संपादकीय : सभ्य होना है तो प्रकृति के साथी बनो

Environment Day

आज पर्यावरण का सवाल इसलिए अहम है, क्योंकि पृथ्वी की चिंता किसी को नहीं है। हालात की भयावहता की ओर किसी का ध्यान नहीं है। (Environment Day) राजनीतिक दलों से तो उम्मीद करना ही बेमानी है, क्योंकि पृथ्वी और पर्यावरण उनके वोट बैंक नहीं हैं। पृथ्वी और पर्यावरण आज जिस स्थिति में हैं, उसके लिए हम ही जिम्मेदार हैं। पृथ्वी मानव जीवन के साथ-साथ लाखों-लाख वनस्पतियों, जीव-जंतुओं की आश्रय स्थली है। इसके लिए किसी खास वर्ग को दोषी ठहराना उचित नहीं है, बल्कि सभी जिम्मेदार हैं। हम प्रकृति-प्रदत्त संसाधनों का अपनी सुविधा की खातिर बेतहाशा इस्तेमाल कर रहे हैं। पर्यावरण विनाश ही बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं का मूल है। इन हालातों ने ही पर्यावरण के खतरों को चिंता का विषय बना दिया है।

ग्लोबल वार्मिंग का खतरनाक प्रभाव अब साफ तौर पर दिखने लगा है। देखा जा सकता है कि गर्मियां आग उगलने लगी हैं और सर्दियों में गर्मी का अहसास होने लगा है। इसकी वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघलकर समुद्र का जलस्तर तीव्र गति से बढ़ा रहे हैं। हिमालय में ग्लेशियर का पिघलना कोई नई बात नहीं है। सदियों से ग्लेशियर पिघलकर नदियों के रूप में लोगों को जीवन देते रहे हैं। लेकिन पिछले दो-तीन दशकों में पर्यावरण के बढ़ रहे दुष्परिणामों के कारण इनके पिघलने की गति में जो तेजी आई है, वह चिंताजनक है। पर्यावरण के निरंतर बदलते स्वरूप ने नि:संदेह बढ़ते दुष्परिणामों पर सोचने पर मजबूर किया है।

औद्योगिक गैसों के लगातार बढ़ते उत्सर्जन और वन आवरण में तेजी से हो रही कमी के कारण ओजोन गैस की परत का क्षरण हो रहा है। हाल के दिनों में हिमालयी राज्यों में जंगलों में आग की जो घटनाएं घटीं, वे ग्लेशियरों के लिए नया खतरा हैं। वनों में आग तो पहले भी लगती रही हैं, पर ऐसी भयानक आग काफी खतरनाक है। आग के धुएं से ग्लेशियर के ऊपर जमी कच्ची बर्फ तेजी से पिघलने लगी है।

इसके व्यापक दुष्परिणाम होंगे। काला धुआं कार्बन के रूप में ग्लेशियरों पर जम जाएगा, जो भविष्य में उस पर नई बर्फ को टिकने नहीं देगा। केन्या की पर्यावरणविद् और नोबेल पुरस्कार विजेता बंगारी मथाई ने एक समय कहा था कि सभ्य होना है, तो जंगलों का साथी बनो, प्रकृति से जुड़ो, उससे प्रेम करो। असल में बंगारी मथाई ने अपने कहे को जिया भी। उन्होंने लाखों पेड़ लगाये. अपने आसपास जंगल को बरकरार रखने की भरपूर कोशिश की। ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को नजरअंदाज करना बहुत बड़ी भूल होगी, इसलिए अब भी चेतो। अगर अब भी नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं जब मानव अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा।

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