स्वास्थ्य सेवाओं का निकला जनाजा

Health Services
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राजस्थान के कोटा के सरकारी अस्पताल में एक माह में 100 से अधिक बच्चों की मृत्यु का मामला देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। अब वहां केंद्रीय टीम भी पहुंच रही है। अब इस मामले में नेता लोग भी अपनी राजनीति चमकाने में लग गए हैं। बात भाजपा या कांग्रेस सरकार की नहीं बल्कि देश में एक व्यवस्था व संस्कृति की होनी चाहिए। यह मामला राजनीति करने वाला नहीं बल्कि प्रशासकीय व्यवस्था में खामियों व जवाबदेही की कमी का परिणाम है। अस्पताल के अधिकारियों ने मेडिकल सेवाओं पर उतना ध्यान नहीं दिया जितना कि स्वास्थ्य मंत्री के अस्पताल पहुंचने पर हरे रंग के मैट बिछाने पर दिया है।

अब हालात यह हैं कि अस्पताल में व्यवस्था परिवर्तन को लेकर अफरातफरी मची हुई है। चादरें बदली जा रही हैं व सफाई कार्य जोरों पर चल रहा है। इतने बड़े स्तर पर मौत की घटनाएं होने पर अधिकारियों ने घटना के कारण बताने की बजाए राज्य सरकार की जांच टीम बता रही है कि इनकुबेटर सही तरीके से काम नहीं कर सके। वर्ष 2019 में भी बिहार के जिला मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार चर्चा का विषय बना रहा था। तब संसद में भी इस मुद्दे पर खूब हंगामा हुआ था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चमकी बुखार मामले को बेहद गंभीर व चुनौतीपूर्ण करार दिया था।

हालांकि बड़े नेताओं के बयानों के बाद यह लगता है कि अब ऐसी घटनाएं घटित नहीं होंगी लेकिन दु:खद है कि घटनाएं निरंतर घट रही हैं। दरअसल अस्पताल में प्रबंधकीय खामियां व लापरवाही घटनाएं उसी तरह की हैं जैसे महानगरों में आग लगना, इमारतें गिरना व सड़क हादसों का होना। दरअसल राजनीति व प्रशासन में तालमेल, जिम्मेवारी व जवाबदेही दुर्लभ होती जा रही है। कभी मानवीय कमियों को दुर्घटना का कारण कहा जाता था लेकिन अब तो हाल यह है कि व्यवस्था ही डांवाडोल हो गई है। सरकारी दफ्तरों की कार्यशैली इतनी धीमी व लचीली हो गई है कि चंद दिनों में होने वाला कार्य महीनों व कई बार तो वर्षों में पूरा होता है।

कोई अधिकारी व नेता ही ऐसा होगा जो विभाग के कार्यों को चुस्त-दुरुस्त रखता हो। यही कारण है कि उपचार करवाने के लिए सरकारी अस्पताल की बजाए निजी अस्पतालों में लोगों का विश्वास बढ़ रहा है। हालांकि कुछ ऐसे अधिकारी व कर्मचारी भी हैं जो ईमानदारी व निष्ठा भाव से ड्यूटी करते हैं, लेकिन चंद लोग व्यवस्था को नहीं बदल सकते। देश में मशीनरी या फंड की कमी नहीं। कमी है तो केवल राष्ट्रीय चरित्र की कमी है, जो जनता के दर्द से उपजता है। हमारे देश व विदेशों में यही अंतर है विकसित देशों के नागरिक ईमानदारी व राष्ट्र को समर्पित होकर ड्यूटी करते हैं व हमारे यहां छापामारी के बिना कोई काम नहीं चलता। खामियों की तरफ ध्यान तब तक नहीं दिया जाता जब तक पानी सिर से नहीं गुजर जाता या फिर विरोधी मुद्दा न बना लें। राजनीतिक मोर्चे का उद्देश्य नैतिकता कम व पार्टी हितों को चमकाना ज्यादा होता है।

यहां एक घटना पर आंसू बहाने वाले ज्यादा हैं लेकिन सिस्टम को सुधारने की कोई बात तक नहीं करता। प्रबंधों की जिम्मेवारी तय करने वाला ही समस्या का समाधान कर सकता है अन्यथा हमारे हालात गरीब देशों से कम नहीं हैं।

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