भगवान के दर्श-दीदार के लिए सुमिरन जरूरी

Meditation, God Words

सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि घोर कलियुग का समय है और ऐसे समय में मन-इन्द्रियां बड़े फैलाव पर हैं। इन्सान मनमते लोगों की बातों को बड़ा आसानी से सुन लेता है। ‘मन जो है कहे वो ही कार करे, गुरु वचनों पे ना एतबार करे, गुरु वचनों पर तकरार करे।’ वाकयी सच्चे दाता रहबर ने ये जो वचन किए वो आज भी ज्यों के त्यों हैं। आपजी फरमाते हैं कि कैसा घोर कलियुग का समय है। मन कहे और मनमते लोग कहें वो बातें अच्छी लगती हैं। गुरु, पीर-फकीर कहे उसके लिए चमत्कार चाहिए।

कोई बुरा कर्म करता है, कोई बुरी सोच रखता है, गलत काम करने को कहता है, उसके लिए इन्सान कभी कोई चमत्कार नहीं चाहता, झट से उसकी बात को मान लेता है। लेकिन सन्त कहें कि तेरा भगवान तुझमें है, संत कहें कि अल्लाह, वाहेगुरू का नाम जपा करो, वो बेइंतहा खुशियां देगा तो कहता है कि मेरा तो चमत्कार को नमस्कार है। अगर कोई मुझे भगवान दिखा देगा तो मैं मान लूंगा कि गुरु, पीर-फकीर पूरा है। ये कैसे संभव है। जब तक आप भक्ति नहीं करते, राम-नाम का जाप नहीं करते, तब तक उस राम, अल्लाह, वाहेगुरू को कैसे देखा जा सकता है।

पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जिस तरह से बच्चे नर्सरी से पढ़ना शुरू करते हैं। पढ़ते चले जाते हैं और 15-20 साल के बाद डिग्री, डिप्लोमा, मास्टरेट की डिग्री प्राप्त होती है। कितना समय लगा, कितनी मेहनत की, कितना दृढ़ निश्चय रहा, तब जाकर वो डिग्रियां मिलीं। उसी तरह अल्लाह, वाहेगुरु, खुदा, रब्ब, गॉड को पाने के लिए आपको दृढ़ यकीन रखना होगा, सर्च करना होगा और प्रभु, अल्लाह वाहेगुरु का नाम जपना होगा। ज्यों-ज्यों आप राम-नाम जपते जाएंगे तो आपको वो डिग्रियां मिलेंगी जिनमें परमानंद और मालिक सतगुरु के नूरी स्वरूप के दर्शन होंगे।

जिसके सामने सब कुछ फीका पड़ जाता है, जिसके मुकाबले में कोई चीज खड़ी नहीं रहती। वो परमपिता परमात्मा, अल्लाह, वाहेगुरु, राम, मालिक जिसे नूरी स्वरूप में मिल जाया करते हैं, उनके अंदर से इगो, खुदी, अहंकार, दुई-द्वेष, चुगली-निंदा, दूसरे को नीचा दिखाने की भावना आदि सभी बुराइयां चली जाती हैं। एक शांतमय समुद्र की तरह उसके चेहरे पर नूर ठाठे मारने लगता है। पता चल जाता है कि यह इन्सान भक्ति करने वाला है और सतगुरु पर दृढ़ यकीन करते हुए वचनों पर अमल करने वाला है।

आपजी फरमाते हैं कि फकीर के वचन सिर्फ वचन ही नहीं होते, वो अल्लाह, वाहेगुरु की बात होती है, वो वाहेगुरु, अल्लाह, राम के वचन होते हैं। फकीर तो बताने वाले होते हैं। कई बार आदमी का मन मरोड़ा चढ़ा लेता है। इन्सान अपनी मर्जी का मालिक है। वो आपको क्या कह दे? क्या बोल दे? कुछ पता नहीं चलता। हाँ, संत फकीर कुछ बोल दें और भक्ति कर लो तो उसकी रज़ा का पता चलता है। कबीर साहब जी फरमाते हैं, ‘‘सन्तों का क्रोध भी दाती होता है और दुनियादारी का प्यार भी घाती होता है।’’ संत पीर-फकीर हमेशा प्यार-मोहब्बत की चर्चा करते हैं। वे देखते हैं कि इन्सान के कोई पहाड़ जैसे भयानक कर्म आ रहे हैं, उसकी भक्ति उतनी नहीं है, उसने उतना सुमिरन नहीं किया, घंटा सुबह-शाम, दो घंटे सुबह-शाम, जिससे वो पहाड़ सा कर्म कंकर बन जाए। लेकिन उसकी सेवा है, उसका बचपन का प्यार है तो संत, गुरु को लाज होती है, ये उस पहाड़ के नीचे न दब जाएगा।

अब संत प्यार के समुद्र होते हैं तो काल का कर्ज़ा चुकाने के लिए वे अपने अंदर परिवर्तन लाकर क्रोध करते हैं। ताकि काल को ये लगे कि देखो मैंने दयाल के नुमाइंदे संत को भी गुस्सा चढ़ा दिया, ताकि कुछ लोग उसे देखकर दूर होते दिखें। लेकिन कुछ लोग अलग ही मतलब निकाल लेते हैं। लेकिन वो मालिक जानता है कि वो क्रोध सिर्फ इसलिए होता है कि सामने वाले के ऊपर मुसीबतों के पहाड़ की बजाय एक राई बनकर दु:ख कट जाते हैं और वो आदमी बच जाता है। हाँ, ऐसा होता कभी-कभार है, किसी-किसी के साथ। इसीलिए कबीर जी ने लिखा, ‘संतों का क्रोध भी दाती होता है। दुनियादारी का प्यार भी घाती होता है।’’

 

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