पहिये का अविष्कार

pahiye ka avishkar

आज से 5 हजार और 100वर्ष पूर्व महाभारत का युद्ध हुआ जिसमें रथों के  (pahiye ka avishkar) उपयोग का वर्णन है। जरा सोचिये पहिये नहीं होते तो क्या रथ चल पाता? इससे सिद्ध होता है कि पहिये का अविष्कार 5 हजार वर्ष पूर्व ही हो गया था। पहिये का अविष्कार मानव विज्ञान के इतिहास में महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। पहिये के अविष्कार के बाद ही साइकिल और फिर कार तक का सफर पूरा हुआ। इससे मानव को गति मिली। गति से जीवन में परिवर्तन आया। हमारे पश्चिम विद्वान पहिये के अविष्कार का श्रेय इराक को देते हैं, जहां रेतीले मैदान हैं, जबकि इराक के लोग 19वीं सदी तक रेगिस्तान में ऊंटों की सवारी करते रहे। हालांकि रामायण और महाभारत काल से पहले ही पहिये का चमत्कारी अविष्कार भारत में हो चुका था और रथों में पहियों का प्रयोग किया जाता था। विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता सिंधु घाटी के अवशेषों से प्राप्त (3000-1500 वर्ष पूर्व की बनी) खिलौना हाथी गाड़ी भारत के राष्टÑीय संग्रहालय में प्रमाणस्वरूप रखी है। सिर्फ यह हाथी गाड़ी ही प्रमाणित करती है कि विश्व में पहिये का निर्माण इराक में नहीं, बल्कि भारत में ही हुआ था।

प्रसन्नता का राज

एक बार एक संत एक पहाड़ी टीले पर बैठे बहुत ही प्रसन्न भाव से सूर्यास्त देख रहे थे। तभी दिखने में एक धनाढ्य व्यक्ति उनके पास आया और बोला, ‘बाबाजी! मैं एक बड़ा व्यापारी हूँ। मेरे पास सुख-सुविधा के सभी साधन हैं। फिर भी में खुश नहीं हूँ। आप इतना अभावग्रस्त होते हुए भी इतना प्रसन्न कैसे हैं? कृपया मुझे इसका राज बताएं।’ संत ने एक कागज लिया और उस पर कुछ लिखकर उस व्यापारी को देते हुए कहा, ‘इसे घर जाकर ही खोलना। यही प्रसन्नता और सुख का राज है।’ सेठ जी घर पहुंचे और बड़ी उत्सुकता से उस कागज को खोला। उस पर लिखा था, जहां शांति और संतोष होता है, वहां प्रसन्नता खुद ही चली आती है। इसलिये सुख और प्रसन्नता के पीछे भागने की बजाय जो है उसमें संतुष्ट रहना ही प्रसन्नता का राज है।

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