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Monday, November 17, 2025
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    शाकाहार है कोरोना मुक्ति का सशक्त आधार

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    मियामी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एवं ‘फिलॉस्फर एंड द वुल्फ’ और ‘एनिमल्स लाइक अस’ जैसी पुस्तकों के लेखक मार्क रौलैंड्स चेतना और पशु अधिकारों संबंधी अपने शोध के माध्यम से दुनिया को चेताया है कि मांसाहार कोरोना महामारी से भी अधिक बुरे नतीजे ला सकता है। यह न केवल हृदय संबंधी बीमारियां, कैंसर, डायबिटीज और मोटापा बढ़ा रहा है बल्कि पर्यावरण संबंधी कई समस्याएं भी पैदा कर रहा है, जिन्हें हम महसूस कर रहे हैं।

    घाटी में फिर सिर उठाता आतंकवाद

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    आज जब सारी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है और रमजान का पाक महीना चल रहा है, उस समय भी पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। आतंकियों की घुसपैठ और सुरक्षा बलों, सेना के जवानों पर लगातार हमले जारी हैं।

    कारखाने की घंटी

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    औद्योगिक क्रांति ने इंग्ल...

    सर्तकता में ही बचाव

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    इस बुरे वक्त में सरकार, प्रशासन, निजी कंपनियों, आमजन सबको बहुत ही सर्तकता से अपना काम करना है। जरा सी भूल से जहां कोरोना की मार पड़ सकती है वहीं विसाखापत्तनम या ओरंगाबाद रेल हादसे जैसी कोई त्रासदी भी घटित हो सकती है।

    राहत पैकेज: ठोस योजना बनाने की आवश्यकता

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    विश्व खाद्य कार्यक्रम के मुख्य अर्थशास्त्री आरिफ हुसैन के अनुसार देश में इस वर्ष के अंत तक 26.5 करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर जा सकते हैं। सच यह है कि दक्षिण अफ्रीका में होन्डूरास से लेकर भारत तक भूख और हताशा के कारण विरोध प्रदर्शन और लूट की घटनाएं हो रही हैं। एक आकलन के अनुसार भारत में 36.8 करोड़ बच्चे स्कूल में मध्याह्न भोजन से वंचित हो गए हैं।

    मनुष्य का स्वभाव

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    फिशर अपने स्वभाव के मुताबिक काम करें। मैं अपने स्वभाव से काम कर रहा हूं। किसी और के लिए मैं अपना स्वभाव क्यों बदल लूं।

    वन्यजीवों को भी है जीने का अधिकार

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    कुछ देश आर्थिक लाभों के लिए अभी भी प्राकृतिक वन संपदा के साथ-साथ वन्यजीवों के शिकार के परमिट खुली बोली प्रक्रिया के माध्यम से दे रहे हैं जो कि शर्मनाक है।

    लॉकडाउन की मेहनत पर पानी न फेर दे शराब

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    देश के नीतिनिमार्ताओं को यह सोचना चाहिए की शराब के ठेके खोलकर राजस्व बढ़ाने की यह कवायद, आपदाकाल में लोगों को संक्रमित करके देश के राजस्व पर उल्टा भारी बोझ न डाल दे। कोरोना के इस बेहद खतरनाक वक्त में सरकार का यह निर्णय लोगों की भयंकर लापरवाही के चलते भयानक भूल साबित हो सकता है।

    एकता का महामंत्र

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    सहनशीलता का यह महामंत्र ही हमारे बीच एकता का धागा अब तक पिरोये हुए है।

    समाज के मानसिक विकास पर हो काम

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    देश को बदलते परिवेश में महिलाओं के प्रति व्यवहार कला सिखाने व पढ़ाने के लिए संस्थागत रूप से प्रयास करने होंगे। पुरूष व महिलाएं समान हैं, कोई किसी का उत्पीड़न या अपमान नहीं कर सकता। यह अच्छी तरह पढ़ाया व सिखाया जाए कि वह कौन सी आदतें या व्यवहार हैं जो सामान्य दिखने पर भी अपमानजनक, हिंसक, उत्पीड़त करने वाले हैं।

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