नाखुश भारत को खुश बनाया जाए

India, Independence Day, Civilization, Culture, Social, Political

हंसना शरीर के लिए बेहद लाभदायक है, जिसके ढेरों फायदे हैं। भारतीयों में यह आम कहावत है कि ‘‘मन-चंगा तो कठौती में गंगा’’ और भारत में मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि परमानंद अवस्था को माना गया है। बदल रही परिस्थितियों में भारतीय मनुष्य बेहद तनाव, निराशा, गमगीन हालत में है। वर्तमान दशाएं मनुष्य को मानसिक व शारीरिक रूप से कमजोर और बीमार कर रही हैं। ‘वर्ल्ड हैप्पीनैंस इंडैक्स’ में भारत उन पांच देशों में शामिल है जहां के लोग बड़ी संख्या में नाखुश, गमगीन और तनाव ग्रस्त हैं। भारत का 139वां नंबर, दूसरी तरफ फिनलैंड, डेनमार्क, स्विटजरलैंड, आईसलैंड और हालैंड सबसे खुश रहने वाले देश हैं, जहां लोग खुशी से जीवन व्यत्तीत करते हैं।

फिनलैंड लगातार चार वर्षों से प्रथम स्थान पर आ रहा है। यह वास्तविक्ता है कि भारतीय तनावग्रस्त हैं। ऐसा कोई दिन नहीं जब मानसिक रूप से परेशान किसी व्यक्ति द्वारा खुदकुशी की खबर न आई हो, न केवल गरीब और मध्यम वर्ग बल्कि आर्थिक रूप से समृद्ध लोग भी आत्महत्याएं कर रहे हैं। व्यापारियों, आढ़तियों और बड़े उद्योगपतियों द्वारा परिवार सहित आत्महत्याओं की बुरी घटनाएं घट चुकी हैं। चपड़ासी से लेकर आईएएस अधिकारियों तक और किसान से लेकर सीमा पर तैनात जवान भी खुदकुशी कर चुके हैं। विभिन्न वर्गों में आत्महत्याओं में एक आम बात यह है कि सब तनावग्रस्त होकर आत्महत्या कर रहे हैं। दरअसल हमारा आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासनिक व सामाजिक ढांचा ऐसा बन गया है कि कोई आर्थिक तंगी के कारण, कोई दूसरों के दबाव, शोषण के कारण खुदकुशी कर रहा है।

पुलिस जवानों को ड्यूटी के तनाव से मुक्त करने के लिए कई राज्यों में योग अभ्यास भी करवाया जाता है। प्रशासन और अन्य क्षेत्र में भ्रष्टाचार और राजनीतिक दखल के कारण भी एक सीधा-साधा व्यक्ति भी परेशान हो जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि एशियाई देशों में खुशी को समाज या देश की समृद्धि का आधार ही नहीं बनाया गया, जहां विकास का एक मात्र पैमाना जीडीपी में विस्तार है। यूरोपीय देश जो कभी भौतिक विकास को सब कुछ मानते थे अब तनाव रहित जीवन को महत्व दे रहे हैं।

जबकि वास्तविक्ता यह है कि भारतीय संस्कृति तो इसे कारण भी महान है कि यहां दुख ही नहीं बल्कि सुख से भी ऊपर उठकर जीवन व्यत्तीत करना मानव का आदर्श माना गया है लेकिन हमारे देश में सरकार के द्वारा खुशी, संतुष्टि, त्याग, सहनशीलता जैसे गुणों को केवल धर्म-कर्म की बात या मनुष्य के निजी जीवन का मामला समझा जाता है। यहां रोटी, कपड़ा, मकान की पूर्ति ही सरकार की प्राथमिकता है। वास्तव में धर्म-संस्कृति के साथ जुड़ना ही इस समस्या का समाधान है। धर्म मनुष्य को संतोष एवं कम से कम खुशी मनाने और जो नहीं प्राप्त हो पा रहा उसकी मेहनत करने की शिक्षा देते हैं। समाज को धर्म की विशेषता समझने, स्वीकार करने और उस पर चलने की आवश्यकता है। सरकार को खुशी जैसे विषय पर सोचना चाहिए एवं नीति बनानी चाहिए, ताकि देश में खुशी बढ़े।

 

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।