जैविक खेती पारंपरिक भारतीय पद्धतियों से उद्धृत रासायन मुक्त कृषि की एक विधि है। यह एक अनूठा मॉडल है जो कृषि-पारिस्थितिकी पर निर्भर करता है। इसका उद्देश्य उत्पादन की लागत को कम करना और सतत कृषि को बढ़ावा देना है। जैविक खेती मिट्टी की सतह पर सूक्ष्मजीवों और केंचुओं द्वारा कार्बनिक पदार्थों के विखंडन को प्रोत्साहित करती है, धीरे-धीरे समय के साथ मिट्टी में पोषक तत्वों को जोड़ती है। हालांकि, जैविक खेती में, जैविक खाद, वर्मी-कम्पोस्ट, और गाय के गोबर की खाद का उपयोग किया जाता है तथा इन्हे कल्टिवेटेड खेत में प्रयोग किया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि जैविक कृषि से बहुत बड़ी संख्या में लोगों को भोजन उपलब्ध कराने के साथ-साथ लोगों की रक्षा भी होती है क्योंकि इस पद्धति में जानलेवा रसायनों एवं कीटनाशकों का उपयोग नहीं होता है।
जैविक तरीके से खेती को बढ़ावा देने का आह्वान करते हुए उन्होंने रेखांकित किया कि यह आर्थिक सफलता का माध्यम भी है। इस विषय पर गुजरात के सूरत में आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने ‘सूरत मॉडल’ से सीख लेने को कहा। वहां हर पंचायत से 75 किसानों को इस पद्धति से खेती करने के लिए चुना गया है। वर्तमान में 550 से अधिक पंचायतों के 40 हजार से ज्यादा किसान जैविक कृषि को अपना चुके हैं। इस पद्धति के तहत किसी तरह के रसायन का उपयोग नहीं होता है और परंपरागत तरीके से खेती की जाती है। व्यावसायिक फसलों का चलन बढ़ने से पानी की खपत भी बढ़ रही है। भूजल के अनियंत्रित दोहन ने जल संकट एक बड़ी समस्या बन चुका है। अत्यधिक मात्रा में कीटनाशकों, खादों और संकर बीजों तथा पानी के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी क्षीण हो रही है। जलवायु परिवर्तन और धरती का बढ़ता तापमान भी पैदावार पर नकारात्मक असर डाल रहे हैं।
आज भले ही भारत खाद्य पदार्थों के मामले में आत्मनिर्भर हो, लेकिन अगर इन समस्याओं का समाधान नहीं निकाला जायेगा, तो भविष्य में हमारी खाद्य सुरक्षा कमजोर हो सकती है। हमारे देश की भौगोलिक विविधता के कारण देश के अलग-अलग हिस्सों में मिट्टी और मौसम की विविधता भी है। इस कारण खेती के परंपरागत तरीकों में भी विभिन्नता है। ऐसे में परंपरागत खेती यानी प्रकृति के अनुकूल खेती से हम मिट्टी, पानी, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को संरक्षित कर सकेंगे तथा इस कार्य में हमारे कृषि अनुसंधानकर्ता और तकनीक विशेषज्ञ मददगार हो सकते हैं। इसके व्यापक प्रसार के लिए अब तक के अनुभवों को किसानों तक ले जाने की आवश्यकता है। केंद्र और राज्य सरकारों के स्तर पर परंपरागत खेती को बढ़ावा देने के लिए अधिक सक्रियता की आवश्यकता है।
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