सरहद से आया संदिग्ध पक्षी, पंजों में लगा है टैग

India-Pakistan border

-भारत-पाक सरहद पर पकड़ा गया एशियाई हुबारा पक्षी

जैसलमेर(सच कहूँ न्यूज)। जैसलमेर से लगती भारत-पाकिस्तान सीमा (India-Pakistan border) पर वीरवार सुबह टैग लगा पक्षी पकड़ा गया है। इस पक्षी के पैरों में टैग लगा हुआ है। इरऋ के जवानों ने टैग लगे पक्षी को देखकर उसको पकड़ा और उसके पंजों में लगे टैग की जांच की जा रही है। पकड़ा गया पक्षी एशियाई हुबारा पक्षी है। ये पाकिस्तान सीमा की तरफ से उड़कर आया है। सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी और जवान इस पक्षी के पंजों में लगे टैग और उस पर अंकित निशानों और शब्दों की पड़ताल कर रहे हैं। संदिग्ध पक्षी फिलहाल सीमा सुरक्षा बल की 173 बीएन बटालियन के कब्जे में है।

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सरहद पार से उड़कर आया है टैग लगा पक्षी

भारत-पाकिस्तान सरहद के लोंगेवाला इलाके की मूमल पोस्ट पर ये एशियाई हुबारा पक्षी नजर आया। इरऋ के जवान व अधिकारी पक्षियों को दाना खिला रहे थे तब ये पक्षी नजर आया। गौर से देखने पर पक्षी के दाहिने पंजों में अंगूठियां और एल्यूमीनियम का छल्ला नजर आया। सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने पक्षी को संदिग्ध देखा तो उसको पकड़ा। अब संदिग्ध पक्षी की जांच की जा रही है और इसके साथ ही उसके टैग की भी पड़ताल की जा रही है। गौरतलब है कि सीमा पार से कई बार टैग लगे पक्षी भारत आते हैं और वे यहां प्रवास के बाद लौट जाते हैं। ऐसे में टैग लगे पक्षी भी कई बार सरहद पार से आते पकड़े गए हैं और उनकी पड़ताल की गई।

एशियाई हुबारा पक्षी (तिलोर)

एशियाई हुबारा पक्षी को तिलोर भी कहा जाता है। ये पक्षी एशिया के रेगिस्तानी और शुष्क पठारी क्षेत्रों का मूल पक्षी है जो मिश्र के सिनाई प्रायद्वीप से कजाकिस्तान और पूर्व में मंगोलिया तक आमतौर पर विचरण करते हैं। सर्दी के मौसम में जैसलमेर में इनका प्रवास होता है तथा 4 से 6 महीने तक यहां रहते हैं। लाठी व आसपास के इलाकों में इस साल भी कई तिलोर देखे गए। 6 महीने यहां प्रवास निकालने के बाद ये मार्च में लौट जाते हैं।

अरब में हुबारा कंजर्वेशन सेंटर

तिलोर की लगातार घटती संख्या को देखते हुए संयुक्त अरब अमीरात सरकार ने 1970 में कृत्रिम प्रजनन के लिए प्रयास शुरू करवाए। राजधानी अबु धाबी में इंटरनेशनल फंड फॉर हुबारा कंजर्वेशन नाम से एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान का गठन कर संरक्षण के प्रयास किए। 1986 में सऊदी अरब में एक सहित कुछ बंदी प्रजनन सुविधाएं बनाई गई थीं और 1990 के दशक के बाद से कृत्रिम प्रजनन में सफलता मिलने लगी। शुरूआत में जंगली और बाद में पूरी तरह से कृत्रिम गभार्धान का उपयोग करके इनकी संख्या में बढ़ोतरी की गई। इसलिए वहां इन पक्षियों पर टैग भी लगाए जाते हैं। इसलिए संभव है कि ये उन ही पक्षियों में से एक होगा। फिलहाल जांच जारी है।

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