समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने 16 वीं लोकसभा का विदाई सत्र के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा कर और उन्हें दोबारा प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद देकर सारी महफिल लूटने का काम किया। मुलायम सिंह के बयान के बाद देश की राजनीति में नयी चचार्ओं का दौर शुरू हो गया। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव द्वारा अप्रत्याशित तरीके से नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनने की शुभकामना दिए जाने से जहां विपक्षी खेमे में सन्नाटा पसर गया वहीं सत्तारूढ़ पक्ष में खुशी की लहर दौड़ गयी। कांग्रेस की सर्वोच्च नेता सोनिया गांधी के बगल में खड़े होकर कही गई उस बात से मुलायम सिंह ने विपक्षी गठबंधन की निरर्थकता पर सवाल उठा दिया। हालांकि बाद में विपक्ष ने उनकी टिप्पणी को ऐसे अवसरों पर दिखाई जाने वाली सौजन्यता कहा किन्तु मुलायम सिंह का ये कटाक्ष मायने रखता है।
भाजपा के लिए मुलायम सिंह का भाषण आशीर्वादयुक्त विदाई जैसा रहा लेकिन राजनीति के जानकारों के अनुसार उन्होंने उप्र में अखिलेश यादव और मायावती के गठबंधन की हवा निकाल दी। इधर संसद की विदाई चल रही थी उधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मोदी विरोधी रैली आयोजित की थी। इस रैली में विपक्ष ने अपनी ताकत दिखानी थी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस रैली में नहीं पहुंचे और आनन्द शर्मा ने कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया। लेकिन वे भी महागठबंधन पर कोई आश्वासन दिए बिना भाषण देकर चलते बने। इसी तरह ज्योंही ममता बनर्जी आईं त्योंही वामपंथी उठकर चले गए। मायावती तो वैसे भी इस तरह के आयोजनों से दूर रहते हुए अपनी खिचड़ी अलग से पकाने की आदत रखती हैं। केजरीवाल जी की रैली के बाद शरद पवार के घर पर भी न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार करने विपक्षी दलों के तमाम नेता जमा हुए लेकिन उसमें मोदी को हराने की हुंकार तो खूब भरी गई किन्तु पूरे देश में भाजपा विरोधी किसी एक महागठबंधन की संभावना दूरदराज तक नजर नहीं आई।
ये सब देखकर लगता है मुलायम सिंह ने जो पांसा लोकसभा के विदाई भाषण में फेंका वह चुनाव बाद विपक्ष की स्थिति का पूवार्नुमान ही है। उन्होंने प्रधानमंत्री को दोबारा पद पर आने की शुभकामना ही नहीं दी अपितु लगे हाथ विरोधी दलों के उत्साह पर ये कहते हुए पानी फेर दिया कि वे सब मिलकर भी बहुमत नहीं ला सकेंगे। लेकिन केजरीवाल की रैली और पवार के निवास पर हुई बैठक के बाद भी विपक्ष की एकजुटता की गारंटी नहीं दी जा सकती। उप्र में अखिलेश और मायावती ने तो कांग्रेस को दूध में से मक्खी की तरह बाहर कर दिया वहीं बिहार में बनने वाले महागठबंधन की गांठे उलझती ही जा रही हैं। बंगाल और आंध्र की कांग्रेस इकाइयां जिस अंदाज में ममता बनर्जी और चन्द्रबाबू नायडू का विरोध कर रही हैं वह भी राहुल के लिए परेशानी उत्पन्न करने वाला है। ये बात तो पूरी तरह से सत्य है कि भाजपा 2014 जैसी लहर पैदा नहीं कर पा रही।
नरेंद्र मोदी का आकर्षण भी घटा है लेकिन ये भी सही है कि लाख कोशिशों की बाद भी विपक्ष में एकता तथा प्रधानमंत्री पद के किसी सर्वमान्य उम्मीदवार का अभाव अभी भी भाजपा का पलड़ा भारी रखने में सहायक साबित हो रहा है। मुलायम सिंह ने विपक्ष के बहुमत से दूर रहने की बात कहकर जो संकेत दे दिया उसका सबसे ज्यादा असर उप्र में ही पड़ने की संभावना है। प्रियंका वाड्रा ने जिस तेजी से वहां काम शुरू किया उससे सपा-बसपा की धमक कम होना अवश्यम्भावी है। मुलायम सिंह भी इस पहलू को भांप गए। यूं भी बसपा के विरुद्ध उन्हें भाजपा ने पर्दे के पीछे सदैव मदद की। 2016 में भी मुलायम सिंह के मुंह से मोदी के लिए तारीफ सुनने को मिली थी, प्रधानमंत्री मोदी को देखिये… वो मेहनत और लगन से प्रधानमंत्री बने हैं़़… वो गरीब परिवार से आते हैं और वो अपनी मां को भी नहीं छोड़ सकते हैं।
हो सकता है समाजवादी परिवार में चल रहे झगड़े की पीड़ा मुलायम सिंह ने इस रूप में साझा की हो। प्रधानमंत्री भी मुलायम सिंह के पोते की शादी में शामिल होने सैफई पहुंचे थे जहां उनकी एक और प्रशंसक पहले से थीं -अपर्णा यादव। मुलायम सिंह की छोटी बहू. प्रधानमंत्री के साथ अपर्णा की सेल्फी खासी चर्चित हुई थी। दो साल पहले ही जब 2017 में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, मंच पर भी मोदी के कान में मुलायम सिंह को कुछ कहते देखा गया। मुलायम सिंह ने तब जो भी कहा हो, लेकिन अपनी बातों में उस वाकये की ओर भरी लोक सभा में इशारा तो कर ही दिया। मुलायम सिंह ने बताया, ये सही है कि हम जब-जब मिले… किसी काम के लिए कहा तो आपने उसी वक्त आॅर्डर किया। मैं आपका यहां पर आदर करता हूं, सम्मान करता हूं, प्रधानमंत्री जी ने सबको साथ लेकर चलने का पूरा प्रयास किया।
बीते कुछ समय से राहुल गांधी जिस तरह से प्रधानमंत्री के विरुद्ध आक्रामक हो उठे हैं उसकी वजह से उनकी छवि एक सक्षम वैकल्पिक नेता की बन सकती थी किन्तु विपक्ष ही उन्हें आगे करने को राजी नहीं हो रहा। 120 लोकसभा सीटों वाले उप्र और बिहार में अखिलेश और तेजस्वी जैसे क्षेत्रीय नेता भी श्री गांधी को अपेक्षित महत्व नहीं दे रहे। यही वजह है कि तमाम अंतद्वंर्दों के बावजूद भाजपा नरेंद्र मोदी को एकमात्र राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभारने में कामयाब होती दिखाई दे रही है। मुलायम सिंह का बयान के बाद सुप्रिया सुले ने जो बात याद दिलायी है वो और भी काफी दिलचस्प है। एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने याद दिलाया है कि 2014 में मुलायम सिंह यादव ने ऐसी ही बातें तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में भी कही थी। 2014 में तो मुलायम सिंह की शुभकामनाओं को असर देखा जा चुका है अब 2019 में देखना होगा क्या होता है। विपक्ष की एकता में अनेकता का जो पेच फंसा है यदि वह ऐसा ही रहा तब फिर मुलायम सिंह की सहज-सरल कही जा रही शुभकामना नरेंद्र मोदी के लिए वरदान बन सकती है।
लेखक: तारकेश्वर मिश्र
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