‘मी-टू’: कौन सच्चा कौन झूठा

'Me-To': Who is a true liar

भले ही बहुत से आरोप झूठे साबित होंगे, कुछ बलैकमेल करने या मनचाहा काम न हो पाने के चलते भी महिला उत्पीड़न के दोष होंगे लेकिन हाल ही ‘मी-टू’ नाम के इस शब्द ने देश मे इतनी खलबली मचा रखी है जिससे हर जगह भूचाल सा आया हुआ है। बॉलीवुड़ एक्ट्रैस तनुश्री दत्ता ने जब से नाना पाटेकर पर यौन शोषण का आरोप लगाया है तब से इस मामले ने इतना तूल पकड़ लिया कि देश की हर वर्ग की महिला इसमें रुचि ले रही है जिसे लेकर ‘मी-टू’ नाम से कैंपेन तक चल पड़ा। केन्द्रीय मंत्री से लेकर सैंकड़ों फिल्मी सितारों व अन्य क्षेत्र के बड़े-बड़े लोगों पर यह आरोप लग रहा है। हाल ही में साजिद खान पर भी यह आरोप लगा जिसके बाद एक्टर अक्षय कुमार ने उनकी फिल्म तक छोड़ दी। इसके अलावा ‘मी-टू’ को लेकर तमाम फेहरिस्त है। लेकिन इस प्रकरण को लेकर कुछ लोगों के मन यह भी बात आ रही है कि जो घटना एक लंबे समय पहले बीत चुकी क्या उसकी हकीकत की तह मे जाना इतना आसान होगा कि उस मामले में कुछ निकल पाएगा। इसके अलावा इतने पुराने मुद्दे पर तफशीश करना भी बेहद मुश्किल होगा व कानून के जानकारों की मानें तो हाल ही में हुई घटना को लेकर कोई भी मुजरिम या आरोपी गुनाह नहीं कबूलता तो फिर भी पुराने मामले की प्रक्रिया है। साथ ही इसमे निष्कर्ष के लिए लाइ डीटेक्टर या नार्को टेस्ट करना पड़ेगा जो इतना आसान नहीं होगा। बहरहाल हमें यह बात बेहद गंभीरता से समझनी चाहिए जो लोग बदनामी के दंश को झेल रहे हैं उनसे पूछिए दरअसल ‘मी-टू’के जरिए जो महिलाएं खुद पर होने वाले अत्याचारों की दास्तान को बयां कर रहीं हैं।

इस घटना से उनके मन मे बदनामी का डर तो होगा लेकिन इस बदनामी से ज्यादा दर्द उन्हें उस अपमान ने दिया है जो उन्होनें पांच या दस साल पहले या फिर कुछ समय पहले झेला था लेकिन डर की वजह से उस पर कुछ भी बोलने से परहेज कर रहीं थीं क्योंकि दरअसल डर समाज का था, खुद के अपमान का था और इन खुलासों के बाद लोगों का कि उनके प्रति नजर और नजरिए में क्या बदलाव होगा । आखिर इस डर से कभी तो बाहर आना ही था क्योंकि अपने मन और दिल को कब तक भारी करके जी सकता है कोई भी इंसान ? दोषी कोई भी हो लेकिन इन आरोपों ने साबित कर दिया है कि महिलाएं आज भी सुरक्षित नहीं हैं भले ही वो अनपढ़ हो या पढ़ी लिखी हों चाहे फिर सेलिब्रिटी । भारत में महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की हकीकत से सिर्फ देश ही नहीं बल्कि दुनिया भी वाकिफ है।

मिसाल के तौर पर थॉमसन रायटर्स फाउंडेशन के हालिया सर्वे को अगर आधार बनाते हैं तो भारत महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश है। इसी सर्वे में 2011 में भारत को महिला सुरक्षा के मामले में चौथे स्थान पर रखा गया। अफगानिस्तान, डैमोक्रेटिक रिपब्लिक आॅफ कॉन्गो, पाकिस्तान, भारत और सोमालिया, महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश बताए गए थे, लेकिन हालिया सर्वे हैरान करने वाला और चौंकाने वाला रहा है। अब इस मामले में भारत पहले नंबर पर आ गय़ा है। महिलाओं की सुरक्षा का मामला गंभीर है, इसे लेकर सरकार को संजीदा होने की जरूरत है। कुछ आंकड़े यह हकीकत भी बयां करते हैं कि भारत में महिलाएं घर में पार्टनर की हिंसा का भी सबसे ज्यादा शिकार होती हैं। बहुत से मामले तो घर की चारदीवारी से बाहर नहीं निकल पाते हैं।

इसकी कहीं वजह मानी जाती है जैसे कि कहीं सामाजिक वर्जनाएं हैं तो कहीं अपनों का डर या फिर यह भी कह सकते हैं कि कहीं पर संशय और दुविधा की स्थिति लेकिन इस नकारातमकता का रुप चाहे जो भी हो सभी दुर्भाग्यपूर्ण हैं। महिला आयोग का कहना है कि यह आंकड़े भारत जैसे देश मे पैसे व सत्ता के दम पर न जाने कितने मामले दब जाते हंै। महिला आयोग के मुताबिक मौजूदा सरकार में कुछ गैर सरकारी संगठनों पर कार्रवाई की गई है । यह बात बेहद हैरान करती है कि अफगानिस्तान,सीरिया और पाकिस्तान को क्राइम लिस्ट में बेहतर स्थिति में रखा गया है जबकि इन देशों में महिलाओं की स्थिति और उनपर होने वाले अत्याचारों के बारे में बातें किसी से छुपी नहीं हैं। इन रिपोर्ट्स पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने चुप्पी साध रखी है।

मीटू पर तमाम लोगों की राय लगातार आ रही है। बॉलीवुड़ की एक्ट्रैस सुष्मिता सैन का कहना है कि जब तक इस मामले पर गंभीरता से जांच करते हुए कुछ आरोपियों पर कार्यवाही नहीं होती तो इस कैंपेन का कोई फायदा नहीं होने वाला। इधर महिलाओं के विपक्ष मे भी कुछ लोगों का मानना है कि इस मामले मे महिलाएं त्वरित ही आवाज क्यों नहीं उठाती ? गलती एकतरफा कभी नहीं समझी जाती क्योंकि यह आरोप विपरीत भी समझा जा सकता है क्योंकि यदि अब किसी लड़की का कहीं कोई न काम न बना या यू कहें कि उसकी नौकरी न लगी तो वह मीटू प्रकरण अपनाकर ब्लैकमेल कर सकती है व कानून का दुरुपयोग होना शुरू हो जाएगा।

इसके पुलिस को स्पेशल स्टॉफ,क्राइम सेल या अन्य विभागों की तरह एक अलग टीम गठित कर देनी चाहिए क्योंकि जिस तरह मीटू फैल चुका इसके मामलों को सुलझाने में ही पुलिस का एक अच्छा खासा समय निकल जाएगा व इसके अलावा दूसरी व अहम बात यह है कि मीटू के अधिकतर मामले हाईप्रोफाइल हैं जिसमे पुलिस को अधिक गंभीरता दिखानी पड़ेगी। अब तो यह सारा खेल पुलिस की काबिलियत व दम पर टिका है क्योंकि यह उतना भी आसान नहीं होगा जितना लोग समझ रहे हैं। जैसा कि हमने पहले भी जिक्र किया कि हाल ही में देश की पुलिस पर पहले से ही काम का बहुत प्रैशर है। अभी भी करोडों मुद्दे पेंडिग चल रह हैं लेकिन अब पेंडिग घटना को ताजा करके सॉल्व करना पुलिस के लिए भी बेहद चुनौतीपूर्ण होगा। योगेश कुमार सोनी

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