इबादत के नाम पर न बिगड़े सौहार्द्र

Not a bad environment in the name of God

देश की राजधानी दिल्ली से बिल्कुल सटे शहर नोएडा में खुले में नमाज पढ़ने की स्थानीय प्रशासन की मनाही के बाद विशेष धर्म के लोगों ने दबंगई से नमाज पढ़कर धार्मिक उन्माद फैलाने की हिमाकत की। गनीमत इस बात की रही उनके उस कृत्य को दूसरे धर्मांे के लोगों ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया, अगर लिया होता तो मामला बेकाबू हो सकता था। दरअसल स्थानीय प्रशासन की ओर से बकायदा वहां चल रही कंपनियों को आदेश देने के साथ दीवारों पर भी इस्तिहार चस्पा कर संदेश दिया था जिसमें साफ कहा था कि उक्त जगहों पर कंपनियों में काम करने वाले मुस्लिम कर्मचारी नमाज नहीं पढ़ें और इसके अलावा किसी भी तरह का धार्मिक आयोजन नहीं किए जाने का आदेश जारी किया गया था। उक्त सरकारी आदेश एक धर्म के लिए नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लिए एक जैसा था। गौतमबुद्धनगर के एसएसपी ने घटना के दो दिन पहले ही वहां की सभी कंपनियों के मालिकों को इस बावत पत्र लिखकर चेता दिया था कि आदेश का पालन किया जाए, अगर कोई उल्लंघन करता है तो उस कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इन सबके बावजूद भी माहौल खराब करने की कोशिश की गई। इससे साफ जाहिर होता है इस पूरे मसले पर कुछ लोगों ने राजनीति करने की कोशिश की।

धर्म के नाम लोगों को आपस में लड़ाने वाले राजनेताओं की नापाक सोच एक्सपोज होनी चाहिए। नमाजकांड में भी यही हुआ। नामाज पढ़ने के मसले को भी नेताओं ने सियासी जामा पहना दिया। धर्मों को आपस में लड़ाकर राजनीति करने वालों को सिर्फ इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि धर्म किसी को परेशान करने की इजाजत नहीं देता। हिंदुस्तान बहुत ही उत्सवधर्मी मुल्क है। सभी धर्मांे की मान्यताएं भिन्न और विभिन्न हैं। धर्म सर्वमान्य नागरिकों को आपस में भाईचारे से रहने की वकालत करता है। इस लिहाज से अगर कोई धर्म के नाम पर उन्माद या अतिक्रमण करता है तो उसकी इजाजत किसी को नहीं होनी चाहिए। नोएडा प्रशासन ने भी ऐसे संभावित उन्माद को रोकने की कोशिश की। उनको लगा उक्त स्थान को जनता के लिए फ्रीहोल्ड रखना चाहिए, किसी तरह का कोई अतिक्रमण न हो। तो इसमें बुराई क्या है? हमें समझना चाहिए वह मान्यता किस काम की जिससे लोगों को परेशानी हो। नमाज हो या पूजा अर्चना हम बंद कमरे में भी कर सकते हंै और की भी जाती हैं। ईश्वर हो या अल्लाह उन्हें मन में याद करके भी खुश कर सकते हैं। बस इसके लिए हमारा मन पवित्र और साफ होना चाहिए। सोच सामाजिक होनी चाहिए, सियासी नहीं।
मामला तब बिगड़ा जब नोएडा के सेक्टर-58 में प्रशासन के आदेश को धता बताते हुए भारी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग खुले पार्क में एकत्रित हो गए। और जुमे की नामाज अदा करने लगे। भीड़ में कंपनियों के कर्मचारियों के अलावा बाहरी लोगों की तादात ज्यादा थी। सवाल उठता है इतने अल्प समय में बहारी लोग वहां कैसे पहुंच गए। इससे साफ जाहिर होता है कि इसमें कोई बड़ी प्लानिंग की गई थी।

इस बात की भनक जब स्थानीय प्रशासन को लगी, तो प्रशासनिक अमला मौके पर पहुंचा। नमाज में खलल नहीं डाली और नमाज खत्म होने का इंतजार करने लगे। नमाज खत्म होने के बाद प्रशासन ने लोगों से सवाल किए तो नमाजियों ने अफसरों को बताया कि उनको नमाज पढ़ने को कहा गया था। मतलब साफ है कि उनको धर्म की आड़ में सुलगती हुई भट्टी में झोंकने की फिराक सियासी ताकतों ने की। सौहार्द्र को बिगाड़ने का पूरा इंतजाम किया गया था। लेकिन समय रहते प्रशासन व स्थानीय अमनप्रिय लोगों ने अपनी सूझबूझता का परिचय देते हुए माहौल को मैनेज किया। गौतमबुद्धनगर पुलिस-प्रशासन के सौहार्द्र और शांति व्ययवस्था की अपील को ज्यादातर लोगों ने समर्थन किया लेकिन कुछ लोगों ने दूसरा रंग देने की नाकाम कोशिशें की। लेकिन उस वक्त तो मामला शांत हो गया था लेकिन बाद में पूरे मामले ने सियासी रूप ले लिया। इस वक्त चारों ओर यही मुद्दा गर्म है।

दरअसल नोएडा में वर्षों से एक-दो ही मस्जिदें हैं। जो नमाज पढ़ने के लिए स्थानीय लोगों व कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए प्रर्याप्त हुआ करती थी। लेकिन अब वह जगहें कम पड़ने लगी हैं। वजह विगत कुछ ही सालों में बेहताशा बढ़ी जनसंख्या जिसने जगह की कमी का एहसास करा दिया। इस कारण नमाजी अब नमाज पढ़ने के लिए सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करने लगे हैं। यह सब देखकर एक बात प्रतीत होती है कि जनसंख्या कानून की मांग को अब अमलीजामा पहनाने की दरकार है। केंद्र सरकार के स्लोगन ‘हम दो हमारे दो’ पर कुछ जातियों ने गंभरीता से अमल किया है लेकिन विशेष धर्म ने पूरी तरह से नकारा। उनकी आबादी पहले की तरह तेज गति से बढ़ रही है। ये उनके लिए भी सही नहीं है और न ही दूसरों के लिए।

बढ़ती जनसंख्या से आज हमारा समाज बहुत चिंतित है, और होना भी चाहिए। क्योंकि अगर आलम ऐसा ही रहा, तो हम सबके लिए भारत की धरती पर जीना मुश्किल हो जाएगा। वह समय दूर नहीं जब इंसान एक-एक गज की जगह के लिए आपस में लड़ेंगे। ऐसी नौबत आने से पहले ही हमें समाधान करना चाहिए। इस संबंध में हमें हिंदु-मुस्लिम न होकर इंसानी सोच के साथ गंभीरता से गौर करने की जरूरत है। अमन-चैन से रहने के लिए आबादी पर नियंत्रण करना ही होगा। भारत की मिट्टी सभी धर्मों को आपस में भाईचारे से रहने की वकालत करती आई है। इस परंपरा को हमें जिंदा रखने की आवश्यकता है। ऐसे मसलों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।

मुसलमानों को एक बात पर गौर करने की जरूरत है। दरअसल वोटबैंक के कारण सभी सियासी दल विशेषधर्म को आजादी से लेकर अबतक फुटबॉल समझते आए हैं लेकिन अब समय की दरकार है उन्हें खुद अपने विवेक से निर्णय लेना चाहिए। मुसलमानों के रहनुमा होने की दुहाई देने वाले ज्यादातर मुस्लिम नेता भी राजनीति में घुसकर मीठी चासनी चाटकर सबकुछ भूल जाते हैं। ऐसे लोगों की मुसलमानों को पहचान करनी चाहिए। नेता उन्हें उकसाकर आज नमाज के नाम पर लड़ाने की कोशिश कर रहे, कल ऐसा न हो कि भाषा-मजहब के नाम पर भी उन्हें बांट न दें। समाज बदल रहा है उनको भी अपनी सोच में तब्दीली लाने की आवश्यकता है। यह बात किसी से नहीं छिपी है कि भारत के मुसलमानों की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। वह आजादी से सिर्फ और सिर्फ सियासी मोहरा मात्र बनते आ रहे हैं। सियासी लोग उन्हें धर्म के नाम पर लड़ाते आए हैं।

हिंदु-मुस्लिम एकता आज भी विराट है। उन्हें कमजोर करने की कोशिश दशकों से होती रही है। गंगा-जमुनी तहजीब की ताकत ही है जब मुसलमान नमाज पढ़ते हैं, तो उस वक्त हिंदु अपने सभी कार्यक्रम इसलिए रोक देते हैं ताकि उनकी इबादत में कोई खलल न पड़े। केरल की तस्वीर हम सबके सामने हैं। जब वहां बाढ़ आई तो मस्जिद बाढ़ के पानी में बह गई। उसके बाद हिंदुओं ने मुसलमानों को नमाज पढ़ने के लिए मंदिरों में आमंत्रित किया। इसके अलावा भी जब कहीं कुदरती आपदा आती है तो हिंदु अपने मंदिरों में नमाजी को नमाज पढ़ने के लिए द्वार खोले देते हैं। दरअसल यही हमारी भारतीय मजहबी ताकत है। लेकिन कुछ सियासी लोग इसे खंड़ित करना चाहते हैं ऐसे लोगों से बचना चाहिए।

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