भूख से मौतों पर गंभीर हो सरकारें

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बड़ी-बड़ी खोजी संस्थाएं भारत को बेशक भारत को विश्व की सबसे तेज़ उभरती हुई अर्थव्यवस्था करार दे रही हों। बेशक विभिन्न आंकड़ों के खेल में भारत विकास के नए-नए आयाम छूह रहा हो और केंद्र व राज्य सरकारें अपनी पीठ ऐसे सर्वे आने के बाद अपनी पीठ थपथपाने में बेशक पीछे नहीं रह रही हों। लेकिन देश के राज्य झारखंड में भूख से हो रही मौतें देश में विकास के हो रहे दावों की धज्जियां उड़ा रही हैं।

21वीं सदी में भी यदि देश में किसी व्यक्ति की मौत भूख से मरने की वजह से हो रही है तो निश्चित तौर पर यह अत्यंत गंभीर समस्या है। झारखंड के सिमडेगा जिले की संतोषी कुमारी, धनबाद के बैधनाथ रविदास और देवघर के रूपलाल मरांडी की कथित तौर पर भूख से हुई मौत ने सरकार की जन वितरण प्रणाली को आधार से जोड़ने की नीति और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के कार्यान्वयन में गंभीर त्रुटियों के कारण लोगों के जीने के अधिकार के हनन को उजागर किया है।

संतोषी कुमारी के परिवार को राशन नहीं मिल रहा था क्योंकि आधार से लिंक नही होने के कारण उनके कार्ड को रद्द कर दिया गया था। कई बार आवेदन देने के बावजूद भी बैधनाथ रविदास के परिवार का राशन कार्ड नहीं बना था। जन वितरण प्रणाली में आधार आधारित प्रमाणीकरण के बायोमेट्रिक मशीन में अंगूठे का निशान नहीं मिलने के कारण रूपलाल मरांडी को भी राशन मिलना बंद हो गया था।

ये मामलें सरकार की जवाबदेही की कमी की चरम सीमा है, लेकिन राज्य में खाद्य सुरक्षा कानून के अंतर्गत राशन मिलने के अधिकार का हनन रोजाना की एक हकीकत है। राज्य में कानून लागू हुए दो साल से अधिक हो गए हैं, लेकिन अभी भी अनेक योग्य परिवारों को राशन कार्ड निर्गत नहीं हुआ है।

इसका एक मुख्य कारण है कि राशन मिलने की पात्रता 2011 में हुई सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) पर आधारित है जिसमें कई प्रकार की त्रुटियां हैं- जैसे जनगणना के दौरान परिवार की सामाजिक व आर्थिक स्थिति का सही से आकलन न करना, जनगणना से परिवार छूट जाना आदि।

प्रशासन के उदासीन रवैये के कारण भी योग्य परिवारों के आवेदनों पर समय पर कार्यवाही नहीं होती है। ऐसे में केवल मात्र आधार के लिंक न होने और राशन कार्ड न बने होने का हवाला देकर यदि किसी अत्यंत गरीब परिवार को सरकार के भ्रष्ट अधिकारी राशन नहीं देते और ऐसे में वह परिवार भोजन की किल्लत के कारण तिल-तिल कर मर जाता है तो यह कलंक पूरे देश के सिर पर लगता है।

इसके लिए केवल मात्र झारखंड की सरकार जिम्मेदार नहीं है इसके लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी जिम्मेदारी लेनी होगी। बेशक अहमदाबाद से मुंबई बुलेट ट्रेन का सपना दिखाया जा रहा है लेकिन उससे भी पहले जरूरी है देश के हर नागरिक के पेट में भोजन का होना। ऐसे में भूख से हो रही मौतों पर सरकारों को तुरंत गंभीर होना होगा और सरकारी तंत्र की लापरवाही से फिर कोई गरीब आधार या राशन कार्ड के नाम पर बलि न चढ़े इसका पुख्ता इंतजाम करना होगा।

 

 

 

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