अनमोल वचन : सेवा-सुमिरन को गहना बना लो: पूज्य गुरु जी

Dera Sacha Sauda

सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि मनुष्य शरीर में प्रभु का नाम लिया जाए तो यह बेशकीमती बन सकता है तथा इन्सान परमानंद की प्राप्ति कर सकता है, लेकिन इसके लिए सुमिरन करना होगा। इन्सान अपने शरीर की ताकत के लिए बहुत कुछ खाता है, लेकिन जिसकी वजह से शरीर तन्दरूस्त है, आत्मा को सुख-शांति मिलती है वो तरीका कोई-कोई ही अपनाता है। वह तरीका (मालिक का नाम) आप कभी भी, कहीं भी अपना सकते हैं। जैसे आप पैदल जा रहे हैं पैरों से चलते जाओ, आंखों से देखते जाओ तथा जिह्वा व ख्यालोें से मालिक का नाम लेते जाओ।

आप जहां जाना चाहेंगे वहां भी पहुंच जाओगे और मालिक की भक्ति भी हो रही है। काम-धंधा कुछ भी नहीं छोड़ना बल्कि काम-धंधा करते हुए, लेटते, खाते-पीते, सोते-जागते आप जिह्वा व ख्यालोें से मालिक का नाम ले सकते हैं। अगर आपके दिलो-दिमाग में मालिक की तार जुड़ जाती है तो आपको किसी भी सहारे की जरूरत नहीं होगी। मालिक के प्रति ऐसा अहसास हो जाए तो उसको सच्चा सुख मिलता है, उसकी आत्मा आवागमन से आजाद हो जाती है और मालिक की कृपा-दृष्टि के काबिल बन जाती है। जो लोग सेवा-सुमिरन को गहने बना लेते हैं, अमल करते हैं, मालिक उन पर अपनी दया-मेहर जरूर करता है।

पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इस घोर कलियुग में सेवा करना बड़ा ही मुश्किल है। कोई भागों वाले जीव होते हैं जो सेवा करते हैं। सेवा के साथ-साथ सुमिरन, भक्ति-इबादत की जाए तो किसी भी चीज की कमी नहीं रहती। लेकिन इन्सान सेवा नहीं करता, अगर सेवा करता है तो सुमिरन नहीं करता। सेवा के साथ थोड़ा-थोड़ा सुमिरन हो जाए तो आप परमानंद के काबिल बन जाएंगे। इस घोर कलियुग में अगर आप सुख-शांति चाहते हैं तो चिंता करना, टेंशन लेना छोड़ दो। क्योंकि चिंता ऐसी बला है जो इन्सान को जीते-जी न जाने कितनी बार जलाती है। इस संसार में चिंता जैसा कोई दु:ख नहीं और खुशी जैसी कोई दवा नहीं, लेकिन खुशी वो होनी चाहिए जो अंदर से दिलो-दिमाग पर छा जाए। इसलिए सेवा-सुमिरन में ध्यान लगाओ, अंदर की सफाई करो तो आप अंदर से खुशी हासिल करेंगे और चेहरे पर मालिक का नूर जरूर आ जाएगा।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramLinkedIn , YouTube  पर फॉलो करें।