गलत ब्यानी पर पुलिस कार्रवाई अब हो गई जरूरी

Panchkula Police sachkahoon

राजनीति में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का सिलसिला चलता रहता है। लेकिन नेताओं को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह जो आरोप लगा रहे हैं उसका कोई आधार हो। निराधार आरोप लगाने से अनावश्यक विवाद खड़े होते हैं और फिर जब कानून का डंडा चलता है तो गलतबयानी या झूठे आरोप लगाने के लिए नेताओं को माफी मांगनी पड़ती है। विपक्षी नेता मुद्दों के आधार पर वर्तमान केंद्र सरकार को नहीं घेर पा रहे हैं तो झूठे आरोप लगाकर या अमर्यादित बयान देकर सनसनी फैलाते हैं और सुर्खियों में रहना चाहते हैं।

कुछ दिन पूर्व वाराणसी से असम तक कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा के खिलाफ मामले दर्ज हो गए। उत्तर प्रदेश की पुलिस उन तक नहीं पहुंची, पर असम पुलिस उनकी गिरफ्तारी के लिए दिल्ली पुलिस को साथ लिए नई दिल्ली हवाई अड्डे पर पहुंच गई। वाकई, इस देश में ऐसी सक्रिय व्यवस्था की जरूरत है, ताकि आए दिन होने वाली गलत बयानियों पर लगाम लग जाए। बुरा बोलने वाला अपनी गिरफ्तारी से डरने लगे, इससे बेहतर और क्या हो सकता है? सियासत में आलोचना ही नहीं, प्रति-आलोचना की भी सीमा होनी चाहिए। इसमें संदेह नहीं कि नेता अक्सर अनाप-शनाप वक्तव्य देते रहते हैं और कई बार मर्यादा की सीमा भी लांघ जाते हैं, लेकिन उनकी गिरफ्तारी करके उन्हें हतोत्साहित नहीं किया जा सकता।

आम तौर पर उन्हें उनके अभद्र बयानों के लिए सजा दिलाना भी संभव नहीं होता, क्योंकि वे प्राय: या तो क्षमा मांग लेते हैं या फिर यह कहकर चलते बनते हैं कि उनके कहने का वह अर्थ नहीं था, जो समझा गया। सियासत में संवाद की एक अलग गंभीर मुख्यधारा होनी चाहिए, पर इसमें जब आम सोशल मीडिया-स्तरीय हल्केपन का समावेश होने लगा है, तब न केवल चिंता बढ़ी है, पुलिस का काम भी बढ़ा है। पवन खेड़ा सजग रहते, तो मामला इस मुकाम तक नहीं पहुंचता। देखा जाए तो नेताओं का अपने बयान से पलटना या यह कहना कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, यह कोई नई बात नहीं है।

लेकिन नेताओं को समझना चाहिए कि ऐसी स्थिति क्यों आती है कि उन्हें अपने बयान पर खेद जताना पड़े या अदालत में मानहानि के मुकदमे के डर से बिना शर्त माफी मांगनी पड़े? इस सबसे राजनीतिज्ञ अपनी विश्वसनीयता खुद गंवा रहे हैं लेकिन इसके बावजूद उन पर कोई असर नहीं होता। यह प्रकरण अन्य नेताओं के लिए बड़ा सबक है क्योंकि कानून का पालन करना और जबान संभाल के बोलने का नियम सिर्फ जनता के लिए ही नहीं बल्कि नेताओं के लिए भी होता है।

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