हुआ उजाला

अंधकार की काली चादर,
धरती पर से सरकी।

हुआ उजाला जग में कोई,
बात नहीं है डर की।

चींचीं चींचीं चिड़िया बोली,
डाली पर कीकर की।

कामकाज बस शुरू हो गया,
सबने खटर-पटर की।

लाया है अखबार खबर सब,
बाहर की, भीतर की।

घंटी बजी, दूध मिलने में,
देर नहीं पल भर की।

मैं सुनता रहता आवाजें,
सभी रसोईघर की।

मम्मी के जादू से लो जी,
सीटी बजी कुकर की।

डॉ. दिनेश दधीचि

 

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