दोषियों को मिले सख्त सजा

Guilty, Strict Punishment, Amritsar Train Accident

अमृतसर में दशहरा जानलेवा साबित हुआ। सारी खुश्यिां और उत्साह भारी गम में तब्दील हो गया। हादसे में करीब 61 मासूम लोग मारे गए और इससे ज्यादा घायल हुए। हादसे के बाद रेलवे ट्रैक पर आधा किलोमीटर तक लाशें बिखरी पड़ी थीं, इस नजारे के बारे में सोचकर भी आत्मा कांप उठती है। अमृतसर का यह रेल हादसा कोई सामान्य या तकनीकी नहीं माना जा सकता। यह निश्चित तौर पर एक नरसंहार था, बेशक कोई कबूल न करे। ट्रेन अपनी गति से गुजरीं, लेकिन मानवीय जिंदगियों को लीलती हुईं!

चूंकि स्थानीय प्रशासन, रेल प्रबंधन, दशहरा आयोजन की कमेटियां बीते कुछ सालों से देखती रही हैं कि रेलवे टैज्क पर चढ़कर भीड़ का एक हिस्सा दशहरा और रावण दहन देखता था। आखिर ऐसे आयोजनों को इजाजत कौन और कैसे देता रहा था? क्या अधिकारियों की आंखें बंद रहती थी या वे विवश थे? दशहरा मैदान कहीं खुली, सुरक्षित जगह पर स्थानांतरित किया जा सकता था। कोई पार्षद हो या विधायक, मंत्री ऐसे अवैध आयोजन कराए, उन्हें भी इजाजत क्यों दी गई?

आखिर आईएएस, आईपीएस और पुलिस बल मोटी-मोटी तनख्वाहों के साथ तैनात किस लिए हैं? यह पहला हादसा नहीं है, जिसमें मुआवजा दिया जाएगा या जांच होगी, पर असल सवाल सबक सीखने का है, जो कभी न सीखना हमारे समाज और सरकार की फितरत बन चुकी है। अमृतसर के दर्दनाक दशहरा की ही बात करें तो कई बातें दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ हैं, जो जांच के बजाय कार्रवाई और सबक सीखने की जरूरत बताती हैं। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि दशहरे जैसे समारोह की जानकारी स्थानीय प्रशासन को रेलवे को देनी होती है।

उससे टैÑक के आसपास बैरिकेड लगाए जाते हैं, आरपीएफ के जवान तैनात किए जाते हैं और टेÑेन के आने का समय घोषित किया जाता है। बिहार में तो सभी मंदिर रेलवे टैÑक के किनारे हैं, वहां ऐसे इंतजाम हर साल किए जाते हैं, लेकिन लापरवाही सभी ने की होगी, नतीजतन इतना भयावह और हत्यारा हादसा हुआ। ऐसे ही हादसे बिहार और आंध्रप्रदेश में हो चुके हैं, लेकिन उनसे भी कोई सबक नहीं सीखा गया। अब एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति चालू हो गयी है, यह और भी दुखद है।

बहरहाल यह भी देखा गया है कि अकसर पुतले दहन के समय का भी पालन नहीं किया जाता और नेतागण अपने भाषण पेलने में मस्त रहते हैं। इस त्रासदी के लिए वे भी जिम्मेदार हैं। जहां एक तरफ क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू से इस घटना पर संवेदना की अपेक्षा थी, वहीं उनका यह बयान कि यह घटना कुदरत का कहर है, और भी दुखी कर गया।

राजनेताओं को ऐसे बयान से बचना चाहिए। आपराधिक लापरवाही से जो जिंदगियां काल कवलित हो गईं, उन्हें वापस नहीं लाया जा सकता, पर ऐसे हादसों की पुनरावत्ति से बचने के लिए भी जरूरी है कि सही कारणों का पता चले और जिम्मेदारी तय हो। इसके लिए रेलवे को भी जांच से मुंह नहीं चुराना चाहिए।

 

 

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