नए दौर में भारत-नेपाल संबंध

India-Nepal Relations
नए दौर में भारत-नेपाल संबंध

पिछले दिनों नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ भारत की यात्रा पर आए। वे यहां तीन दिन रहे। चीन के प्रति नरम रुख रखने वाले नेपाली पीएम प्रचंड की इस यात्रा को भारत-नेपाल (India-Nepal Relations) द्विपक्षीय संबंधों में मजबूती के लिहाज से काफी अहम कहा जा रहा है। यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संपर्क और सहयोग के क्षेत्रों पर चर्चा हुई और कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। लेकिन प्रंचड की इस यात्रा का सबसे बड़ा सुखद पहलु यह है कि दोनों देशों के नेता बीते वर्षों में उत्पन्न तनाव से इतर आमने-सामने बैठ कर बातचीत करते हुए दिखे।

दिसंबर 2022 में प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रचंड की यह पहली विदेश यात्रा है। इस यात्रा का असल मकसद भारत के साथ सदियों पुराने, बहुआयामी और सौहार्दपूर्ण संबंधों को मजबूत करना था। हालांकि, प्रचंड के भारत आने से पहले उनकी सरकार में सहयोगी और पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने जिस तरह से ये सवाल उठाकर कि क्या प्रचंड भारत के प्रधानमंत्री के सामने वो सारे मुद्दे उठाएंगे जो उनके कार्यकाल में विवाद की वजह बने थे। एक तरह से यात्रा के मकसद को बाधित करने की कोशिश की गई। ओली का ईशारा लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख जैसे विवादित क्षेत्रों की ओर था। लेकिन प्रचंड पूरी तरह से सावधान थे। वे नहीं चाहते थे कि भारत यात्रा से पहले और यात्रा के दौरान भारत को असहज करने वाली कोई स्थिति उत्पन्न हो।

संभवत: यही वजह है कि भारत आने से पहले उन्होंने चीन के योआओ फोरम फॉर एशिया का निमंत्रण ठुकरा दिया था। इसी प्रकार भारत दौरे से चंद घंटे पहले राष्ट्रपति रामचन्द्र पौडेल के कार्यालय से उस नागरिकता संशोधन कानून पर स्वीकृति ली जिसे लेकर नेपाल के वामपंथी नेताओं को आपत्ति थी। नया कानून नेपाल के नागरिक से शादी करने वाली विदेशी महिलाओं को राजनीतिक अधिकारों के साथ-साथ नागरिकता प्रदान करने का रास्ता खोलता है। इससे पहले यह प्रावधान था कि अगर कोई विदेशी मूल की महिला जिसमें भारत भी शामिल है, विवाह करके नेपाल आती है, तो उसको नेपाल के नागरिक अधिकार नहीं दिए जाएंगे। अब तक इसके लिए सात साल का इंतजार करना होता था। इस कानून के कारण भारत और नेपाल के नागरिकों के बीच एक डेडलॉक जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी।

भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों से बड़ी संख्या में लड़कियों की शादी नेपाल में हुई है। अब प्रचंड की पहल पर नागरिकता कानून में संशोधन लागू होने के बाद सबसे बड़ी राहत मधेशी समाज को मिलेगी। हालांकि, नेपाल के कूटनीतिक हल्कों और मीडिया में ज्यादा चर्चा उन मुद्दों की हो रही है, जिन पर प्रचंड को ज्यादा सफलता नहीं मिली है। इस सिलसिले में वायु मार्ग और पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना की बात कही जा रही है। बिजली कारोबार को लेकर दोनों देशों का किसी ठोस समझौते के निष्कर्ष तक न पहुंच पाना प्रचंड की कमजोरी कहा जा रहा है। इसके अलावा हैदराबाद हाउस में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच द्विपक्षीय वार्ता में सीमा संबंधी मुद्दे पर चर्चा न होना कहीं न कहीं प्रचंड के भारत दौरे के कूटनीतिक महत्व पर प्रश्न खड़े कर रहा है।

पिछले एक-डेढ़ दशक के दौरान भारत-नेपाल संबंधों में बड़ा बदलाव आया है। इसकी बड़ी वजह विवाद के कुछ ऐसे बिन्दू है, जिनके समाधान की कोई राह दोनों देश अभी तक नहीं ढूंढ पाए हैं। सीमा विवाद भी ऐसा ही एक बिन्दु है। कोई दो राय नहीं कि भारत-नेपाल के बीच सीमा संबंधी विवाद है। जो कुछ समय पहले उग्र रूप से सामने आ चुका है। नि:संदेह दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का समाधान न होना चिंता का विषय है। लेकिन ऐसे विवाद शांति, सहयोग और विश्वास के माहौल में बातचीत के जरिए बेहतर ढंग से सुलझाए जा सकते हैं। यही वजह है कि दोनो ंदेशों ने इस पर जोर देने के बजाए सहयोग, सामंजस्य और विश्वास बहाली की दिशा में आगे बढ़ने की नीति अपनाई है। मोदी-प्रचंड द्विपक्षीय वार्ता के बाद जारी साझा बयान में भी यही भावना दिखाई दी।

पीएम मोदी ने कहा कि दोनों नेताओं ने भारत-नेपाल साझेदारी को सुपरहिट बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं। मोदी ने कहा कि हम अपने संबंधों को हिमालय की ऊंचाईयों पर ले जाने का प्रयास जारी रखेंगे। इसी भावना के साथ हम सभी मुद्दों का समाधान करेंगे, चाहे वह सीमा से जुड़ा हो या कोई अन्य मुद्दा। नवंबर 2021 में भारत-नेपाल संबंधों में उस वक्त तनाव उत्पन्न हो गया था जब पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कालापानी इलाके पर भारत को दो टूक कह दिया था कि भारत को इस क्षेत्र से अपनी सेनाएं हटा लेनी चाहिए। नेपाल भारत को अपनी एक इंच भी जमीन नहीं देगा। साल 2020 में ओली ने कालापानी, लिपुलेख ओर लिम्पियाधुरा जैसे विवादित क्षेत्रों को नेपाल का हिस्सा बताने वाला नक्शा जारी कर भारत-नेपाल रिश्तों में तनाव बढ़ा दिया।

सीमा संबंधी मुददे उछालने के अलावा ओली ने अपने कालखंड में ऐसे कई बयान दिए जो भारत-नेपाल रिश्तों के लिहाज से उचित नहीं थे। जुलाई 2020 में भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या पर प्रश्न उठाते हुए कहा था कि भारत ने सांस्कृतिक अतिक्रमण करते हुए वहां फर्जी अयोध्या का निर्माण करवाया है, जबकि असली अयोध्या तो नेपाल के बीरगंज में है। लेकिन वर्ष 2021 में ओली सरकार के पतन के बाद दोनों देश संबंधों को फिर से पटरी पर लाने की इच्छा के साथ आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। दरअसल, भारत के प्रति नेपाल की विदेश और सुरक्षा नीति पर ओली और उनके समर्थक अति राष्ट्रवादियों का प्रभाव रहा है, जो हर चीज को राष्ट्रवादी चश्में से देखने और समझने की कोशिश करते हैं। लेकिन प्रंचड का नजरिया हाल-फिलहाल बदला हुआ सा नजर आ रहा है। वह एक सामंजस्यपूर्ण भारत-नीति को आगे बढ़ाने में कोशिश करते हुए दिख रहे हैं। इस कोशिश में वह कितना सफल होते हैं, यह भविष्य के गर्भ में है।

भारत यात्रा के दौरान प्रचंड का उज्जैन जाकर महाकाल के दर्शन और पूजा-अर्चना करना भी इस यात्रा का एक विस्मयकारी पहलू है। राजशाही की समाप्ति के बाद जिस तरह से नेपाल में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियां लगातार बढ़ी हैं, इसके कारण नेपाल की विशाल हिन्दू आबादी में नाराजगी थी। महाकाल की पूजा-अर्चना हिन्दूवादियों को संदेश के तौर पर देखा जा रहा है । नि:संदेह, प्रचंड के भीतर आए इस बदलाव से समान सांस्कृतिक संबंधों वाले देशों के रिश्ते मजबूत हो सकेंगे। बहरहाल, भारत-नेपाल रिश्तों में एक कड़वे अध्याय की समाप्ति के बाद आपसी सौहार्द और सहयोग के जरिए विकास की गति तेज करने की जो इच्छा टॉप नेतृत्व में उभरती हुई दिखाई दे रही है, वह दोनों देशों के लिए बेहतर ही कही जा सकती है।

डॉ. एन.के. सोमानी, वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार (यह लेखक के अपने विचार हैं)