सीवरेज कर्मियों के प्रति संवेदनशील बनें सरकार

sewerage workers,Government sensitive to sewage workers

सुप्रीम कोर्ट ने सीवरेज की सफाई दौरान कर्मचारियों की हो रही मौतों के मामले की सुनवाई करते हुए इसे गंभीरता व सख्ती से लिया है। अदालत के आदेशों में कर्मचारियों का दर्द और राज्य सरकारों की लापरवाही झलकती है। माननीय जज ने कहा कि दुनिया में कहीं भी सफाई कर्मियों को मरने के लिए गैस चेंबर तो नहीं भेजा जाता। अदालत ने इस बात पर भी हैरानी प्रकट की कि आखिर सरकारें कर्मचारियों को गैस मास्क और आक्सीजन सिलेंडर क्यों मुहैया नहीं करवा रही। पिछले कई सालों से सीवरेज कर्मचारियों की मौत का मामला लटकता आ रहा है। पिछले दो महीने में सीवर कर्मचारियों के लिए कहर बनकर आए हैं। इस दौरान गाजियाबाद में पांच, राजस्थान और बिहार में 4-4 कर्मचारी मारे गए।

अब तक लगभग 650 कर्मचारियों की मौत हो चुकी है। यदि सड़कों पर दौड़ती कार में सीट बैल्ट जरूरी है तो अंधेरे व खतरनाक सीवर में उतरे कर्मचारियों की सुरक्षा क्यों लाजिमी नहीं की जाती। प्राईवेट कंपनियां सीवरमैनों को आवश्यक औजार भी मुहैया नहीं करवाती और न ही कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाता। लापरवाही करने वाले ठेकेदारों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती। गरीब घरों के सीवरेज कर्मी इतने जागरूक नहीं होते कि वह खुद के साथ हो रही धक्केशाही के खिलाफ सरकार और स्थानीय प्रशासन के कानों तक आवाज पहुंचा सके। स्थानीय प्रशासन केवल मुआवजा देकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाता है। सत्ता के उच्च पदों पर बैठे नेताओं के लिए सीवरमैनों के साथ होते हादसे कोई मुद्दा ही नहीं होते।

अधिकतर ऐसे मामले स्थानीय प्रशासन के स्तर पर निपटाए जाते हैं। जब तक केंद्र और राज्य सरकारें सीवरेज सफाई संबंधी कोई नीतिगत निर्णय नहीं लेती तब तक हादसे कम होने की संभावना नहीं हैं, मुआवजा राशि में विस्तार जरूर किया गया है लेकिन यह इस मामले का समाधान नहीं। कीमती जिंदगियों की भरपाई नहीं की जा सकती। सफाई कर्मियों के लिए केंद्रीय आयोग होने के बावजूद कोई सुधार नहीं हो सका। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी भी आम बात बन गई है और अदालत को बार-बार सख्त शब्द इस्तेमाल करने पड़ रहे हैं। राजनेता केवल चुनाव जीतने को ही अपनी योग्यता और उपलब्धि न समझें बल्कि जनता व कर्मचारियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी वचनबद्धता से निभाएं।

 

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