कीटों का भक्षण करने वाली मकड़ियों का संरक्षण जरूरी

insect-eating spider

सच कहूँ/संजय कुमार मेहरा
गुरुग्राम। हमने अभी तक मकड़ियों को सिर्फ जाला बुनते ही देखा है। (Insect Eating Spider) उनकी जाला बुनने की कला पर प्रेरणादायी कविताएं, कहावतें पढ़ी हैं। मकड़ियों का दूसरा पहलू यह भी है कि ये हमें नुक्सान पहुंचाने वाले कीटों का भक्षण करती हैं। मकड़ियां लाभकारी परभक्षी होती हैं और अनेक कीटों की आबादी को नियंत्रित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसलिए इनका संरक्षण बहुत जरूरी है। मकड़ियां अक्सर घरों, यार्डों, बगीचों और फसलों में कीटों का सबसे महत्वपूर्ण जैविक नियंत्रण करती हैं।

अधिकतर मकड़ियां मनुष्यों के लिए हानि रहित होती हैं। 90 प्रतिशत से अधिक मकड़ी के शिकार कीड़े होते हैं। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में कीट विज्ञान विभाग के पूर्व प्रमुख एवं मानव संसाधन प्रबंधन के पूर्व निदेशक प्रो. राम सिंह ने बताया कि माइट्स (अष्टपदी) पौधों और जानवर दोनों पर भक्षण कर सकती है, जबकि टिक्स (चीचड़) जानवरों तक सीमित रहती हैं। टिक्स और माइट्स दोनों ही अपने मेजबानों को बीमारी भी पहुंचाती हैं। टिक्स बाहरी परजीवी हैं, जो बड़े जंगली और घरेलू जानवरों, स्तनधारियों, पक्षियों और कभी-कभी सरीसृप और उभयचरों के खून से भोजन करते रहते हैं और गंभीर बीमारियों के वाहक के रूप में भी महत्वपूर्ण हैं। हालांकि कोई भी प्रजाति मुख्य रूप से मानव परजीवी नहीं है।

मकड़ियां कैसे करती है शिकार?

मकड़ियां अपने शिकार को दो तरह से गतिहीन करती हैं। लकवा मारने वाले जहर का इंजेक्शन लगाकर या रेशम के जाले में लपेटकर। अधिकांश शिकार करने वाली मकड़ियां अपने शिकार को डसते समय पेडिपलप्स और सामने के पैरों में पकड़ लेती हैं। सुरक्षित रूप से रेशम से लिपटे शिकार को कभी-कभी बाद में खाने के लिए जाले में संग्रहीत कर लेती है। मकड़ी के शिकार को पकड़ने के कई अलग-अलग तरीके हैं। अधिकांश प्रजातियां एक जाल बुनने से शुरू होती हैं। यह रेशमी और चिपचिपा होता है।

इसलिए इसमें जो कुछ भी जाता है, वह वहीं फंस जाएगा। मकड़ी कभी-कभी अपने जाले में भी शिकार का पीछा करती हैं। शिकार अक्सर मकड़ी की तुलना में बहुत तेज दौड़ सकता है। फिर भी पैर जाले की चिपचिपी गंदगी में जल्दी ही उलझ जाते हैं। यह मकड़ी के लिए एक बड़ा फायदा है और फिर मकड़ी काट कर शिकार में जहर का इंजेक्शन लगा देती हैं। यह उन्हें गतिहीन कर देता है। मकड़ियां अपने अंगों पर तेल के कारण अपने स्वयं के जाले से नहीं चिपकेंगी। मकड़ी का जहर शिकार के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर पक्षाघात कर देता है। भोजन करते समय, मकड़ी अपने शिकार के तरल को ट्यूब जैसे मुंह के माध्यम से चूस जाती है और कठोर भाग पीछे रह जाते हैं।

हमारे पर्यावरण में मकड़ियों के प्रकार

कई मकड़ियां घात लगाने वाली शिकारी होती हैं। इन मकड़ियों की नजर काफी अच्छी होती है। वे खुले में, पत्ते या फूलों पर बैठती हैं। दृष्टि, कंपन और स्पर्श इंद्रियों का उपयोग करके वे कीड़े और अन्य शिकार को निशाना बनाती हैं-जैसे कि मक्खियों, तितलियों और पतंगों, जिनमें से कुछ मकड़ी से काफी बड़े हो सकते हैं। मकड़ियों के मजबूत, कांटेदार सामने के पैर उन्हें शिकार को पकड़ने में मदद करते हैं।

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मकड़ियों के कई क्रियाकलापों के सबूत जुटाए

प्रख्यात पर्यावरण जीव विज्ञानी प्रो. राम सिंह ने विभिन्न फसलों, अर्धनगरीय क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया। उन्होंने बड़ी संख्या में पौधों, पेड़ों, झाड़ियों, खरपतवारों और खेतों में फसलों जैसे ज्वार, चावल, मक्का और कपास में बड़ी संख्या में घात मकड़ी (एंबुश स्पाइडर), खुला जाल मकड़ी, जाला लपेट मकड़ी और जंपिंग स्पाइडर को देखा और एकत्र किया। खरीफ मौसम में जाले बुनाई के लिए सबसे उपयुक्त पौधे थे-चेनोपोडियम (बाथू), कैलोट्रोपिस (आक), कोंधरा, कांग्रेस ग्रास, फूलों/हेज पौधे जैसे चाइना रोज, टैकोमा, लैंटाना कैमरा, जेट्रोफा, बुशफायर, क्लेरोडेंड्रम इनरमी आदि।

प्रो. राम सिंह के लिए यह आश्चर्य की बात थी कि चाइना रोज (गुड़हल) के पत्तों और शाखाओं को बांधकर जाला लपेट मकड़ी द्वारा विकसित एक बड़े जाले से विभिन्न प्रकार के कीटों के 30 कंकाल मिले। प्रो. राम सिंह ने खरीफ फसलों में भी छोटे-छोटे कीड़ों को खाने वाली अनगिनत जंपिंग स्पाइडर (कूदती मकड़ियों) को देखा, जो कीटों की आबादी के नियंत्रण में बहुत मूल्यवान है।

कीटनाशकों से मकड़ियों को ना मारने की सलाह

प्रो. राम सिंह आमजन को सलाह देते हैं कि वे कीटनाशकों के प्रयोग से मकड़ियों को न मारें। यदि आवश्यक हो तो जाले या खरपतवार को हटाया जा सकता है और खुले में छोड़े जा सकते हैं, ताकि मकड़ियों को जाले छोड़ने और नए जाले तैयार करने के लिए सुरक्षित स्थानों पर जाने का समय मिल सके। खेत में फसलों में बड़ी संख्या में कूदने वाली मकड़ियां होती हैं, जो कीड़ों को मारती रहती हैं। किसानों को कीटनाशकों के छिड़काव से पहले मकड़ियों की उपस्थिति की जांच करनी चाहिए। प्रो. राम सिंह ने पूरे मानव समुदाय को जब तक अपरिहार्य न हो, कीटनाशकों का उपयोग न करने का आगाह किया है, जो हमारे अनुकूल जीवों के लिए सुरक्षित हैं।

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