प्रेरणास्त्रोत: स्वर्ग की सृष्टि

Heaven creation

किसी शहर में धार्मिक प्रवृत्ति का एक व्यक्ति रहता था। धर्म-कर्म में उसकी आस्था तो थी, लेकिन उसके भीतर अहंकार भी कम नहीं था। उसकी इच्छा थी कि इस जन्म में चाहे जो करना पड़े, लेकिन मरने के बाद उसे स्वर्ग अवश्य मिले। वह अपनी कमाई का अधिकतर भाग परोपकार में ही लगा देता था, क्योंकि उसे उम्मीद थी कि ऐसा करने से स्वर्ग की प्राप्ति निश्चित है। लेकिन जैसे-जैसे उसकी परोपकार की भावना बढ़ रही थी, उसके अहंकार में भी वृद्धि हो रही थी।

एक बार एक प्रसिद्ध संत उसके घर के पास आकर रुके। वह फौरन उनकी सेवा में उपस्थित हो गया। उसने उनसे भी स्वर्ग जाने का उपाय पूछा, साथ ही स्वर्ग जाने के उद्देश्य से किए जाने वाले प्रयासों की चर्चा की। संत ने उस व्यक्ति को ध्यानपूर्वक ऊपर से नीचे तक देखा और उपेक्षा से कहा, ‘तुम स्वर्ग जाओगे? तुम तो देखने से ही नीच लग रहे हो। मैं नहीं मानता कि तुम कोई परोपकारी या दानी व्यक्ति हो।’ इतना सुनते ही वह व्यक्ति क्रोध से भर उठा और उसने संत को मारने के लिए डंडा उठा लिया।

तब संत ने मुस्कराते हुए कहा, ‘तुम में तो तनिक भी धैर्य नहीं। इतनी अधीरता और अहंकार के होते हुए तुम स्वर्ग कैसे जा पाओगे?’ व्यक्ति को संत की कही बातों का मर्म समझ में आया तो वह उनके चरणों में गिर पड़ा और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगने लगा। संत ने समझाया, ‘एक-एक कर सब अवगुणों से मुक्त हो जाओ। जिस दिन विकारों से मुक्त हो जाओगे उसी दिन यहीं पर स्वर्ग की सृष्टि हो जाएगी।’

 

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