राजनीतिक दृष्टि से मुकाबला करने की आवश्यकता

Need to compete politically
भारत और चीन ने विरोधाभासी घटनाक्रम देखे। चीन में वायु प्रदूषण में थोड़ी सी कमी से लाखों लोग बच सकते हैं तो भारत में आर्थिक वृद्धि में गिरावट से हजारों लोग आत्महत्या कर सकते हैं। फिर कोरोना वायरस अलग कैसे हैं? क्या इसका कारण यह है कि यह त्वचा और श्वास से फैलता है जबकि एचआईवी रक्त और वीर्य से फैलता है। या इसका कारण यह है कि कोरोना वायरस की उत्पति चीन में हुई जो विश्व की महाशक्ति बनना चाहता है।
कोरोना वायरस ने आज वैश्विक महामारी का रूप ले लिया है और इसका अनेक देशों की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। एक छोटी सी अवधि में इस बीमारी ने संपूर्ण विश्व का ध्यान आकर्षित कर दिया है। मीडिया ने भी लोगों को डरा रखा है। हाल के वर्षो में स्वाइन फ्लू, एच1एन1, एचआईवी, एड्स आदि अनेक महामारियां हुई हैं और अकेले एच1एन1 के कारण 284000 से अधिक लोग मारे गए। एड्स के कारण भी इससे अधिक लोग मारे गए हैं। हम इस बीमारी की गंभीरता या इसके दुखद परिणामों को नकार नहीं रहे हैं किंतु इस वायरस से जुडे कारक महत्वपूर्ण हैं।
कोरोना वायरस के कारण एक सुनियोजित संकट पैदा हो सकता है जिसमें सप्लाई चेन बाधित होगी, वस्तुओं के उत्पादन में गिरावट आएगी, तेल के मूल्यों को लेकर जंग छिड़ेगी और उपभोक्ता मांग में गिरावट आएगी। ऐसा कहा जा रहा है कि इस महामारी के कारण चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग और अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप की स्थिति कमजोर होगी और सीमाएं बंद होंगी। हालांकि चीन के बाद इटली इस बीमारी से सर्वाधिक प्रभावित हुआ है किंतु मुकाबला अमरीका और चीन के बीच है कि वे इस वायरस की उत्पति और उसके प्रकोप की जिम्मेदारी निर्धारित करें। भारत को इस बारे में क्या प्रतिक्रिया देनी चाहिए क्योंकि भारत अक्सर चीन और अमरीका की लडाई में फंस जाता है। भारत को इस महामारी की राजनीति को समझना होगा और उसके बाद अपना रूख अपनाना होगा। सदियों से महामारियां होती रही हैं और महामारियों ने इतिहास भी बदला है और यह महामारी भी विश्व की अर्थव्यवथा और राजनीति को बदल सकती है। इस वायरस की उत्पति के बारे में कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है। कुछ लोगों का कहना है कि कोविड -19 की भविष्यवाणी 1981 में एक उपन्यास में की गयी थी।
इस उपन्यास के एक पात्र डॉम्बे ने वुहान 400 वायरस के बारे में बताया था जिसे वुहान में आरडीएनए प्रयोगशाला में विकसित किया गया था। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यह एक जैव हथियार हो सकता है और यह आरंभ में सीआईए के लिए तैयार किया गया था किंतु अमरीका स्थिति चीनी वैज्ञानिकों ने इस प्रौद्योगिकी को चीन को हस्तांतरित किया जो उसे ठीक से संभाल नहीं पाए। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यह वायरस सी फूड मार्केट से पैदा हुआ जहां पर तरह तरह के जानवर बेचे जाते हैं। यह सी फूड से मानव में आया। कुछ लोगों का यह भी मत है कि इस वायरस की उत्पति वुहान इंस्टिटयूट ऑफ़ वायरोलोजी से हुई जहां पर चीन की जैव सुरक्षा प्रयोगशाला है।
अमरीकी सीनेटर टॉम कॉटम ने फॉक्स न्यूज को यह बात बतायी और अमरीकी विदेश मंत्री पोंपियों ने भी इस बात का समर्थन किया। इस महामारी का दूसरा पहलू यह है कि यह तेजी से संक्रमित होती है किंतु यह एसएआरएस से कम घातक है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जो वायरस तेजी से फैलता है उसमें मृत्यु दर कम रहती है। कोविड -19 में मृत्यु दर लगभग 2 प्रतिशत है जबकि सार्स में लगभग 9.6 प्रतिशत थी। फिर इस बारे में हल्ला गुल्ला क्यों? क्या मीडिया इस बारे में अनावश्यक शोर मचा रहा है? या दो प्रतिशत मत्यु दर की बात प्रमाणित नहीं है?
इस वायरस की उत्पत्ति जहां भी रही हो किंतु इससे चीन में अनेक मौतें हुई हैं और संपूर्ण विश्व इससे सहमा हुआ है और इस बीमारी को राजनीति से नहीं जोडा जा सकता है और भारत पर इसके प्रभावों को भी नहीं नकारा जा सकता है। इस महमाारी के बारे में भारत दोहरी रणनीति अपना सकता है। पहली अपनी लोक स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार करे और साथ ही इसका मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्यवाही की मांग करे। कुछ ऐसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे और चुनौतियां हैं जिन्हें सरकारों के स्तर पर नहीं निपटा जा सकता है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री एंटनी गिडेन ने अपनी पुस्तक पॉलिटिक्स ऑफ़ क्लाइमेट चेंज में इससे निपटने में अंतर्राष्ट्रीय निकायों की सीमाओं का उल्लेख किया है। महामारी से निपटने के लिए भी अंतर्राष्ट्रीय प्राधिकरण की आवश्यकता है। भारत मांग कर सकता है कि ऐसे प्राधिकरण का गठन किय जाए जो महामारी, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद आदि जैसे मुद्दों का निराकरण करे।
दूसरी रणनीति वास्तविकता को ध्यान में रखकर इस महामारी के प्रकोप से जुड़ी राजनीति पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करे। यह वायरस प्राकृतिक नहीं है अपितु इसे मानव द्वारा विकसित किया गया है। यदि इस जैव हथियार का निर्माण अमरीका में किया गया तो उसके बारे में जानकारी मिल सकती है किंतु यदि चीन में किया गया तो इसके बारे में सही जानकारी मिलना असंभव है। यदि इस जैव हथियर के निर्माण के लिए चीन जिम्मेदार है और यदि वह उसे नहीं संभाल पाया तो उसे इसकी कीमत चुकानी होगी। चीन पहले ही इसके प्रभावों से जूझ रहा है। उसका निर्यात गिर गया है, उसके लोगों की आवाजाही सीमित हो गयी है और निवेश गिर रहा है।
भारत को इस समय आगे आकर इस स्थान को भरना चाहिए और इस दिशा में सही कदम उठाने के लिए हम चीन पर अंकुश लगाने की वकालत करते रहे हैं और इसे भारत की आर्थिक वृद्धि और विकास रणनीति का एक कारक बनाया जाना चाहिए। भारत पाकिस्तान में उलझा रहता है क्योंकि उससे यहां चुनावी लाभ मिलता है। इसलिए समय आ गया है कि भारत अपनी चीन नीति पुन: निर्धारित करे, अपनी लोक स्वास्थ्य और सुरक्षा मानकों में सुधार करे। अधिक निवेश आकर्षित करे। चीन को एक झटका लग गया है और भारत को इससे सबक लेना चाहिए। यही इस महमारी का राजनीतिक संदेश होना चाहिए।
डॉ. डीके गिरी

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