MSG Maha Paropkar Diwas: 25मार्च 1973 को पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां पूज्य बापू जी के साथ नाम की अनमोल दात प्राप्त करने सरसा पहुँचे। उस दिन जब पूज्य परम पिता जी नाम-अभिलाषी जीवों को नाम देने के लिए दरबार के तेरावास व सचखण्ड हाल के बीच वाले पण्डाल में आए तो आप जी को बुलाकर आगे अपनी कुर्सी के पास बैठाया पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘काका अग्गे आ जाओ’’ और अपना भरपूर प्यार प्रदान करते हुए राजी-खुशी पूछी कि ‘‘काका, केहड़ा पिंड है? होर तां सब ठीक है?’’ पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इस प्रकार पूजनीय परम पिता जी ने हमें अपने पास बैठाकर नाम-शब्द, गुरुमंत्र प्रदान किया।
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अपना तो काम ही ये है
पूज्य गुरु जी ने 7-8 वर्ष की आयु में ही ट्रैक्टर चलाना शुरू कर दिया था। एक बार पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज राजस्थान में हनुमानगढ़ जिले के पक्का सहारणा में रूहानी सत्संग फरमाया तो पूज्य गुरु जी उस सत्संग में अपने गाँव श्रीगुरुसर मोडिया से ट्रैक्टर-ट्राली नाम लेने वाले जीवों की भरकर सत्संग में पहुँचे। इस पर साथ वाले सेवादारों ने पूजनीय परमपिता जी के समक्ष पूज्य गुरु जी के बारे में बताया कि जी, ये ट्राली भरकर नाम वाले जीवों को लेकर आएं हैं। इस पर पूजनीय परमपिता जी ने पूज्य गुरु जी की ओर देखकर अपनी प्रेम भरी पावन दृष्टि डालते हुए फरमाया कि बेटा! अपना तो काम ही ये है।
बख्शी विशेष प्रेम निशानी
एक बार पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज सेवादारों को प्रेम निशानियां दे रहे थे। उस वक्त पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां भी वहीं पर मौजूद थे। पूजनीय परमपिता जी ने सभी सेवादारों को एक जैसी प्रेम निशानियां दी और पूज्य गुरु जी को विशेष ‘शेर के मुख’ वाला छल्ला प्रेम निशानी के रूप में दिया और फरमाया कि भाई! कोई ख्याल मत करना, इनको अलग से प्रेम निशानी दे रहे हैं। इस तरह पूज्य गुरु जी को अपना अथाह प्रेम बख्शते रहे।
काम पूरा करके ही लेते हैं दम
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां में बचपन से ही यह विशेषता है कि आप जी जिस कार्य को भी शुरू कर लेते हैं उसे एक बार में ही पूरा करके छोड़ते हैं। यह बात भी उक्त सच्चाई की प्रत्यक्ष मिसाल है कि आप जी जब से डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे गुरु जी के रूप में गद्दीनशीन हुए हैं, दरबार में परमार्थी सेवा का कार्य निरंतर जारी है। सर्दी हो या गर्मी, वर्षा हो या आंधी प्रतिदिन 15-15, 18-18 घंटे सेवादारों के बीच रहकर डेरा सच्चा सौदा में साध संगत की सुविधा के प्रत्येक कार्य को आप जी स्वयं करवाते रहे हैं। सतगुरु जी की रहमत से दरबार में प्रगति कार्य चौबीसों घंटे बराबर चल रहे हैं। वर्णनयोग्य है और हम देख भी सकते हैं कि यहां पर महीनों का काम दिनों में तथा दिनों का काम कुछ घंटों में ही पूरा हो जाता है।