गजल : जो व्यवस्था भ्रष्ट हो, फ़ौरन बदलनी चाहिए

जो व्यवस्था भ्रष्ट हो, फ़ौरन बदलनी चाहिए
लोकशाही की नई, सूरत निकलनी चाहिए

मुफ़लिसों के हाल पर, आंसू बहाना व्यर्थ है
क्रोध की ज्वाला से अब, सत्ता बदलनी चाहिए

इंकलाबी दौर को, तेज़ाब दो जज़्बात का
आग यह बदलाव की, हर वक्त जलनी चाहिए

रोटियाँ ईमान की, खाएँ सभी अब दोस्तों
दाल भ्रष्टाचार की हरगिज न गलनी चाहिए

अमन है नारा हमारा, लाल हैं हम विश्व के
बात यह हर शख़्स के, मुँह से निकलनी चाहिए।
-महावीर उत्तरांचली

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