आरवीएम के परीक्षण से पूर्व ही क्या उचित है हंगामा

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राजनीतिक दल किस तरह ईवीएम पर निशाना साधने और अपनी विफलताओं का ठीकरा उस पर फोड़ने के लिए उतावले रहते हैं, इसका ताजा उदाहरण है बसपा प्रमुख मायावती की यह मांग की हर चुनाव इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन के स्थान पर मत पत्र से कराए जाएं। उन्होंने यह मांग एक ऐसे समय की, जब चुनाव आयोग ने रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (आरवीएम) से मतदान का परीक्षण कर लिया है। इसका उद्देश्य देश में अपने गृह जिलों से दूर रहने वाले मतदाताओं को वहीं से वोट करने की सुविधा देना है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनाव आयोग की इस पहल का उद्देश्य अच्छा है। रिमोट ईवीएम के उपयोग की पहल चुनाव सुधार की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। इसके माध्यम से प्रवासी भारतीय मतदाताओं को वोट देने में समर्थ बनाया जा सकेगा। इससे उन करोड़ों मतदाताओं की चुनाव में सहभागिता हो सकेगी, जो नौकरी, व्यापार, शिक्षा एवं अन्य कारणों से अपने घर से दूर रहने के कारण चाहकर भी मतदान में हिस्सा नहीं ले पाते। 2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में ऐसे वोटरों की संख्या 45.36 करोड़ है, जो अपने गृह जिलों से बाहर रहते हैं। देश की कुल आबादी के मुकाबले यह संख्या करीब 37 फीसदी है। 2019 के लोकसभा चुनावों की बात करें तो उसमें 67.4 फीसदी मतदान रिकॉर्ड किया गया था।

इन आंकड़ों का मतलब यह नहीं है कि कम मतदान प्रतिशत का एकमात्र कारण इन मतदाताओं का वोटिंग से दूर रहना है, लेकिन यह एक बड़ा कारण जरूर है। हालांकि कांग्रेस सहित देश के अन्य विपक्षी दलों ने इस परीक्षण से पहले ही मीटिंग की और विरोध करने की रणनीति बनाई। उनका कहना है कि इस पहल से जुड़ी कई चीजें अभी साफ नहीं हैं। क्या यह हास्यास्पद नहीं कि रिमोट ईवीएम के परीक्षण और उसके प्रायोगिक उपयोग के परिणाम सामने आने के पहले ही उसका विरोध करने के लिए कमर कसी जा रही है? फिलहाल उन्होंने 25 जनवरी तक का समय दिया है, बीच के दिनों में इस पूरा मंथन करेंगे।

आम तौर पर वही राजनीतिक दल ईवीएम को लेकर जनता को बरगलाने की कोशिश करते हैं, जो चुनाव में पराजित हो जाते हैं या फिर जिन्हें पराजय मिलने की आशंका होती है। बड़ी बात यह है कि किसी भी दल ने चुनाव आयोग की इस पहल के इरादों पर सवाल नहीं उठाया है। अत: सभी दल यह भी चाहते हैं कि सभी नागरिकों को अपने कामकाज के इलाकों में वोट डालने का अधिकार मिले, ऐसे में मायावती का आरवीएम परीक्षण से पहले ही हंगामा करना गलत है। यहां आवश्यकता है कि सभी दलों के मन में जो भी संदेह है, उसे भी दूर किया जाना चाहिए ताकि कोई भी नागरिक वोट के अधिकार से वंचित न रहे।

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