निजी क्षेत्र दे सकता है रक्षा उपकरणों में आत्मनिर्भरता

Private Sector

रक्षा क्षेत्र में केंद्रीय बजट 2021-22 के प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन पर एक वेबिनार को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिये किये गए उपायों की एक श्रृंखला को सूचीबद्ध किया है। प्रधानमंत्री को इस बात के लिए पछतावा है कि भारत विश्व के सबसे बड़े रक्षा आयातकों में से एक है, लेकिन अब देश इस स्थिति को बदलने के लिए अपनी क्षमताओं और योग्यताओं को तेज गति से बढ़ाने के लिये कड़ी मेहनत कर रहा है। बजट में रक्षा मंत्रालय के लिए कुल 4.78 लाख करोड़ रुपए निर्धारित किये गए हैं, इसमें पूंजीगत परिव्यय में लगभग 19% की वृद्धि हुई है। घरेलू खरीद के लिये बजट का एक हिस्सा आरक्षित किया गया है। भारत, सऊदी अरब के बाद विश्व में रक्षा उपकरणों का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है। निजी क्षेत्र से आग्रह किया गया है कि वह आगे आए और रक्षा उपकरणों के डिजाइन और विनिर्माण दोनों की जिम्मेदारी उठाए।

आवश्यकतानुसार नौसेना को अधिक महत्त्व नहीं दिया गया है। नौसेना के लिये बजट का हिस्सा 15% से कम है जिसमें कुछ वर्षों से 12 % के आस-पास वृद्धि हुई है, जबकि वित्त वर्ष 2011-12 में यह 18% था। रक्षा क्षेत्र में वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो वायुसेना के संबंध में भारत धीरे-धीरे रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण की ओर बढ़ रहा है, जैसे कि भारत ने अपना स्वदेशी विमान तेजस तैयार किया है। भारत अपने स्वयं के इंजन, एवियोनिक्स और आत्मनिर्भर रडार के निर्माण में अभी भी पिछड़ा है। विमान के विभिन्न हिस्सों के डिजाइन और विकास में काफी प्रगति हुई है, लेकिन जब एक कॉम्पैक्ट विमान प्रणाली या एक हथियार प्रणाली की बात आती है, तो भारत एक अन्वेषक है, निर्माता नहीं। सेना के संबंध में भारतीय सेना को टैंकों जैसे आयुध निर्माण के क्षेत्र में अभी और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है। आर्टिलरी गन के मामले में भारत ने एक बड़ी सफलता हासिल की है, लेकिन इसके उपकरणों को आधुनिक बनाने के मामले में जरूरी तकनीकी बढ़त हासिल नहीं की है। वही नौसेना के संबंध में बात करें तो नौसेना को जितना महत्त्व दिया गया है उससे कहीं अधिक महत्त्व दिया जाने की आवश्यकता है क्योंकि अभी भी समुद्री क्षेत्र में अपार चुनौतियाँ हैं और सबसे अधिक खतरा चीन से है।

आत्मनिर्भर और मेक इन इंडिया पहओं को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अपनी नकारात्मक सूची में हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टरों, आर्टिलरी गन को शामिल किया है, इन वस्तुओं का आयात किसी सूरत में नहीं किया जाएगा और इस प्रकार आत्मनिर्भर भारत पहल को बढ़ावा मिलेगा। आधुनिकीकरण से जुड़ी चुनौतियों की बात करें तो भारत की संपूर्ण अधिग्रहण प्रक्रिया काफी सुस्त है और रक्षा उपकरण प्राप्त करने की योजना बनाने से लेकर उसे क्रियान्वित करने के लिये काफी लंबी प्रक्रिया है। इस अवधि को कम कर प्रक्रिया को अधिकतम 1-2 वर्ष तक करना एक बड़ी चुनौती है। सार्वजनिक रक्षा विनिर्माण क्षेत्र वास्तव में जिस तरह से इसे अनिवार्य किया गया है उसे पूरा करने में सक्षम नहीं है। यह क्षेत्र अपने आप में रक्षा क्षेत्र की सभी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं है, इसलिये निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। भारत के पास रक्षा उपकरणों के विनिर्माण के लिये एक उचित औद्योगिक आधार का अभाव है। इन क्षेत्रों की स्थापना और विनिर्माण कार्य शुरू किये जाने के बाद पूरी रक्षा अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।

 

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