग यूनिट की शुरुआत की। मुकेश देवी कहतीं हैं, ‘शुरू में तो थोड़ा डर लगता था कि मधुमक्खियां काट लेंगी। लेकिन, मेरे पति काफी सालों से यह काम कर रहे हैं तो उन्होंने मुझे बहुत हौसला दिया। मुझे अपने सास-ससुर का भी समर्थन मिला तो मैं अपने पति के साथ मधुमक्खी पालन के लिए जाने लगी। शहद तो हम पहले बना ही रहे थे। लेकिन फिर, हमें लगा कि हमें इसमें एक और कदम आगे बढ़ाना चाहिए। अब हम अपने शहद को खुद ही तैयार कर, पैक करके बेचते हैं। हमारे बच्चों ने सोशल मीडिया के जरिए भी काम को आगे बढ़ाया है।’

फिलहाल, यह दंपत्ति 10 तरह का शहद तैयार कर रहा है। जिनमें तुलसी शहद, नीम शहद, अजवाइन शहद, जामुन शहद, सरसों शहद, धनिया शहद, सफेदा शहद, और बरसीम शहद आदि शामिल हैं। वे कहते हैं कि तुलसी शहद से मतलब यह नहीं है कि वे शहद बनने के बाद उसमें ऊपर से तुलसी का अर्क मिलाते हैं। बल्कि तुलसी शहद के लिए मधुमक्खी के बक्सों को तुलसी के बाग में रखा जाता है। यहाँ मधुमक्खियां तुलसी पर ही रसपान करतीं हैं। इसके बाद, उनसे जो शहद मिलता है, उसमें तुलसी के गुण मौजूद होते हैं। इसी तरह अन्य शहद भी बनाए जाते हैं।

हर साल 60 से 70 क्विंटल शहद का करते हैं उत्पादन

फोगाट दंपति अपने शहद को ‘नेचर फ्रेश’ ब्रांड नाम से ग्राहकों तक पहुँचा रहे हैं। वह पूरे साल 60 से 70 क्विंटल शहद बेचते हैं। उनका शहद लैब टेस्ट से प्रमाणित है और उनके पास एफएसएसएआई सर्टिफिकेट के साथ- साथ जीएसटी नंबर भी है। उनका शहद हरियाणा, पंजाब, दिल्ली के अलावा महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल जैसे राज्यों में भी जा रहा है। वे कहते हैं कि हमारे शहद में किसी प्रकार की कोई मिलावट नहीं है। यह पूरी तरह से शुद्ध और प्राकृतिक है। शहद के बारे में लोगों के मन में कई सारे मिथक हैं। जैसे-इसे दवाई के रूप में ही लेना चाहिए या कभी जुकाम-खांसी होने पर अदरक शहद लिया जाना चाहिए आदि।

लेकिन शहद के गुणों को देखते हुए, अगर आप रोजाना भी इसे अपने आहार में शामिल करें तो यह आपके लिए गुणकारी रहेगा। उनके इस पूरे काम से लगभग 27 लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। साथ ही, बहुत से किसान उनके यहाँ अपना शहद भी पहुंचाते हैं, जिससे किसानों को बाजार की समस्या भी नहीं होती है। मधुमक्खी पालन और शहद की बिक्री से फोगाट दंपति, आज लगभग 50 लाख रुपए सालाना कमाई कर रहे हैं।

केवीके का मकसद आत्मनिर्भर बनाना

कृषि विज्ञान केन्द्र में कार्यरत डॉ. कुसुम राणा बतातीं हैं, ‘केवीके का उद्देश्य किसानों, युवाओं और महिलाओं को रोजगार प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाना है। इसलिए हम समय-समय पर कोई न कोई कार्यक्रम आयोजित करते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग जुड़ें। इनमें मधुमक्खी पालन पर जो भी प्रशिक्षण कार्यक्रम होते हैं, उनके लिए फोगाट दंपति को बुलाया जाता है। उन्हें इस काम का अच्छा अनुभव है तथा वे दूसरों को सिखाना भी चाहते हैं। इसके अलावा, वे कई बार हमारे साथ अलग-अलग जगह कृषि आयोजनों में भी जाते हैं और मधुमक्खी पालन के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते हैं।’

दूसरों के लिए बने प्रेरणा, 350 किसानों को साथ जोड़ा

जगपाल और मुकेश ने अब तक लगभग 350 लोगों को मधुमक्खी पालन से जोड़ा है। जिले में महराणा गाँव के एक 35 वर्षीय किसान, धर्मवीर महराणा बताते हैं कि वह लगभग 19-20 साल के थे, जब उन्हें पहली बार फोगाट द्वारा किए जा रहे मधुमक्खी पालन के बारे में पता चला। वह कहते हैं कि उस समय मैं एक छात्र था लेकिन, जब मधुमक्खी पालन के बारे में सुना तो लगा कि एक बार जाकर जरूर देखना चाहिए। वैसे भी, गाँवों में कुछ नया होने पर थोड़ी-बहुत हलचल तो हो ही जाती है। मैं उनके पास गया और उनसे इसके बारे में पूछा। उन्होंने मेरी दिलचस्पी देखकर, मुझे बहुत अच्छे से समझाया।

फोगाट से मिलकर धर्मवीर ने भी मधुमक्खी पालन करने का फैसला किया और 2005 में उनसे ही ट्रेनिंग लेकर 20 बक्से खरीद लिए। वह बताते हैं, ‘आज मैं सामान्य खेती के साथ-साथ मधुमक्खी पालन भी करता हूँ और इससे सालाना लगभग 10 से 12 लाख रुपए कमा लेता हूँ। उस समय अगर फोगाट जी यह राह न दिखाते तो मैं भी कहीं, किसी नौकरी के पीछे ही भाग रहा होता। लेकिन अब हमारा अपना खुद का काम है। अब हम दिन-रात मेहनत करते हैं और अच्छा कमा रहे हैं।

कई पुरस्कारों से हो चुके सम्मानित

जगपाल सिंह और मुकेश को उनके बेहतरीन कार्यों के लिए कई कृषि सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है। इनमें भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली द्वारा नेशनल अवॉर्ड, हरियाणा कृषि रत्न अवॉर्ड, इनोवेटिव फार्मर अवॉर्ड आदि शामिल हैं। फोगाट दंपति अंत में बस यही कहते हैं, ‘बच्चों को नौकरियों के पीछे दौड़ाने की बजाय, उन्हें खुद का कोई काम या व्यवसाय करने का हौसला देना चाहिए। हर रोज बेरोजगारी पर बात होती है। लेकिन बेरोजगारी तब तक नहीं जाएगी, जब तक हम रोजगार पैदा करने के बारे में नहीं सोचेंगे।

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