व्यक्ति प्रकृति से उतना ही ले जितना लौटाया जा सके

Balanced environment

संतुलित पर्यावरण के कारण ही जीवन का विकास संभव है

आज जहां असंतुलित विकास, आतंकवाद और बढ़ रही जनसंख्या दुनिया भर के देशों के लिए गंभीर चुनौतियां बने हुए हैं, वहीं प्रदूषण भी मनुष्य के विकास मार्ग में बाधा बनकर खड़ा है। संतुलित पर्यावरण के कारण ही जीवन का विकास संभव है। जब संतुलन बिगड़ गया तो किए गए सभी विकास मानवता को मौत के मंजर नजर आएंगे, जबकि अब ऐसा हो भी रहा है। गत पचास वर्षों में की गई तरक्की ने आज पृथ्वी पर जीवन को संकट में डाल दिया है। धरती का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। वनों को काटकर बसाई गई मानव बस्तियों के कारण धरती से जीव-जंतुओं की हजारों प्रजातियां समाप्त हो गई हैं।

धरती पर हो रहे बदलावों के बारे में ऐसा नहीं है कि कोई अनभिज्ञ हो। आज प्रत्येक साक्षर व्यक्ति जानता है कि पर्यावरण काफी तेजी से बदल रहा है। हमारी हवा, पानी, मिट्टी आदि में प्रदूषण की मात्रा काबू से बाहर होती जा रही है। ऐसा किसी एक देश में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में यही हालात हैं। आज दुनिया के 70 प्रतिशत जल संसाधन, कारखानों के रासायनिक प्रदूषित पानी से जहरीले हो चुके हैं और पानी में जहर की मात्रा इतनी अधिक हो गई है कि स्वयं पानी उसको समाप्त नहीं कर पा रहा, जैसे की पानी का गुण है। समुद्र में तेल का गिर जाना, विस्फोट और रासायनों का प्रत्येक वर्ष करोड़ों टन कूड़ा मिल रहा है, जिससे समुद्री वनस्पति और जीव-जंतुओं का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। ऐसा ही बुरा असर वनों की कटाई, असंख्य औद्योगिक मकानों के निर्माण से धरती और पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हो गया है। औद्योगिक धुआं और विस्फोटों, प्लास्टिक कचरा, गैसों का रिसाव आदि से हवा प्रदूषण भी हानिकारक स्तर पर पहुंच गया है

परिणामस्वरूप धरती के सुरक्षा कवच ओजोन परत में सुराख, ग्लेशियरों का पिघलना, भूमि धंसना और चट्टानों का गिरना आदि इतने अधिक हो गए हैं कि मनुष्य को उनको फिर से उसी अवस्था में लाने के लिए कुछ नहीं सूझ रहा। सारे प्राकृतिक संसाधन खत्म होते जा रहे हैं। प्रत्येक वर्ष बढ़ती गर्मी, सूखा, कैटरीना, सुनामी, आईला जैसे चक्रवात, बाढ़ों आदि से हमारी धरती एक असुरक्षित ग्रह बन गई है। अब आवश्यकता है कि हमारा प्रत्येक दिन पर्यावरण दिवस हो और धरती का प्रत्येक प्राणी हर घंटे धरती को बचाने के लिए कुछ न कुछ करता रहे, नहीं तो जैसे धरती से अन्य प्राणियों का नाश हो रहा है, उसी तरह मनुष्य भी बचा नहीं रह सकता।

समाज को चाहिए कि जिस तरह हम बच्चों के पालन-पोषण, उनकी पढ़ाई-लिखाई, डाक्टरी और आर्थिक सुरक्षा के प्रबंध में लगे रहते हैं, उसी तरह हमें पर्यावरण को साफ-सुथरा और स्वास्थ्यप्रद रखने के लिए प्रयत्न करने होंगे। इसलिए प्रत्येक शहर, देश के नागरिक, घरेलू स्तर से लेकर देश स्तर तक के वातावरण को ठीक करने के लिए अपने दैनिक जीवन में बदलाव लाने, प्रदूषण फैलाने वाले साधनों, उत्पादों का कम से कम इस्तेमाल करने और सरकार से मांग करें कि वह भी प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों पर नियंत्रण करे और जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाए। व्यक्ति, परिवार और राज्यों को चाहिए कि वे प्रकृति से उतना लें, जितना की उसकी आवश्यकता है और जितना वे प्रकृति को वापिस कर सकते हैं।

 

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