गजल : थरथरी-सी है आसमानों में

थरथरी-सी है आसमानों में,
ज़ोर कुछ तो है नातवानों में।

कितना खामोश है जहाँ, लेकिन,
इक सदा आ रही है कानों में।

हम उसी ज़िंदगी के दर पर हैं,
मौत है जिसके पासबानों में।

जिनकी तामीर इश्क़ करता है,
कौन रहता है उन मकानों में।

हमसे क्यों तू है बदगुमां ऐ दोस्त,
हम नहीं तेरे राज़दानों में।

कोई सोचे तो फ़र्क कितना है,
हुस्र और इश्क़ के फ़सानों में।

काम ले ख़ूने-आरजू से ‘फिराक’
रंग भर ग़म की दास्तानों में।

फ़िराक़ गोरखपुरी

शब्दों के अर्थ : 1. नातवानों-दुबलों, 2. सदा-आवाज़, 3. पासबानों-संरक्षकों, 4. तामीर-निर्माण, 5. ख़ूनें आरजू-आकांक्षा का रक्त

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।